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By – Saurabh Dwivedi

कृष्णा सोबती जी की चर्चा इतनी हो गई है कि उनकी कृतियों का नाम भी अमर हो गया है। जैसे कि मेरे मन मे ही जिंदगीनामा और मित्रों मरजाणी समा सा गया है। समा गया अतः अमर हो गया। पढ़ी नहीं किताब अब तक। किन्तु मन में नाम रम गया। इसे कहते हैं अमर हो जाना।

मुझे लगता है कि मैंने अंतस की आवाज की इतनी चर्चा कर दी है कि नाम सबकी जुबां में बैठ गया होगा। अंतस की बात आएगी तो अंतस की आवाज याद आएगी। प्रेम की यह कृति विशुद्ध भावुक हृदय से प्रेमिल छवि में डूबकर रच – रच कर तैयार हुई है।

एकदम शुद्ध हृदय से पवित्र भाव से महसूस कर हृदय की धक – धक से शब्द – शब्द अवतरित हुआ है। रचनाओं के अंकुरण का माध्यम है हृदय और हृदयांशिका। हाँ हृदयांशिका नामक शीर्षक से भी एक रचना है।

ये रचनाएं मेरी जिंदगी में अद्भुत घटना हैं। चूंकि मेरी स्वयं की रूचि तनिक भी कविताओं की ओर नहीं थी। मैं परीक्षा में अच्छे अंक लाने के लिए उन कविताओं को ही पढ़ता व भावार्थ लगाता जिनके प्रश्नपत्र में आने की संभावना अधिक होगी। यही नाता – रिश्ता था मेरा कविताओं से।

कविताओं के मामले में ड़ ( अंगा अर्थात कुछ नहीं) इंसान ही रचने लगा एक दिन कविता जैसा कुछ , पहले लंबे समय तक भरोसा ही नहीं हुआ। मैं और कविता ? असंभव सा लगता था मुझे भी ? फिर भी रचा और एक समय ऐसा आया कि अंतस की आवाज जैसी अनमोल कृति का जन्म हो गया।

जीवन की पहली किताब वह भी काव्य की बनीं। मैं वो हूँ जो कभी किताब जैसी कल्पना भी नहीं कर सकता था। किन्तु शायद इसी को प्रारब्ध कहते हैं। यह तय रहा होगा तभी हो सका। यही है अंतस की आवाज। भावनाओं से महसूस कर अहसास पढ़ लो तो प्रेम के गहरे मायने समझ आ जाएंगे।

हाँ जब गहरे उतर जाता प्रेम तब एक आभामंडल में जन्मती हैं रचनाएं। इसलिये अनमोल हैं। मेरा मन भी कहता है कि काव्य को महसूस करने वाले लोग कम हैं और जो काव्य को महसूस नहीं कर सका वो संसार की सूक्ष्मता से अनजान है। एक कवि मन ही सूक्ष्मता से महसूस कर वास्तविकता का आलिंगन करता है। यही प्रेम है , जिसमे ईमान स्वयं अंकुरित होता है और तब वास्तव मे प्रेम होता है।

तो पढ़िए अंतस की आवाज अब से वैलेंटाइन डे तक पढ़कर संपन्न करिए। रचिए प्रेम की गाथा जिससे प्रेम से परिपूर्ण होकर इंसानियत की रसधार बहेगी। इस तरह अमर होती हैं रचनाएं , व्यक्ति की अनुपस्थिति में उपस्थित होती हैं रचनाएं। यही प्रेम की ताकत है।

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