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saurabh Dwivedi

​श्रीलंका जो भारत के नक्शे पर अंतिम छोर में सौ वाट के बल्ब की तरह दिखता है, आज वहाँ ट्यूबलाइट, सीएफएल और एलईडी सा प्रकाश व शांति नहीं है। सौ वाट के बल्ब के पीलेपन वाले प्रकाश में ताप बढ़ता ही रहता है और उस बल्ब की जिंदगी की गारंटी भी कभी एलईडी, सीएफएल की तरह ली नहीं गई।

भाई ये कभी भी फ्यूज हो सकता है अथवा एक धमाका होगा और कांच जमीन पर बिखर जाएगा। आसपास रहेंगे तो जख्मी हो सकते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं चेहरा उस ओर हुआ तो कांच आंख में लग सकता है और आप जीवन भर को अंधे हो सकते हैं।

श्रीलंका का हाहाकार भारत की आजादी के समय मुस्लिम लीग के प्रमुख जिन्ना की कूटनीति और अंग्रेजों की संगति से विभाजन का दंश व हिंसा के माहौल को स्मृति में ताजा कर देता है। हालांकि मैं स्वयं चश्मदीद नहीं था, किन्तु अध्ययन के मुताबिक लाशों का मंजर अब भी आंखो के सामने आ जाता है।

ऊपर से जिस पाकिस्तान का निर्माण हुआ, वो राष्ट्र आज भी नासूर बना हुआ है। पाकिस्तान के निर्माण में मोहन दास करम चंद गांधी की नीतियों का भी बहुत बड़ा योगदान था। अंतिम समय में खुद चर्चिल ने कहा था कि क्या गांधी सठिया गए हैं ? स्वयं गांधी ने हिटलर की बर्बरता को सहने हेतुु जब अंग्रेजों को कहा था और उनके वक्तव्य में कहा गया कि हिटलर आपकी बहू – बेटी सहित किसी पर भी हिंसा करे करने दो। अंग्रेज कांग्रेस से हिटलर के खिलाफ मदद चाहते थे। लेकिन गांधी ने ऐसा कह कर अंग्रेजो में कांग्रेस केे विश्वास की कमी ला दी।

साथ ही जब कांग्रेस ब्रिटिश सरकार के भारतीय मंत्रियों ने इस्तीफा दिया तो उस वक्त जिन्ना ने कहा था कि बहुत बड़ी गलती कर दी और इस चूक के बाद जिन्ना की हर कूटनीति अंग्रेजों के साथ सफल होती रही। इस तरह से अंग्रेजों ने अपने हित में ना सिर्फ आजादी का उपहार विभाजन दिया बल्कि ऐसी हिंसा हुई कि रोगटे आज भी खड़े होते हैं।

भारत के विभाजन और हिंसा को याद कर श्रीलंका का वर्तमान भारत में भाईचारे की नीति पर प्रश्न चिन्ह अवश्य खड़ा करता है। सनद रहे कि ब्रिटिश भारत में जनमत से मुस्लिम लीग अपने आरक्षित कोटे पर भी बहुमत प्राप्त नहीं कर पाई थी। वैसे यह विभाजन की असली कहानी के आंशिक तथ्य हैं।

परंतु जिस प्रकार से पाकिस्तान नाक में दम किए है और श्रीलंका में मुस्लिमों ने ऐसी हिंसा की कि इमर्जेंसी लगानी पड़ी। समझिए कि सौ वाट जैसे छोटे से देश में आखिर कैसे ताप बढ़ गया कि वहाँ हिंसा से मातम छा गया। 
हम वक्त के साथ परिवर्तन स्वीकार करते रहे हैं। घर में दूधिया रोशनी हेतु ट्यूबलाइट का प्रयोग करते रहे फिर बजट को देखते हुए सीएफएल का प्रयोग किए और वक्त के साथ ही लो बजट बिल व दूधिया रोशनी हेतु एलईडी का प्रयोग करने लगे। किसी सरकार से अधिक जिम्मेदारी देश की जनता की होती है। एक जिम्मेदार परिवार व परिवार के मुखिया की तरह देश हित में जागरूक होकर समय के साथ परिवर्तनग्राही बनना हमारा स्वभाव होना चाहिए। 

अपने घर के ताप और प्रकाश के साथ धन की बचत ने हमें परिवर्तन स्वीकार करने हेतु सहज बनाया तो फिर जनता को देश के अंदर दूधिया रोशनी और समान ताप हेतु जागरूक होना चाहिए।

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