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@Saurabh Dwivedi

स्वराज कालोनी के पास कोरोना स्वराज हो गया। पिछले दिनों स्वराज ट्रैक्टर एजेंसी की बगल वाली गली , जो प्रसिद्ध इस बात के लिए है कि इस गली के अंदर सांसद प्रतिनिधि शक्ति प्रताप सिंह रहते हैं। स्वराज भारत की परिकल्पना है और इसी स्वराज के लिए अंग्रेजों से संघर्ष हुआ , अभी भी खुशहाल जिंदगी हेतु आंतरिक – वास्तविक स्वराज का संघर्ष जारी है परंतु स्वराज कालोनी के पास कोरोना स्वराज आने से सांसद प्रतिनिधि ने लाकडाउन को लेकर गूढ बातें कहीं।

एक बार हम आपको टोटल लाकडाउन की ओर ले चलते हैं। जब सड़कों पर ट्रैफिक जीरो टालरेंस हो गया था। दुनिया भर के वाहनों की रफ्तार थम चुकी थी। गैरजरूरी आवागमन पर लगाम लग गई थी।

सरिताएं अपने वेग से अविरल बह रही थीं , इनमे कोई नहाने वाला नहीं था और ना ही शौंच क्रिया संपन्न करने वाला था। फैक्ट्रियों का केमिकल नालों के जरिए नदियों मे मिलना बंद हो गया था।

आकाश एकदम साफ हो गया था। आसमानी आकाश अपने रंग मे रंग गया था। पेड़ों के पत्तियों से धूल छंट गई थी , हरी – भरी पत्तियों से रमणीय सुंदरता नजर आने लगी थी। हवा मे प्रदूषण का स्तर घट गया था।

इस बीच एक रिपोर्ट आई कि प्रदूषण मे अपने आप बड़ी कमी आई है। यह खबर सुनते ही सब मे अनायास खुशी व्याप्त हो गई , चूंकि ध्वनि प्रदूषण मे भी लगाम लगी थी। एक तरह से प्रकृति संतुलन स्थापित हो रहा था।

यही सब सांसद प्रतिनिधि शक्ति प्रताप सिंह अपनी दिली जुबान से कह रहे थे। मेरे समझ बैठे हुए सांसद प्रतिनिधि कुछ पलों के लिए दार्शनिक भाव मे नजर आने लगे। लगा ही नहीं कि कोई नेता बोल रहा है और अगर नेता बोल रहा है तो नेता ऐसा ही होना चाहिए , नेतृत्व के सही मायने यही हैं कि वह वर्तमान और भविष्य के वक्त की जरूरत को समझे और प्रकृति के साथ संतुलन स्थापित करने के लिए तत्पर रहे।

वह कहने लगे कि लाकडाउन के समय इंसान को वह सबकुछ मिलो जो भागमभाग की जिंदगी मे उससे बहुत दूर निकल चुका था। वह भावुक होकर परिवार की बात करने लगे , बोले कि कमाई के नशे में इंसान मशीन हो गया था। वह तो लाकडाउन के समय पता चला कि परिवार को घर के मुखिया की जरूरत कितनी है।

वह बोले कि परिवार मे समन्वय होगा , तभी मोहल्ले मे समन्वय होगा और जब ऐसा समन्वय विस्तार लेगा तब समाज और देश मे समरसता आ जाएगी। समरसता कोई स्थिर होकर खंभे की भांति स्थापित होने वाली चीज नहीं है अपितु यह मन – मस्तिष्क , आत्मा और देह के आपसी समन्वय की भांति है जिसके लिए निरंतर प्रयास किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि मनुष्य की भलाई प्रकृति के साथ चलने मे है। प्रकृति के खिलाफ जाकर हम स्वयं के लिए दुश्मनी तैयार करते हैं। चूंकि विध्वंस असंतुलन से ही होता है। इसलिए लाकडाउन के समय जो कुछ भी अच्छा हुआ उसके लिए लाकडाउन लगना बहुत जरूरी हो जाता है , कोरोना संक्रमण के बाद भी !

फिलहाल कोरोना से जंग जीतने के लिए जनता को सावधानी बरतनी चाहिए। ये बड़ा अवसर है कि हम सभी दैहिक दूरी के नियम का पालन करें , भीड़ – भाड़ की जगह पर मास्क अवश्य लगाएं। यात्रा के दौरान सैनेटाइजर ब्रह्मास्त्र की तरह साथ रखें। घर पर साबुन से हाथ धुलें। अनावश्यक यात्रा करने से बचें और हाथ मिलाने की जगह दिल से दिल मिलाएं। बड़ों को प्रणाम कहकर आदर करें , इन समस्त प्रकार की सावधानियों से कोरोना के खिलाफ जंग जीती जा सकती है।

अंत में उन्होंने कहा कि इम्यूनिटी बूस्ट करने के लिए गिलोय , तुलसी अर्क का भी सेवन कर सकते हैं। साथ ही शहद भी प्राकृतिक इम्यूनिटी बूस्टर है। योग समय निकालकर करें , भले पांच मिनट ही करें।

कुलमिलाकर उन्होंने संक्रमण समाप्त होने के बाद भी वर्ष मे एकाध बार लाकडाउन करने की आवश्यकता पर जोर दिया। ऐसा इसलिए कि प्रदूषण घटता है और परिवार का समागम होने से रिश्तों मे ताजगी आ जाती है। इंसान मशीन की तरह कमाने से इतर इंसान की तरह प्रेम – स्नेह करने लगता है। एक बार अर्थव्यवस्था के मोह को छोड़कर लाकडाउन लगने से बहुत कुछ साध लिया जा सकता है। जनता को देश और जिंदगी के लिए स्वयं मांग करनी चाहिए , बहरहाल अभी कोरोना को हराकर जिंदगी की विजय हो।

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