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लेखक / पत्रकार सौरभ द्विवेदी

चित्रकूट : एक स्कूल के बच्चे पहाड़ी के बरेठी चौराहे पर सड़क किनारे खड़े थे। करीब आधा दर्जन बच्चों ने एक स्वर मे कहा कि हमे स्कूल से बाहर निकाल दिया गया है , वजह पता चली कि उनकी फीस समय से जमा नही हो पाई तो परीक्षा देने से वंचित किया जा रहा है।

स्कूल की फीस भरने मे बच्चे असमर्थ होते हैं क्योंकि बच्चे कमाऊ नही होते और भारत के स्कूल मे शिक्षा और कमाई एक साथ चलती नही है। उनके घर परिवार मे कोई समस्या हो सकती है कि अभिभावक फीस भरने मे असमर्थ रहे लेकिन स्कूल प्रबंध समिति की तानाशाही देखिए कि वह बच्चों के कोमल मन पर प्रहार कर घोर अपमानित करती है।

जो शिक्षक बच्चों के तन मन और मस्तिष्क की रक्षा करने एवं संवर्द्धन करने के लिए होता है वो शिक्षक फीस के कारण बच्चों को कक्षा मे अन्य बच्चों के सामने टेबल पर खड़ा कर देता है और किल्विस जैसे शब्द बोलने लगता है कि उस बच्चे का स्वाभिमान अन्य बच्चों के सामने गिर जाता है।

और अभिभावक इस भंवर मे फंसे हैं कि स्कूल मे सीसीटीवी लगा हुआ , नई इमारत है और बस भी है। स्कूल का प्रचार बहुत अच्छे से हो रहा है और शिक्षक के पास डिग्रियां बहुत हैं लेकिन लोक व्यवहार का क्या ? जिस शिक्षक और प्रबंध समिति को चिल्ड्रेन लाइफ और स्टूडेंट लाइफ की समझ ना हो समझ लो कि उस कालेज की बिल्डिंग जली हुई रावण की लंका के समान है।

मनोविज्ञान के अनुसार बच्चों को ऐसे अपमानित करना उनको जीवन भर की मानसिक प्रताड़ना देना है। ऐसे बच्चे जीवन भर अन्य तमाम क्षेत्र मे खुद को एक्सप्लोर नही कर पाते। उनके अंदर का स्वाभिमान और साहस मार दिया जाता है , यह वर्तमान भारत की एजुकेशन का बिग फेलियर प्वाइंट है।

प्रबंध समिति को अंतिम समय तक सिर्फ और सिर्फ अभिभावक से बात करना चाहिए और जो भी निर्णय लें वह लिखित मे अभिभावक को देना चाहिए। अभिभावक भी ऐसे कालेज मे लिखित मे बात करें और अभिभावक बैठक मे शिक्षकों से सवाल करें कि मेरा बेटा पढ़ने मे कमजोर है तो गलती मेरी नही आपकी है और आपके स्कूल की है।

सरकार को एक ऐसा कानून बनाना चाहिए कि स्कूल में फीस के नाम पर अगर बच्चों को क्लास मे अपमानित किया या स्कूल से बाहर निकालने की हरकत की तो उस स्कूल / कालेज के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो और मान्यता भी रद्द हो जाने का प्रावधान हो।

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