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श्रीराम कथा का वर्णन करते हुए स्वामी जी महराज कहते हैं कि कथा क्या है ? खुद ही सवाल करते हैं और खुद ही श्रोताओं को जवाब दे कर तृप्त करते हैं।

मनुष्य के तन मन को भूख लगती है और भोजन कर के भूख से तृप्त होता हो जाता है , ऐसे जीवन मे धर्म अध्यात्म की क्षुधा लगती है। भूख लगती है जो परमात्मा के भाव से तृप्त होना चाहते हैं इसलिए आत्मा का आकर्षण सदैव परमात्मा की ओर रहा है।

इसलिए स्वामी जी कहते हैं कि जो भव सागर से भाव सागर मे डुबो दे , वो है कथा। कथा आनंद मे डुबो देती है।

कथा का श्रेष्ठ महत्व है…..

कथा सुनने भर से भगवत प्राप्ति बहुत सरल हो जाती है। कथा कानों मे आकर प्रवेश करती है तो भगवान हृदय मे आकर बैठ जाते हैं।

अद्भुत कथा है , करूणा स्वरूप और करूणा का ग्रंथ है। करूण सागर से भरी हुई है , कथा। वह कहते हैं सारी कथाएं करूण रस से ओतप्रोत होती हैं।

इसी कथा के वर्णन मे स्वामी जी रस का वर्णन करते हैं कि रस तो बहुत हैं। कुल 9 रस कहे गए हैं लेकिन आनंद तो करूण रस मे है जो तृप्ति करूण रस मे है वो कहीं किसी और रस मे नही है इसलिए करूण रस को रसों का राजा कहा गया है।

करूण रस से भरी हुई कथा हमारे जीवन को परिपूर्णता प्रदान करने वाली , परिपूर्ण स्वरूप प्रदान करने वाली है। कथा कि महिमा इतनी है कि धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष सब समाहित है और ये कामधेनु गाय है।

कथा मे चौपाई का अर्थ है चार पैर जिसके चार पैर हों और दोहा अर्थात दुह लो। गाय की सेवा करिए और सेवन करिए , यही कथा है जो कामधेनु गाय की तरह दूध देती रहती है और मनुष्य की कामना पूर्ण करती है।

ऐसे ही स्वामी जी कहते हैं कि जीवन मे बहुत व्यसन आ जाते हैं , विकार उत्पन्न हो जाते हैं तो श्रीमद्भागवत कथा सुनने मात्र से परमात्मा मे मन लगने लगता है और आत्मा जब परमात्मा से एकाकार होने लगे तो मन परमानन्द मे लग जाता है और जहाँ परमानन्द मे मन लग जाए तो समस्त विकार नष्ट होने लगते हैं।

अतः कथा का मनुष्य के जीवन मे यही महत्व है। सर्वविदित है कि कलयुग मे नाम अधारा अर्थात भगवान राम और कृष्ण के नाम जप मात्र से मनुष्य को मोक्ष मिल जाता है और कथा कराने व सुनने से जन्म-जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं और मनुष्य को कथा , पुण्यात्मा बना देती है।

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