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By – satendra shukla

“संस्मरण”

मेरे गांव में एक “नउआ बाबा” रहते थे । उनका परिवार अब भी रहता है । पर उनकी बात एकदम अलग थी । पिता जी जब भी हमें उनके यहां बाल कटवाने भेजते थे वो बाकायदा हमारे बालों का “बंगला स्टाइल” काटते थे । उस समय गांव में “कटोरा कटिंग” का अविष्कार नहीं हुआ था । जो सबसे अच्छी कटिंग उस समय तक होती थी उसका नाम “बंगला कटिंग” ही था । वो अक्सर बाल काटते हुए मजाक में कहा करते थे कि “नाती थोड़ा सा कान काट लूँ क्या तुम्हारा ? मेरी गर्दन हिलती है ना तो डॉक्टर ने बताया है कि किसी बच्चे का थोड़ा सा कान काटकर कुर्ते की जेब में रखोगे तो गर्दन नहीं हिलेगी ।” उस समय मुझे बहुत डर लगता था कि कहीं सही में कान न काट लें, मैँ डर के मारे कान को कंधे से लगाकर टेढ़ा हो जाया करता था। मैं घर आकर मां को सारी कहानी बताता तो माँ हँसने लगती थी । नउआ बाबा हमेशा माँ को “गुटेवा” कहकर पुकारते थे । इसका अर्थ “पुत्रवधू” होता है ये बाद में पता चला ।

वही नउआ बाबा कभी किसी की शादी का निमंत्रण देने तो कभी किसी के तेल, मायन, वरिच्छा, तिलक से लेकर “शुद्ध” (मृत्यु के उपरांत होने वाली एक क्रिया) तक का बुलावा देने आया करते थे । वो जब भी आते थे मुझसे दुबारा पूछते थे- नाती!! कान …….थोड़ा सा …….दवाई भर को…? मैं डरकर अंदर भाग जाता था ।

वो जब भी नेवता लेकर आते थे तो बताते थे कि “चूल्हा नेवता” (यानी पूरे परिवार का) है या सिर्फ एक आदमी का । नेवता की एक बुंदेली फॉर्म “मंसवन भर” थी । जिसका अर्थ होता था सिर्फ पुरुषों का नेवता है ।
नउआ बाबा शादी की चिट्ठी लाते और ले जाते थे । नउआ बाबा, जिस लड़के की शादी होती थी उसे “जामा” पहना कर, छाता लगाकर राजा की तरह गाड़ी तक बैठाने जाते थे । दूर की बारात हो तो कहानियां भी सुनाया करते थे । अगर लड़की की तरफ से “नाउन” (नाई की पत्नी) उनकी उम्र की हो तो मजाक भी कर लेते थे ।
पंडित जी भले कोई विधि भूल जाएं पर नउआ बाबा कभी नहीं भूलते थे । सुखी के साथ सुखी हो लेते थे और दुखी के साथ दुखी । कई बार तो ऐसा भी हुआ कि सुबह बारात विदा करवा कर लाते और शाम को किसी की “अंतिम बारात ” की सूचना पूरे गांव में पहुंचाते ।

ऐसे थे नउआ बाबा….

लेकिन इन यादों को सालों बीत गए । अब उनके घरवालों ने यह सब काम लगभग छोड़ दिया है । उनकी अगली पीढ़ी बम्बई चली गई है । वहीं काम धाम करती है ।

कल एक मित्र बता रहा था कि नउआ बाबा नहीं रहे । (हालांकि यह काफी पुरानी घटना है पर मुझे देर से पता चली )

नउआ बाबा मंगल और बृहस्पतिवार को बाल नहीं काटते थे ॥

आज भी “मंगल” ही है सो आज नउआ बाबा की याद आ गई…..

सुना है बीमार थे ।।

“तुम्हें दवाई के लिये अपना थोड़ा सा कान न काटने देने वाले नाती की तरफ से

अश्रुपूरित श्रद्धांजलि नउआ बाबा!!!!!!

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2 COMMENTS

  1. सभी के जीवन मे जो ग्रामीण परिवेश से है ऐसे ही नउआ बाबा रहे पर कोमल ह्रदय में ही उनकी यादे जीवित है।नउआ का जीवन अपने आप मे बहुत कुछ छुपाये है।आधुनिक जीवन शैली का असर दिखाई पड़ रहा है।