SHARE

@Saurabh Dwivedi (गांव पर चर्चा )

मानस के 100 ₹
________________

इस सृष्टि मे अकारण कुछ भी नहीं होता , प्रत्येक घटना के पीछे कोई ना कोई कारण होता है। आंतरिक और वाह्य कारण मे जमीन – आसमान सा अंतर होता है। मैंने गांव पर चर्चा की प्रेरणा छत मे टहलते हुए पाई थी। धुंधलके में प्रकाश की प्रेरणा मिली थी। किन्तु यह सच है कि मेरे पास इतना कुछ नहीं था कि गांव पर चर्चा जैसा महायज्ञ संपन्न कर सकूं। किन्तु सूरज की पहली किरण की तरह प्रयास शुरू करने का निर्णय लिया था।

मैंने एक शुरूआत की जो मेरे पैतृक गांव – जन्मभूमि नोनार से शुरू हुई। पिछले दिनों इत्तेफाक से बहन अर्टिगा से मायके आई थी। Amit Mishra   महराज के पास अर्टिगा है। जब अर्टिगा आई तो मैंने सोचा क्यों ना आज अर्टिगा से गांव पर चर्चा करने चला जाए।

12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद की जयंती मनाई जाती है। मेरे मन मे महसूस हुआ कि गांव की गरीब बस्ती में स्वामी जी के विचारों से जन – जन को अवगत कराया जाए। इंसानियत और गरीबी के विचारों से बचपन और युवाओं को ओतप्रोत होना आवश्यक है।

चूंकि नोनार ; गांव पर चर्चा के प्रयोगशाला का गांव तय हुआ है। अन्य गांव मे जाने के साथ विभिन्न विश्लेषण मैंने नोनार से ही करना तय किया। सर्वप्रथम कदंब और अशोक के दो वृक्ष मुख्य मार्ग के किनारे लगाए गए। जिससे पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश जा सके।

जब हम स्वामी जी की जयंती मनाने के लिए चलने लगे तब मानस ने कहा कि मैं भी चलूं क्या ? पर शायद ले नहीं जाएंगे !

हमारे पास सुविधा थी। अर्टिगा मे पर्याप्त जगह थी कि मानस भी जा सकता था। मैंने कहा कि मैं अच्छे काम के लिए कभी नहीं मना करता। मुझे अहसास है कि तुम चलोगे तो कुछ सीखोगे ही और प्रेरणा प्राप्त होगी !

हम मानस को जन्म जयंती मनाने ले गए। तभी उसने स्वामी जी के चित्र के साथ अपना चित्र लिया , जिस दौर मे युवा सेल्फी लेते हैं। या आकर्षण मे फंसकर वर्दीधारी अथवा किसी बड़े नेता आदि के साथ सेल्फी लेकर पोस्ट कर गौरांवित महसूस करते हैं उस दौर में भतीजे मानस का चित्र स्वामी विवेकानंद के साथ सबसे अद्भुत है। बचपन और युवाओं को जिनका अनुसरण करना चाहिए वैसी तस्वीर है ये !

विज्ञापन हेतु

मैंने जैसा महसूस किया वैसे ही मानस ने अनुकरण किया। वहाँ से वापस आने के बाद उसने जयंती के मेरे वक्तव्य को महसूस कर लिया। चूंकि मैंने वहाँ बच्चों की ओर संकेत करते हुए बचपन के हित मे चर्चा की व युवाओं के हित मे चर्चा की , गांव मे एक अच्छे शैक्षिक माहौल के लिए चर्चा की और रोजगार की बात की !

उसने जो कुछ लिखा उसमें बचपन को केन्द्रित कर दिया। गांव के हाल – चाल को लिखा। एक नई शुरूआत की बात लेकिन इन सबसे बड़ी बात उसने सोमवार की शाम को की जब उसने कहा कि अंकल मेरी ओर से 100 ₹ गांव पर चर्चा के लिए डोनेट हैं।

मैं अंतर्मन से महसूस करने लगा कि कहीं किसी मनोवैज्ञानिक की बात पढ़ी थी कि बच्चे जो देखते हैं – वही सीखते हैं। लगभग पांच से दस वर्ष तक की उम्र मे 75% सीख लेते हैं। शेष जीवन मे वे विषय की पढ़ाई करते हैं और अनुभव प्राप्त करने हैं।

यह वैसे ही है जैसे कोई भी इमारत नींव मे टिकी होती है। प्रत्येक मकान मालिक नींव सबसे मजबूत रखता है। नींव से कोई बिल्डर समझौता नहीं कर सकता , वह नींव मानक के अनुरूप ही बनवाते हैं। फिर उस नींव पर दो – चार मंजिल से लेकर बीस – पच्चीस मंजिल तक की इमारत खड़ी हो जाती है।

ऐसे ही बचपन है। बच्चों को जन्म देना आसान है। असल मायने मे बच्चे पैदा किए जाते हैं या बच्चे अचानक पैदा हो जाते हैं। बिना किसी प्रयोजन के भी इत्तेफाक से प्रेग्नेंसी हो जाती है और फिर एक बच्चे के जन्म होने की सूचना मिल जाती है। लेकिन सनातन संस्कृति मे ही वर्णन है कि अभिमन्यु ने गर्भ में चक्रव्यूह तोड़ना सीख लिया था। किन्तु अंतिम द्वार तोड़ना नहीं सीख पाया था , वजह सभी जानते हैं कि अभिमन्यु की मां अंतिम द्वार के समय सो गई थी। माँ का सो जाना अभिमन्यु की मौत का कारण बन गया। इस तरह से एक धर्म योद्धा को दुष्ट – अधर्मी कौरवों ने मार गिराया था।

इसलिए बच्चे पैदा करने से ज्यादा जरूरी है कि बच्चे सीख क्या रहे हैं ? आज के डिजिटल दौर मे बच्चे क्या सीख रहे हैं ? माता-पिता का व्यवहार कैसा है ? परिवार मे माहौल कैसा है ? बचपन में बच्चों के सामने जो कुछ भी घटित होगा बच्चे ज्यादा से ज्यादा वही सीखेंगे। इतनी सी बात सारांश के रूप मे समझने की कोशिश करनी चाहिए।

मानस ने बचपन से मुझे देखा। मेरे क्रिया – कलाप को देखा। जन्म के बाद वह मुझसे प्रभावित रहा। उसने गांव पर चर्चा के संबंध मे लिखा और 100 ₹ दान देकर गांव पर चर्चा के चलते रहने की बात कही। ये बचपन है और बचपन ऐसा हो तो कैसा होगा ? बच्चों मे दान का गुण कितना आवश्यक है !

यह सच है कि मानस के 100 ₹ से गांव पर चर्चा हमेशा नहीं चल सकती परंतु उसके सहयोग की भावना से जो ताकत मुझे महसूस हुई वो सबसे बड़ी ताकत होगी। ऐसा महसूस हुआ कि गांव पर चर्चा परमात्मा की प्रेरणा से ही शुरू हुई है जैसा कि मैंने सोचा है वैसे ही आगे संपन्न होते चली जाएगी।

यह भी सच है कि दान – सहयोग मिलने से पहले बाधाएं सबसे ज्यादा नजर आई हैं। मुझे याद आ रहा है कि बचपन मे मैंने टेलीविजन पर ध्रुव की तपस्या देखी थी। जो अपने पिता से तिरस्कृत हुआ था। किन्तु जब वह तपस्या करने गया तब इंद्रदेव का आसन डोलने लगा और उसकी तपस्या मे इंद्रदेव ने अनंत बाधाएं उत्पन्न कर दीं परंतु ध्रुव तपस्या करता रहा और अंततः भगवान प्रकट हुए और ध्रुव को तपस्या का फल भगवान की गोद मे बैठने के रूप मे प्राप्त हुआ।

आज भी कुछ बदला नहीं है। जब – जब कोई ध्रुव तपस्या करता दिखता है तब – तब राजनीति के इंद्रों का आसन डोलने लगता है। हाल ही में कुछ इंद्रों का आसन डोलता हुआ नजर भी आया है। ध्रुव की तपस्या मे बाधाएं उत्पन्न की जाने लगीं परंतु गांव पर चर्चा की प्रेरणा ही परमात्मा की प्रेरणा है इसलिए मानस के 100 ₹ दान बाधाओं को समाप्त करने की परमात्मा का वरदान है। मुझे बहुत बड़ी ताकत मिली है और खुशी है कि गांव पर चर्चा की सोच अनवरत साकार होती रहेगी। जैसा अंतर्मन मे है वैसा सबकुछ साकार होगा और समाज के सामने सच्चाई और शोध प्रकट हो सकेगा। शनैः – शनैः ही सही परंतु यह संभव होगा।
___________________

{ वामपन्थी पत्रकार व विचारकों को देश – विदेश से अथाह धन मिल रहा है। गांव पर चर्चा के लिए आप हमारी मदद करें , जिससे हम पत्रकारिता व विचारों के माध्यम से सशक्त होकर काम कर सकें। कृष्ण धाम ट्रस्ट के   ” सोशल केयर फंड ” में 100 से 1000 ₹ या अधिक डोनेट करें.
{ Saurabh Chandra Dwivedi
Google pay ( mob. ) – 8948785050
Union bank A/c – 592902010006061
Ifsc – UBIN0559296
MICR – 559026296
Karwi Chitrakoot }

image_printPrint
5.00 avg. rating (98% score) - 1 vote