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कामतानाथ मे भक्त बंदर सेवा करते हैं। यहाँ बंदर सेवा के अनेक मायने हैं। ऐसे तो बंदर अपने हक का छीनना जानते हैं लेकिन बंदर का हक सेवा कर दिया जाएगा तो वह छीनेंगे क्यों ? यही मनुष्य जीवन का दर्शन है अगर हक मिलेगा तो कोई छीनेगा क्यों ?

भक्त कामतानाथ मे प्रसाद चढ़ाते हैं और मौका मिलते ही बंदर प्रसाद छीनकर खा लेते हैं। अर्थात साफ है कि पेट को भूख लगी होगी तो छीनकर खाएंगे वहीं अगर पेट भरा होगा तो बंदर छीनेंगे नही इसलिए समाजसेवी रामबाबू गुप्ता कहते हैं कि मनुष्य की जिम्मेदारी कि अपनी आय से सेवा का कार्य करना चाहिए। मैं इसलिए कामतानाथ परिक्रमा मार्ग मे समय-समय पर बंदर समाज की सेवा करने जाता हूँ।

इस बार इन्होंने भाजपा जिलाध्यक्ष चंद्रप्रकाश खरे के साथ बंदरों को अंगूर खिलाया। अंगूर रस युक्त मीठा फल होता है। जो स्वादिष्ट और पसंदीदा फल है। अमूमन बंदरों को लोग गाजर खिलाते हैं या केला बांटते हैं। लेकिन अंगूर खिलाना भी एक अच्छा अनुभव है।

जहाँ अभाव महसूस होगा वहाँ छीना झपटी होती है और मनुष्य को जब अभाव महसूस होता है तो वह भ्रष्ट आचरण करता है। और भ्रष्ट आचरण मे अनियमित कमाई करना व समाज मे शोषण होना शुरू हो जाता है , वहीं अगर सेवा भाव से काम किया जाए तो यकीनन किसी का शोषण नही होगा और सबको हक मिलेगा। समाज का संघर्ष सेवा भाव से समाप्त हो सकता है।

समाजसेवी रामबाबू गुप्ता की बंदर सेवा करने के पीछे यह रहस्य उजागर हुआ। बदलते समय मे बंदर अब बस्ती की ओर आने लगे हैं। चित्रकूट जनपद के पहाड़ी बुजुर्ग गाँव सहित अनेक गाँव मे बंदर आ चुके हैं जो किसानों की फसल नष्ट करते हैं व चुपके से घरों मे घुसकर अपने हक का छीन ले जाते हैं।

जंगल कम नही होते तो बंदर वहीं रहते लेकिन जंगल मे फलदार वृक्ष की कमी हो रही है तो वह भूख मिटाने के लिए बस्ती की ओर आ रहे हैं। इसलिए सभी भक्त मनुष्य समाज को बंदर समाज की सेवा करनी चाहिए। रामबाबू गुप्ता ने बंदर सेवा के माध्यम से यह संदेश देने की कोशिश की है जो प्रशंसनीय है।

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