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@Saurabh Dwivedi

समाजसेवा युवाओं के बीच और हर किसी के बीच चर्चा व आकर्षण का विषय है। आजकल युवा समाजसेवी लिखा जाना और समाजसेवा कर किसी ना किसी प्रकार के लक्ष्य को साधना चलन मे आ चुका है परंतु कुछ ऐसे शख्स हैं जो वास्तव मे समाजसेवा की जीती – जागती शख्सियत हैं। अशोक दुबे की समाजसेवा का यह सबसे बड़ा उदाहरण है जो एक पीड़ित को नई ऊर्जा – नई जिंदगी प्रदान करती है। युवा पीड़ित शख्स की कहानी जानकर आत्मा कांप जाएगी !

पीड़ित शख्स गिरीश चंद्र उत्तर प्रदेश बुंदेलखण्ड के बांदा जनपद के निवासी हैं जो अपने गांव धूधूई – छिलोलर से कमाने के लिए महाराष्ट्र के पुणे पहुंचे थे। एक युवा घर की दहलीज पार कर परदेश मे प्रवेश करता है ताकि कमाकर अपना जीवन निर्माण कर सके। किन्तु गिरीश की किस्मत मे जेल की सलाखों के पीछे जाना लिखा था।

अगर धार्मिक – आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखें तो यह पूर्व जन्म के कर्मों का फल भी कहा जा सकता है। अथवा इसी जन्म का कोई ऐसा कर्म जो एक निर्दोष को दोषी करार देने के लिए पर्याप्त हो जाता है , बतातें हैं कि गिरीश पुणे की एक सोसायटी में सुरक्षा कर्मी के रूप में काम कर रहे थे।

गिरीश पहली बार किसी सोसायटी मे सुरक्षा कर्मी के रूप मे तैनात हुए थे। अतः उन्हें विशेष ज्ञान नहीं था कि एक सुरक्षा कर्मी को स्वयं के बचाव के लिए भी क्या-क्या करना पड़ता है ? एक दिन कोई एक शख्स आता है और गिरीश को 20 ₹ का नोट पकड़ाता है।

परदेश मे छोटी सी रकम भी बड़ी रकम बन जाती है। चूंकि मेहनत की कमाई में दस – बीस रूपए अलग से मिल जाना नाश्ता – चाय आदि के लिए बड़ी राहत का विषय हो जाता है। यही असल बात है कि गिरीश बीस ₹ लेने से इंकार ना कर सके। ये बीस ₹ उसको सलाखों के पीछे ले जाने के लिए अहम सबूत होंगे यह गिरीश को पता नहीं था।

अगले पल क्या घटित होने वाला है ? यह किसी को पता नहीं रहता। गिरीश को भी पता नहीं था कि सोसायटी मे किसी की हत्या होने वाली है। और हत्यारा वह व्यक्ति निकलेगा जिसने उसे बीस ₹ दिए थे।

हत्या करने की वारदात के सिवाय गिरीश को रूपया देते हुए कि वारदात सीसीटीवी मे कैद हो चुकी थी। यह साफ नहीं दिख रहा था कि कितने की नोट है। लेकिन यहाँ सबसे बड़ी गलती सोसायटी रजिस्टर मे विजिटर की एंट्री ना होना था। जो गिरीश से मोहवश या किसी भी कारण से रह गई थी , वह समझ नहीं पाया था कि एंट्री करना कैसे भूल गया ?

गिरीश की यही गलती उसे वर्षों की सजा बन गई। पुलिस ने हत्या के कारण में रजिस्टर मे एंट्री ना होने और उस शख्स से रूपए लेने के जुर्म मे गिरफ्तार कर लिया। इस तरह गिरीश हत्या के जुर्म में अनजाने सहयोग के शक मे सलाखों के पीछे पहुंच गया।

इधर गिरीश के परिजन उसे बचाने के लिए परेशान थे। उसका भाई पुणे के तमाम उत्तर भारतीय लोगों से मिलता रहा और इस बीच उसने भाई को बचाने के लिए लाख – दो लाख रूपये भी खर्च कर दिए परंतु भाई को न्याय मिलता नहीं दिख रहा था।

पुणे मे उत्तर भारतीय समाज के साथ हमेशा खड़े रहने वाले समाजसेवी अशोक दुबे तक उसका भाई पहुंचता है। यह पता चला कि उन्होंने गिरीश के न्याय की लड़ाई लड़ने का वचन दिया। इधर लगभग तीन वर्ष से लगातार गिरीश के वकील का खर्च और मुकदमे से संबंधित अन्य तमाम खर्च श्री दुबे ने उठाया। उन्होंने गरीब परिवार को लाखों रुपये के बोझ तले डूबने से बचाया और स्वयं के लाख – दो लाख खर्च कर पीड़ित को न्याय दिलाया।

जब गिरीश के पक्ष मे सही तथ्य रखे गए और यह साफ हुआ कि उसको बीस रूपए टिप मिली थी। जो अमूमन अनेक लोग गार्ड को चाय – पानी के लिए पकड़ा देते हैं और इस बीच वह एंट्री करना भूल गया , चूंकि वह पहली बार सुरक्षा गार्ड के रूप मे तैनात था। वरिष्ठ समाजसेवी श्री दुबे के अथक प्रयास से एक युवा को नवजीवन मिला और परिवार को बड़ी राहत प्रदान हुई है।

गिरीश अब फ्लाइट से अपने गांव वापस आ रहा है। श्री दुबे ने गिरीश का टिकट करा कर परिवार के पास भेजने का प्रबंध कर दिया है। तस्वीर मे गरीश श्री दुबे के प्रति कृतज्ञ नजर आ रहा है। उन्होंने गिरीश को सलाखों के पीछे से निकालने के लिए समर्पण भाव से कार्य किया जो अब बहुत कम देखने को मिलता है। ऊपर से परदेश मे कोई किसी का नहीं होता , लोग तनिक सी मदद के लिए खड़े नहीं होते ! लेकिन इस संसार मे श्री दुबे जैसे समाजसेवी भी हैं जो निःस्वार्थ भाव से खामोशी से समाजसेवा करते हैं , जिससे कभी-कभी रोचक प्रेरणात्मक प्रसंग उनके सत्कर्म से उभरकर वर्तमान चकाचौंध की दुनिया में प्रेरणा के वाहक सिद्ध होते हैं।

उनके इस कार्य की समाज मे बड़ी प्रशंसा है। आपकी अद्वितीय समाजसेवा के कथानक जुबान मे प्रचलित हो चुके हैं। आप कहते हैं कि परमात्मा की कृपा से और मेहनत की कमाई से जो कुछ भी कमाते हैं उससे प्रत्येक वर्ष गरीब – जरूरतमंद की मदद कर इंसानियत का कर्तव्य निभाना अच्छा लगता है , और ऐसा करके अपने जीवन को परमात्मा के प्रति कृतज्ञ महसूस करता हूँ। उन्होंने कहा कि समाज से अंधकार मिटाने के लिए समाजसेवा का दीपक हमेशा प्रज्वलित रहे , इस उद्देश्य से कुछ प्रसंग अगर समाज के सामने आएं तो यह भविष्य में आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणात्मक ऊर्जा का काम करेंगे।

समाजसेवी अशोक दुबे के साथ गिरीश

कृपया कृष्ण धाम ट्रस्ट के सोशल केयर फंड मे साहित्य और गंभीर पत्रकारिता हेतु 100 , 200 , 500 और 1000 व ऐच्छिक राशि दान कर हमें ऊर्जा प्रदान करें जिससे हम गांव पर चर्चा सहित ईमानदारी से समस्याओं पर प्रकाश डालकर समाधान करने मे सहायक हों ….
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