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बिडंबना ऐसी है कि शुरूआत कहाँ से करूं ? बयाँ कैसे करूं ? किंतु इस समाज की वो बुराई है, जिसके लिए जंतर मंतर में आंदोलन और भारत के कोने कोने में कैंडिल मार्च निकाला जाता है। किंतु इस बुराई का अंत न कानून कर सका और न ही इस प्रकार के आंदोलन कर सके।
ये आंदोलन स्वसुखाय हेतु क्षणिक होते हैं। अंदर से उद्वेलित इंसान का गुस्सा और मानसिकता फारिग हो जाते हैं। इसके बाद आदमी हो या औरत निढाल शांतचित्त हो जाते हैं।
किंतु समस्या की जड़ मानसिकता का अंत करने के लिए अनवरत प्रयास नही होता है। 
असल में पिछलो दिनों मैं मार्केट में किसी को या कुछ तो खोज रहा था। मेरी नजर इधर उधर दौड़ रही थी। पुरानी बाजार पोस्ट आफिस के पास साइड में बाइक पार्क कर चुका था। 
मेरे सामने से एक लड़की आ रही थी। मैं इस दुनिया की किसी भी लड़की की सुदंरता की प्रशंसा तक नही कर सकता, ये मेरा व्यक्तिगत अंदुरूनी मामला है। किंतु कल्पना कर सकते हैं कि हर लड़की की तरह वो भी एक लड़की थी।
लड़की सामने से चली आ रही थी। एकदम सीधी नजरों से आगे बढ रही थी। मेरे सामने लगभग 33+ उम्र के दो युवा खडे थे। जिनमें से एक को मैं जानता था। उनकी यहाँ पर कोई बात नही हैं।
लेकिन उनके साथ मे खडे लडके की नजरों में जब मेरी नजर पड़ी तो उसकी नजरें वृत्ताकार लड़की का पीछा कर रही थीं। लड़की उसके सामने से जैसे गुजरती है। वैसे ही बराबर रफ्तार से नजरें मुआयना कर रहीं थी।
आप समझ सकते हैं कि कैसा मुआयना कर रहीं थीं। अब मैं क्या लिखूं। कैसे वर्णन करूं ? किंतु लड़की सड़क क्रास कर रही थी और लड़के की नजरें भी सड़क को चीरती जा रहीं थीं। 
यकीनन मैं समझ चुका था कि साइलेंट रेप कैसा होता है। मानसिक बलात्कार किसे कहते हैं। उस बेचारी लड़की को पता भी नही होगा कि उसका मानसिक बलात्कार हो चुका है। उसका सौभाग्य है कि ऐसे लडकों से अकेले में कहीं सामना नही हुआ वरना ये वही लड़के हैं जो राह चलती लड़की को एडल्ट कमेंट करते हैं। 
ये भूल जाते हैं कि इनकी गर्भस्थ बहन भी सड़क से निकलेगी और उसे भी कोई तुम्हारे जैसे लड़का इस तरह कमेंट करेगा तब कितना दर्द होगा ? बहन डिप्रेशन में जा सकती है। आजीवन वो इन पलों को नही भुला पायेगी तो सोचो कि मरते दम तक किस तरह तुम्हारा मानसिक बलात्कार और फब्तियां उसका पीछा करेंगी। 
मैं इसलिये हमेशा से सोचता हूं कि भारत की सामाजिक व्यवस्था में कहीं कुछ तो गडबडी है। बेशक आप सड़क पर प्रदर्शन कर लीजिए, कडा से कडा कानून बना लीजिए किंतु शायद रेप तब तक बंद नही होगें जब तक समाज में आमूलचूल परिवर्तन के साथ मनचलों की मानसिक चिकित्सा नही हो जाती। ये दर्दनाक खेल मानसिकता का है। 
भारत के सामाजिक लोगों को मानसिक परिवर्तन के लिए काम करना चाहिए तब इस प्रकार के बदनुमा दाग सरीखे समाज को शूली में टांगने वाले अपराध से मुक्ति मिल सकती है या कुछ हद तक काबू में तो लाया ही जा सकता है वरना मेंटल रेप का अंत कभी नही होगा।

हो सकता है तो बताइयेगा जरूर कैसे हो सकता है ?

BY – Saurabh Dwivedi

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