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@Saurabh Dwivedi

हनुमानजी के सिंदूर का तिलक लगाना धार्मिक और सहज मानसिकता का प्रतीक है। कोरोना वायरस से पहले सिंदूर से भरी तस्तरी ऐसे ही रखी रहती थी , जो कोरोना वायरस के बाद भी यथावत है। नांदा के हनुमानजी में नियमों के विरूद्ध दर्शन व धार्मिक क्रियाओं से वायरस के संक्रमण अधिकता आने के अवसर बढते नजर आ रहे हैं।

ब्लाक मुख्यालय पहाड़ी से मात्र आठ किलोमीटर की दूरी पर प्रसिद्ध नांदी के हनुमानजी का मंदिर है। इन हनुमानजी की विशेषता है कि एक पैर पाताल लोक मे समाया है। चर्चा रही है कि संत तुलसीदासजी यहीं हनुमान – पाठ करने आते थे। इस स्थल की धार्मिक मान्यता श्रृद्धालुओं के हृदय में अत्यंत गहरी है।

अनलाक वन में धार्मिक स्थल के पट खोलने का आदेश हुआ। इस आदेश के साथ श्रद्धालुओं के पट भी खुल चुके हैं। वह भंडारा करने को भी पूर्व की भांति पहुंचने लगे हैं। भंडारा करने की ना मनाही है और ना ही सोशल डिस्टेंस का पालन होता दिख रहा है। संभवतः भंडारे मे कोरोना के खिलाफ बनाए गए नियमों का पालन भी संभव नहीं है।

किन्तु एक बड़ी वजह है कि सिंदूर की तस्तरी रखना आवश्यक है क्या ? मंदिर के प्रबंधन कर्ताओं को इतना ज्ञान होना चाहिए कि एक ही तस्तरी में सैकड़ो और कम से कम हजारों भक्तों की उंगलियां डूबेगीं !

यह दृश्य मैंने अपनी आंखो से देखा और देखते ही हैरतअंगेज रह गया। कैसे मासूम बच्चियां और बुजुर्ग महिलाएं सिंदूर की तस्तरी में उंगली डुबोकर माथे पर टीका लगा रही थीं। गांव के बुजुर्ग आदमी भी ऐसा ही करते नजर आ रहे थे। छोटे – छोटे बच्चे उस तस्तरी को छू रहे थे। मंदिर प्रांगण में कहीं कोई नया नियम समझ नहीं आ रहा था। समस्त दृश्य कोरोना वायरस से पहले का नजर आ रहा था तो क्या हम इस वायरस की जद मे आने से बच पाएंगे अथवा जिंदगी मुफ्त में मौत का उपहार बन जाएगी ?

एक समय थाना पुलिस माइक से बोलते हुए निकलती थी। इसका असर यह होता था कि लोग कम से कम सहम जाते थे। धीरे-धीरे ही सही पर लोगों में बदलाव आ रहा था। लेकिन अनलाक वन के साथ पुलिस का अलाउंस लाकडाउन हो गया अर्थात साइलेंट मोड पर आ गया। जिससे गांव की कम पढ़े-लिखे समाज को शायद वायरस के खतरे का आभास होना कम हो गया है। इस ओर प्रशासन को पुनः ध्यान देने की आवश्यकता है !

मंदिर प्रबंधन को संकटमोचक के अस्तित्व को ध्यान रखना चाहिए और कोरोना वायरस के मायावी खतरे को भी  समझना चाहिए। पट खुल जाने का अर्थ वायरस को आमंत्रण देना नहीं है। पुजारियों को सोशल डिस्टेंस का पालन करवाना चाहिए। ऐसे कुछ लोग होने चाहिए जो श्रद्धालुओं से शारीरिक दूरी और इधर-उधर ना छूने का आग्रह कर सकें। आवश्यकता पड़ने पर पुलिस सेवा की मांग की जा सकती है।

सिंदूर की तस्तरी पर फौरन रोक लगाई जानी चाहिए। अन्यथा एक संक्रमित व्यक्ति के छू लेने के बाद जाने कितने संक्रमित हो जाएंगे ! जनपद प्रशासन मंदिरों पर निगरानी समिति से नजर रखवाए अन्यथा बारिश के मौसम तक हम कोरोना वायरस को संभाल नहीं पाएंगे।

अभी बहरहाल भक्तों को महसूस करना चाहिए कि ईश्वर आत्मा से खुश होते हैं। वह आत्मा की प्रार्थना को स्वीकार करते हैं। परमात्मा का मानसिक दर्शन भी हो जाता है , यदि आप मन ही मन महसूस कर प्रभु को याद करेंगे। सूक्ष्म देह से प्रभु के मंदिर में विराजेंगे अथवा प्रभु सूक्ष्म देह से आपके समक्ष होगें और आंख बंद कर मानसिक दर्शन कर के प्रभु की कृपा प्राप्त कर लेंगे। 
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