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By – Saurabh Dwivedi

बच्चों को गमले का पौधा नहीं होना चाहिये। ये बात कल एक मुलाकात में आलोक कुमार पाण्डेय जी ने कही। बिलकुल हृदय को छू लेने वाली बात कही कि जरूरत से ज्यादा सुविधाएं भी इंसान को कमजोर बना देती हैं।

गमले के पौधे को अगर समय से पानी नहीं मिला तो वो कुम्हलाने लगता है। गमले खुले में रखे हों तो तेज धूप और तेज हवा से उनकी हालत बद से बदतर होने लगती है। तेज हवा के कारण वो टूट कर गिर जाया करते हैं। अत्यधिक बारिश होने पर भी गमले के पौधे सड सकते हैं।

कुल मिलाकर के अगर देखा जाये तो थोडी सी प्रतिकूल परिस्थितियां गमले के पौधों के जीवन को तहस नहस कर देती हैं। परंतु वो वृक्ष जिनकी जडें जमीन के अंदर तक समायी रहती हैं और इस कदर मजबूती से चौतरफा फैल जाती हैं कि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी वे वृक्ष स्वयं को संभाल लेते हैं। अगर बरसात नहीं होती तब धरातल के पानी से उत्सर्जन के माध्यम से वे अपने लिये पानी प्राप्त कर लेते हैं।

आंधी तूफान आसानी से उनका कुछ नहीं बिगाड पाते हैं। इस प्रकार ही इंसान का जीवन है जिन्हें आवश्यकता रहती है एक विशाल वट वृक्ष बनने की जिसकी जडें धरातल पर समा जाती हैं और अपनी छांव से दूसरों को राहत प्रदान करते हैं।

मानव जीवन में परेशानी विपत्तियों के तमाम आंधी तूफान आते जाते रहते हैं। बहुत एक बार जीवन में प्रकाश देने वाला सूर्य अस्त हो जाता है और अंधेरा कायम हो जाता है। जो गमले के पौधे का समान रहते हैं वे अक्सर अपना जीवन खत्म कर लेते हैं।

जो विशाल वट वृक्ष की भांति रहते हैं, पतझड के मौसम में अर्थात विपत्तियों के समय उनके पत्ते जरूर झड जाते हैं लेकिन कुछ समय उपरांत पुनः नये हरे भरे पत्ते उग आते हैं और पुनः एक नई जिंदगी जीने लगते हैं।

इसलिये हम इंसानों को जड से मजबूत होना चाहिये। सुविधाओं को अपनी कमजोरी नहीं बनाना चाहिये। मानव शरीर में आटोमैटिक अनुकूलन होता है जो अंदर ही अंदर अपना काम करता है। जीवन में जो वाह्य विपरीत प्रभाव पड़ता है उनसे मजबूती से लडना हमारा काम होता है।

जो इंसान संस्कार, संस्कृति, शिक्षा से भलीभांति परिपूर्ण है वे अपने जीवन में विशाल वट वृक्ष की तरह विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए नया जीवन जीते हैं और गमले के पौधे की तरह कुम्हलाते नहीं हैं।

फैसला आप पर है आप शोभा की वस्तु बनना चाहते हैं या विशाल वट वृक्ष बनना चाहते हैं।

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