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By – Saurabh Dwivedi

हाँ ये वही बुंदेलखण्ड है , जहाँ से हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद हैं। यहाँ के बच्चे बड़े परिश्रमी और प्रतिभावान होते हैं , पर संसाधनों के अभाव में प्रतिभाएं दम तोड़ देती हैं। वजह भी कोई और कोई नहीं हमारे अपने प्रतिनिधि हैं। हमारा पूरा तंत्र दोषी है।।

मित्रों मैं कभी कभी बहुत दुखी हो जाता हूं यह हमारा बहुत बडा दुर्भाग्य रहा है कि बांदा चित्रकूट में अपार प्रतिभायें होने के बाद भी दम तोडती नजर आयीं मेरे मन में सदैव विचार जन्म लेते रहते हैं परंतु मैं एक असहाय कि तरह उन विचारों को साकार रूप नहीं दे पाता क्यूंकि मैं एक साधारण इंसान हूं जिसके हांथ संवैधानिक शक्ति नहीं है परंतु अपने क्षेत्र के विकास वा नवुयवक प्रतिभाशालियों की प्रतिभा की आत्महत्या होते हुए जरूर देखता हूं जिसके लिये यहां के सत्तासीन राजनीतिज्ञ जिम्मेदार हैं।

क्या हमारे बांदा चित्रकूट से किसी विश्वचैंपियन खिलाड़ी का जन्म नहीं हो सकता? क्या बांदा चित्रकूट से कोई भी हांकी कुश्ती क्रिकेट बैडमिंटन कैरमबोर्ड टेबल टेनिस चेस फुटबाल से देश का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता ? क्या हमारे यहां प्रतिभाओं का अकाल पडा है ?

जी नहीं हमारे यहां अपार प्रतिभायें हैं लेकिन उन प्रतिभाओं को तराशा नहीं गया उन प्रतिभाओं को सुविधाएं उपलब्ध नहीं करायी गयीं हालात इतने बुरे हैं कि जिला चित्रकूट में कोई आधिकारिक खेल का मैदान आज तक नहीं है और ना ही ऐसी कोई सरकारी समिति कार्यरत है और तो और किसी भी ग्राम में आपको खेल का आधिकारिक मैदान शायद ही मिले और ना ही उन खिलाड़ियों को संरक्षण एवं प्रोत्साहन प्रदान करने वाला कोई है?

जबकि अगर प्रत्येक तहसील ब्लाक ग्रामपंचायत ग्राम में क्रीड़ा समितियां हो और आधिकारिक खेल का मैदान हो क्रीडा सामग्रियां उपलब्ध करायी जायें तो यहां इतनी प्रतिभायें हैं कि बांदा चित्रकूट से कोई ना कोई आपको नेतृत्व करता नजर आयेगा फिर यहां भी कोई ना कोई विश्वचैंपियन जरूर नजर आयेगा और यहां की गरीबी भी खत्म होती नजर आयेगी।

लेकिन अबतक चुने गये प्रतिनिधि इतनी दूरगामी सोंच के थे ही नहीं और ना ही उन्होंने सोचा भले वह ग्राम प्रधान ही क्यूं ना हो मुझे अफसोस है कि मैं अपनी सोच किसी पर थोप नहीं सकता लेकिन अपनी बात जरूर रखी थी अपने ही चाचा(प्रधानपति) जी से लेकिन उस पर कार्यवाही नहीं हो सकी फिर मुझे इंतजार है , शुरुआत करने की मेरा मानना है कि ग्राम प्रधान अपने ही गांव का प्रधानमंत्री होता है और सरकार को खेलकूद के लिये ग्रामस्तर पर अलग से विशेषाधिकार वा धन मुहैया कराया जाना चाहिए।

अगर हम सोच लें तो हम निजीस्तर पर भी इन शुभ कार्यों को अंजाम दे सकते हैं। भविष्य में अवसर आने पर मैं जरूर कुछ करना चाहूंगा और तत्कालीन केन्द्र वा प्रदेश सरकार अगर ध्यानाकर्षित करें तो यह शुभकार्य त्वरित प्रारंभ हो सकता है जिसके दूरगामी परिणाम होगें सिर्फ हमारे जिले को ही फायदा नहीं संपूर्ण प्रदेश वा देश को सुखानुभूति होगी।एक ऐसी पहल की आवश्यकता है।

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