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By :- Saurabh Dwivedi

एक इंसान का मन जल में परछाईं की तरह उसके व्यक्तित्व का दर्शन करा देता है। आम इंसान किसी तालाब के सामने खड़ा हो जाए तो सुबह के सूर्योदय में स्वयं की परछाईं नजर आने लगती है , ऐसे ही एक इंसान के कर्म मन का दर्शन करा देते हैं और संपूर्ण व्यक्तित्व सूर्य कि किरणों की भांति सबके हृदय में समाने लगता है। वैसा ही एक व्यक्तित्व पाठा के जंगलों मे गरीबों की सेवा करता हुआ नजर आया।

पिछले दिनों गरीबों की सेवा कर रहे पूर्व प्रोफेसर एस. सी. गर्ग से मुलाकात हुई। आप दिल्ली युनिवर्सिटी में प्रोफेसर रह चुके हैं। इन्होंने अपने शिक्षण काल में अनेक आइएएस और पीसीएस क्वालीफाई करने वाले स्टूडेंट्स को पढ़ाया। प्रोफेसर बनने के बाद इनका संपूर्ण जीवन सुख – सुविधा मे बीता। वातानुकूलित मौसम में रहते हुए जीवन व्यतीत किए। वर्तमान में इनके बच्चे विदेश में अच्छी पोस्ट पर कार्यरत हैं। अर्थात आप चाहते तो दिल्ली जैसे शहर में प्रत्येक सुख – सुविधा के साथ जीवन व्यतीत करते

छोटा सा सहयोग बडा प्रयास

किन्तु मिस्टर गर्ग बताते हैं कि शायद परमात्मा ने ही उनकी आत्मा को सेवा के लिए मार्ग प्रशस्त किया। कहते हैं कि समय हमें स्वयं चुन लेता है , जहाँ रिटायरमेंट के बाद नौकरीपेशा वर्ग शेष जिंदगी छुट्टी में सुख – सुविधा में व्यतीत करना चाहता है। वहीं आप जैसा भी एक व्यक्तित्व है जो महानगर से गांव में आकर रहने लगता है।

मध्यप्रदेश से उत्तर प्रदेश तक पाठा क्षेत्र की सीमा के आसपास के गांवो में गरीबों की सुख की नींद कैसे मिले ? इसकी चिंता करता है।

उनका पेट कैसे भरे ? इस बात की भी चिंता करता है। वह गरीबों की गरीब भूख को महसूस करता है। उनको यथासंभव मदद प्रदान कर स्वयं को परमात्मा का निमित्त मान लेता है।

तन ढकने के लिए वस्त्र की व्यवस्था भी कर लेते हैं। गरीब महिलाओं को साड़ी देना और बच्चों के तन ढकने के लिए वस्त्र का प्रबंध करना। नंगे पैर वालों के लिए जूतों का भी बंदोबस्त करना।

ठंड के दिनों में ठंड से बचाने के लिए कंबल बांटना। वह भी ऐसे कंबल जो देश का अमीर वर्ग प्रयोग मे लाता हो। उन्होंने हर मौसम में हर आदमी की चिंता की , जिस मौसम मे जिसको जैसी जरूरत।

यह यहाँ की गरीब जनता का भाग्य खुल जाने जैसा है। प्रो. एस. सी. गर्ग गरीब जनता का सौभाग्य बनकर आए हैं। एक ऐसे क्षेत्र में जहाँ वास्तव मे गरीबों को मदद की आवश्यकता थी। ऊपर से कोरोना वायरस के समय लाकडाउन में गरीब की सेवा होना बड़ी बात है। जहाँ दिहाड़ी मजदूर एवं अन्य वर्ग को भी आमदनी की समस्या खड़ी हो गई थी। वहाँ ऐसे निष्काम कर्मयोगी का उपस्थित रहना और सेवा कार्य चलते रहना गरीब जनता के भाग्य खुल जाने जैसा है।

आप से चर्चा के दौरान समाज की सच्चाई से वाकिफ होने के तमाम प्रसंग से मुलाकात हुई। इन्होंने एक बड़ी बात कही कि मैं अपने पूरे जीवन भर का अनुभव यहाँ के युवा छात्रों से बांटना चाहता हूँ। स्कूल – काॅलेज में लेक्चर देकर चिंता की दिशा को सही दिशा प्रदान करना चाहता हूँ। संभव है कि कोई शिक्षण संस्थान भविष्य में अपने स्कूल – कालेज में इनके अनुभव का लाभ ले सकता है।

वैसे सच है कि आप अनुभव के धनी हैं। सामाजिक विषयों के विद्वान हैं और समाज के लिए सक्रिय हैं। चित्रकूट समाज के लिए आपका व्यक्तित्व अनुकरणीय है। धन का सदुपयोग और निष्काम कर्मयोगी का सिद्धांत आप से सीखा जा सकता है। जिन्हें कोई लालशा नहीं अपितु सेवा कार्य करके आत्मा को सुख महसूस करते हैं। भविष्य में आप सेवा कार्य द्वारा चित्रकूट जनपद को बड़ा मार्ग प्रशस्त करेंगे , ऐसी आशा कार्यों को देखते हुए महसूस होता है। सच है कि अपने निजी धन से लगातार वर्षों सेवा करना सिवाय ईश्वरीय निमित्त के कौन कर सकता है ?

वह ईश्वर ही हो सकता है और कोई नहीं। हालांकि आप भी एक इंसान है पर इंसान को इंसान बना रहना मुख्य बात है और तभी इंसानियत की सकारात्मक बयार बहती है। कोरोना वायरस संक्रमण के दौरान आपके सेवा कार्य से अनगिनत गरीब – मजदूर परिवारों की भूख तृप्त हुई तो इससे बड़ा पुण्य कार्य कुछ और नहीं। इनसे इंसान को इंसानियत सीख लेनी चाहिए। 

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(Saurabh chandra Dwivedi
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karwi Chitrakoot )

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