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जिंदगी में किरदार का महत्व है। किरदार निभाने से समाज और राष्ट्र का हित होता है। माँ मंदाकिनी की अविरल धारा के लिए भी किरदार निभाया गया।

यह बड़ी सरल सी कहानी है ; नदी की धारा कर्वी के आगे से टूटनी सूखनी शुरू हो जाती है और ग्रामीण क्षेत्र तक रेगिस्तान में तब्दील हो जाती है। बिन बरसात के जल दर्शन होना असंभव सी बात है और मानव जीवन से लेकर पशु पक्षी का जीवन संकटमय हो जाता है।

संकटमोचन कौन बनेगा ? जो भागीरथ प्रयास करेगा वही कलयुग में प्रेरणात्मक संकटमोचक होगा। जिले के समाजसेवी अभिमन्यु भाई ने मंदाकिनी पुनर्जीवन हेतु चिंतन संवाद बुलाए और यहीं से ग्रामीण स्तर तक संवाद कार्यक्रम चलाया गया।

हमारे साथ चंद्रप्रकाश खरे जी ने भी नदी समाज की नागरिकता ली , फिर यह कारवां आदित्य सुनील गर्ग जैसे नदी समाज नागरिकों की तरह बढ़ता गया। यहाँ हम सब एक दूसरे के अनुसरणकर्ता व नेतृत्वकर्ता थे। इस प्रकार कि अभिमन्यु भाई जो कहते उसका अनुसरण हम करते और जो विचार हमारे होते उनका अनुसरण अभिमन्यु भाई ने किया। यही नेतृत्व कला है। जो अच्छा अनुसरणकर्ता होगा वही अच्छा नेतृत्वकर्ता होगा , लीडरशिप का यही अर्थ है।

किसी भी कार्य के संपन्न होने में कठिनाइयां आती हैं। स्वयं मैं इरिटेट होकर खरे जी से कहता कि अभिमन्यु अचानक से बोल देते हैं , सौरभ ये कर लो , अच्छा वो भी कर लो। आज कुछ नहीं करना था फिर भी काल कर दिए कि इस संबंध में नदी के किनारे संवाद करना है। ऊफ अब बताइए आप कैसे संभव हो सकता है फिर भी मैं चला जाता और कार्य संपन्न होता। जिंदगी में किसी बड़े का इस तरह होना भी सफलता का वट वृक्ष होने जैसा होता है।

इस बीच उंगलियां उठाने वाले , हतोत्साहित करने वाले भी इंटरवल की तरह आते रहे पर हम भी अंजना ओम कश्यप की तरह कहते कि वक्त है छोटे से ब्रेक का बने रहिए आज तक के साथ अर्थात बने रहिए अपने हालात पर हम तो ब्रेक के बाद भी यही काम करेंगे।

संवाद के साथ साथ सबने अपनी-अपनी भूमिका का निर्वहन किया। इधर मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश को खरे जी ने मंदाकिनी नदी की अविरल धारा हेतु प्रेम पत्र थमा दिया तो उधर अभिमन्यु भाई सूरज कुंड के पास उपवास कर रहे थे।

मैं थोड़ी समस्याओं से घिरा था तो इस बीच दूर से ही साथ निभा रहा था। चाह कर भी सूरज कुंड तक नहीं पहुंच सका। किन्तु लेखन से भूमिका का निर्वहन किया और सम्मिलित प्रयास का परिणाम यह मिल रहा है कि जिलाधिकारी विशाख जी ने मंदाकिनी नदी की अविरल धारा हेतु प्रशासनिक स्तर से कार्य शुरू करा दिए।

अब उत्साह बढ़ गया और जिलाधिकारी चित्रकूट से कल संयुक्त बैठक हुई तो कुंड बनाने एवं बंधोइन बांध में तकनीकी परिवर्तन करने के संबंध में चर्चा के संग कुछ ही दिनों में नदी समाज के वर्कशाप आयोजित करने पर भी सहमति बन गई। यह रही छोटी – मोटी बातें। हाँ एक सबसे बड़ी बात अदृश्य ताकत के रूप में समाजसेवी अशोक दुबे भैया का सहयोग और संकटमोचक होने का विश्वास बहुत बड़ी ताकत है।

अब कहना यह था कि कुछ लोगों ने कहा था कि सौरभ द्विवेदी आप पत्रकार हो ? , भाजपाई हो ? या समाजसेवी हो ? तो मेरा जवाब यही था कि जिसको जो बनना है वो बना रहे , मैं देश और समाज के लिए सामर्थ्य अनुसार किरदार निभाता हूँ। ये है किरदार की थ्योरी से कार्य व व्यक्तित्व के सफल होने का मंत्र।

कुलमिलाकर के नदी के पुनर्जीवन में चिरयुवा जिलाधिकारी विशाख जी का सबसे बड़ा योगदान होगा और भविष्य में चित्रकूट के भागीरथ के नाम से जाने जाएंगे।

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