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क्या आपको सत्य सुनाई दे रहा है ? हाँ यही सत्य है !

मैं कुछ लिखना चाह रहा था। बहुत ही सत्य सी बात है पर नहीं लिख पाया। मेरे अंदर की हिम्मत ने साथ नहीं दिया। मेरा आत्मबल गिर गया। सत्य कहने का आत्मबल गिर गया !

मैं सोचने लगा आत्मबल के संबंध में कि जिंदगी मे कितना महत्वपूर्ण है ? उससे अधिक यह सोचने लगा कि मैं सत्य क्यों नहीं लिख सका ? मेरे पास जवाब होने के बावजूद भी इसका कारण नहीं बता सकता। व्यक्तिगत आक्षेप नहीं लगा सकता और ना किसी दल विशेष पर आक्षेप लगाती टिप्पणी कर सकता हूँ।

मैं समाज के संबंध मे सोचता हूँ। विचार करता हूँ जो परिवार ये सोचता है उनका बेटा ताकतवर हो जैसे सुशील कुमार एक पहलवान हुए , काफी चर्चित हैं। इन दिनों वो ताकत का दुरुपयोग करते हुए नजर आए तो उनके साथ – साथ देश और समाज का भी नाम खराब हुआ। चूंकि वह एक वैश्विक ख्याति अर्जित किए हुए व्यक्ति हैं तो चिंतन करिए कि विश्व भर के कितने प्रशंसक हताश हुए होंगे ? साथ ही विश्व मे भारत की प्रसिद्धि को कितना बड़ा झटका लगा होगा , यह किसी शेयर सूचकांक से पता नहीं चलेगा यह हृदय से महसूस करना होगा।

जब व्यक्ति ताकत का दुरुपयोग करता है तब व्यक्ति का पतन होता है। जब समाज का एक समूह ताकत का दुरुपयोग करता है तब समाज का पतन होता है। जब एक दल ताकत का दुरुपयोग करता है तब दल का पतन होता है और जब एक सरकार ताकत का दुरुपयोग करती है तब सरकार का पतन तो होता ही परंतु समाज की अनगिनत पीढ़ियों का पतन हो जाता है और ऐसे मे सत्य कहाँ ठहरता है ?

सुशील कुमार दैहिक रूप से ताकतवर व्यक्ति थे। ऐसी ताकत के आकर्षण मे सबसे पहले हर कोई आ जाता है। जैसे प्रेम के मामले मे स्त्रियां देह के आकर्षण मे सबसे पहले आ जाती हैं बाद मे भले वह व्यक्ति मानसिक रूप से भावनात्मक रूप से उन्हें अपना ना लगे , अपनापन ना महसूस हो !

ओह ये क्या हुआ ? बात मुझे आत्मबल की करनी है और मैं दैहिक ताकत के भ्रम में फंसता जा रहा हूँ। लेकिन ताकत को समझने के लिए सबसे पहले दैहिक ताकत से ही समझाया जा सकता है। अब मैं कहना चाहता हूँ आत्मबल के कमजोर पड़ने के दुष्प्रभाव पर जिस संबंध में सभी विचार अवश्य करें।

असल मे मेरे आस-पास अब ऐसा वातावरण है कि ऐसा लगने लगा कि सत्य बोलकर क्या करूंगा ? अनेक बार सत्य बोलकर नुकसान का सामना किया। यहाँ तक कि दलीय मानसिकता के लोगों के निशाने पर आता गया। जनहित की आवाज उठाई तो खुद के हित पर लोहार के हथौड़े की चोट खाई।

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आज समाज मे ऐसे हालात हो गए कि मुझे सत्य लगातार मरता हुआ दिख रहा है। वह हमारे अंदर ही मर रहा है। मैं एक इंसान जाने कितने सत्य के शव को दिल ही दिल मे कंधे दे रहा हूँ। मेरे अंदर सत्य का श्मशान घाट बना हुआ है , जाने कितनी चिताएं सत्य की मेरे अंदर जल रही हैं। चूंकि मुझे यह पता चल चुका है कि सत्य कहने पर कुछ ना कुछ दुख – दर्द अवश्य भोगना पड़ेगा और अपनी जिंदगी मे परिस्थिति के चक्र को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि अब सत्य की आवश्यकता समाज को नहीं है उससे बड़ी बात सरकार को नहीं है। क्या आपको भी कभी ऐसा अहसास हुआ ? मेरे हृदय मे ऐसा महसूस हो रहा है कि एक व्यक्ति के रूप में कभी ऐसा अहसास जरूर हुआ होगा !

यहाँ सत्य कहो तो हर किसी को बुरा लगता है। वो कहेंगे फलाने ने कभी ऐसा कर दिया था , ढिकानी सरकार ने अपने कार्यकाल मे ऐसा किया था तो अब ऐसा हो गया तो क्या हो गया और ये राजनीति है। सचमुच समाज मे भी ऐसा ही परिदृश्य हो गया है। इसलिए सत्य कहने का आत्मबल कमजोर पड़ गया है। क्या आपको सत्य सुनाई दे रहा है ? हाँ यही सत्य है।

हम सत्य कहने के लिए जूझ रहे हैं। हम सत्य के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हम सत्य कहने से डर रहे हैं। हमें फिक्र है अपने जीवन की यदि सत्य कहा तो जिंदगी कहाँ ? जिस समाज , परिवार और लोकतंत्र मे सत्य महत्वपूर्ण ना रह जाए वहाँ सबकुछ लाग-लपेट से चलता है और झूठी प्रशंसा के बूते बड़ी इमारते खड़ी हो जाती हैं , वह इमारते सरकार की हों या समाज की पर खड़ी हो जाती हैं और वह सत्य बर्दाश्त नहीं करतीं। इसलिए सत्य कहने का आत्मबल कमजोर पड़ चुका है।

सोचिए यदि आपके हमारे अंदर आत्मबल ना रह जाए और सत्य ना कह सकें तो फिर इस जिंदगी का क्या अस्तित्व है ? क्या हमें सत्य के लिए प्रयास करने की आवश्यकता है , जिससे हमारी पीढ़ियां सत्य से जानकार होती रहें जैसे आज आप कहते हैं कि इतिहास झूठा है कल के दिन मीडिया हो या व्यक्ति आपकी पीढ़ियां कहेंगी कितने झूठे लोग थे !

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