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@Saurabh Dwivedi

आनंद शुक्ला का विरोध चर्चा का विषय बना हुआ है। एकाएक विधायक आनंद शुक्ला के खिलाफ विरोध के स्वर फूट पड़े हैं। विरोध करने के नये – नये बहाने बनाए जा रहे हैं। नये – नये आयाम गढ़े जा रहे हैं। इस विरोध के पीछे वही लोग हैं जो आनंद शुक्ला को चुनाव हरवाने की घनघोर इच्छा पाले हुए थे। इनके बारे में जानना आवश्यक है कि हरा नहीं पाने की टीस में पीछे से नए – नए प्रयोग क्यों कर रहे हैं ?

असल में कोरोना आपदा के शुरूआती समय मे कोई भरोसा नहीं कर सकता था कि आनंद नाम ही स्वर्णिम इतिहास बन जाएगा। विधायक बनना ना बनना अलग पहलू है पर विधायक बनकर जनसेवा करना अलग पहलू है।

अब कोई सोच नहीं सकता था कि एक युवा विधायक ऐसी सेवा कर जाएगा। इसलिए शुरूआती दिनों में वही तंज कसा गया कि विधायक तो लखनऊ मे हैं और जनता यहाँ अकेली है , वहीं कुछ लोग फेसबुक लाइव और जन चर्चा के माध्यम से जनता के मसीहा बनने का प्रयास शुरू कर दिए।

अब वह विधायक हैं तो लखनऊ तो जाएंगे ? इत्तेफाक से लखनऊ मे उनका घर है तो विधानसभा भी वहीं है भाई ! लेकिन इतने से मौके मे वही हवा – हवाई बातों की राजनीति और जनता के दुख – दर्द बांटने के घड़ियाली आंसू बहाए जा रहे थे।

जो कोई नहीं सोच सकता था। उस सेवा के काम की शुरुआत मऊ – मानिकपुर विधायक ने कर दी। लगातार जनसेवा की तस्वीरें जब उनके समर्थक शेयर करने लगे तो उन तस्वीरों से हवा – हवाई मिस्टर बुंदेलखंडी नेता टाइप के लोगों की जमीन खिसकने लगी , खैर तस्वीर पर चर्चा और इस चर्चा का पटाक्षेप पूर्व मे हो चुका है।

इसके बाद भी कुछ लोगों की दिली तमन्ना है कि उन्हें टिकट मिल जाए और टिकट कब मिलेगा ? जब आनंद शुक्ला का टिकट कटेगा ! अब टिकट कटवाना कौन चाहता है ? जो आनंद शुक्ला को बाहरी घोषित करके चुनाव हरवाना चाहते थे। जो यह नहीं चाहते थे कि आनंद शुक्ला को भाजपा से टिकट मिले और वह विधायक बनें।

जब एक युवा विधायक हो गया और उसने वैसी राजनीति करनी शुरू की जिसकी यहाँ की जनता को जरूरत है , युवाओं को जरूरत है। अब एक और बात सोचिए कि जो समस्याएं पिछले पचपन वर्षों की हैं , उन समस्याओं का खात्मा भी सिर्फ ढाई साल मे वर्तमान विधायक से चाहते हैं , बहाना इसी का है। लेकिन बतौर विधायक आनंद शुक्ला ने जो सेवा कार्य किया , विकास का कार्य किया और राजनीति मे सकारात्मक परिवर्तन का रास्ता बनाया वह इन सभी तथाकथित जन हितैषियों को नजर नहीं आ रहा है।

अफसोस इस बात का भी है कि जाति के आधार पर राजनीति करने वाले और जाति का हवाला देकर चुनावी विजय की जुगत लगाने वाले ‘ विजय सिंह ‘ लोग अपनी ही जाति के विधायक का विरोध कर रहे हैं। एक तरफ जातीय एकता – जातीय हित की बात करेंगे , जयंती – वयंती मनाएंगे फिर पता नहीं कहाँ क्या गडबडी हो जाती कि जयंती के अगले दिन फरसा अपने ही भाई के गले पर चलाना है। हालांकि मेरा व्यक्तिगत राजनीतिक दर्शन जातिवादी नहीं है परंतु जातिवाद के सहारे और जाति का बहाना करके हित साधने वालों के लिए ऐसा लिखना आवश्यक हो गया !

मेरी समझ यह सत्य है कि जो काम अब तक वर्तमान विधायक ने कर दिखाए हैं और जितना काम वो जनता के बीच कर रहे हैं। आपदा के समय उनका जैसा प्रदर्शन है , वैसा ट्वेंटी – ट्वेंटी मान लीजिए अथवा टेस्ट क्रिकेट के टिकाऊ बैट्समैन की तरह मान लीजिए परंतु उन्होंने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। राहुल द्रविड़ भारत की दीवार हैं तो आनंद मऊ – मानिकपुर की दीवार हैं।

बस हकीकत सिर्फ इतनी सी है कि कुछ लोगों में इनका विरोध करने के लक्षण नजर आने लगे हैं , जैसे किसी को खांसी आ रही है , किसी को छींक आ रही है तो कहीं किसी को ज्वर आ गया है और इन लक्षणों का अर्थ समझते हैं कि एक साथ अगर तीनों लक्षण किसी एक व्यक्ति में नजर आ जाएं तो उसे कोरोना होने की पुष्टि की संभावना सतप्रतिशत हो जाती है।

ऐसे ही कुछ लोगों को वर्तमान विधायक की खिलाफत करने का कोरोना इफेक्ट हो गया है। अब कोरोना के हाल सभी जानते हैं और कोरोना से बचाव के उपाय भी सभी जानते हैं।

शेष यह भी तय है कि आनंद शुक्ला के व्यक्तित्व का बड़ा पक्ष ये है कि वह राजनीति की लंबी पारी खेलेंगे और मन से संकेत मिल रहे हैं और विश्वास हो रहा है कि कम से कम यह व्यक्तित्व जनपद चित्रकूट की राजनीतिक अवधारणा में बड़ा बदलाव लाएगा और बहुत कुछ अच्छा ही करेगा। जैसी सेवा और राजनीति उन्होंने अब तक की है , उससे यह कहना संभव लग रहा है।
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