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By :- Saurabh Dwivedi

दूसरे के लिए खाईं खोदने वाले दिमागदार लोग ये नहीं सोच पाते कि समय परिवर्तन के साथ एक खाईं आपके लिए भी खुद जाएगी !

भला करो भला होगा , यही जीवन का सृजन सिद्धांत है। जिंदगी विध्वंस के लिए नहीं सृजन के लिए मिली है। इसलिये सृजन की सोच रखने वालों के लिए संसार बेहद खूबसूरत खुशबूदार बाग की तरह है।

ये संसार विध्वंस करने वालों के लिए बुरा अवश्य दिखता है। किन्तु इनकी बड़ी भूल है कि व्यक्तिगत कुत्सित स्वार्थ से परे उठकर प्रेम आधारित सृजन के लिए काम नहीं कर पाते। विध्वंस की यात्रा बहुत लंबी नहीं है और विध्वंस के बाद कुछ शेष बचता नहीं है , कि जीवन बचा रहे। विध्वंस करने वाले स्व विध्वंस के शिकार हो जाते हैं।

अतः नफरत और कुंठा को पालने वाले विचारों की खूबसूरती को महसूस करें , जीवन मे सृजन के महत्व को पहचानने की कोशिश करें।

सृजन को एक चिड़िया के स्वभाव से सीखा जा सकता है। चिड़िया में उपजे मातृत्व के भाव से महसूस किया जा सकता है। चिड़िया को जब अहसास हो जाता है कि वह माँ बनने वाली है तो बच्चों की सुरक्षा एवं सुरक्षित प्रसव हेतु घोसले का निर्माण शुरू कर देती है। इसी को सृजन कहते हैं , एक चिड़िया द्वारा नई पीढ़ी के लिए सृजन किया जाता है। साथ ही बच्चे जब तक उड़ान भरने योग्य नहीं हो जाते तब तक दाना बाहर से लाकर चोच से चोच में खिलाकर बच्चों को जीवन प्रदान करती है।

जब बच्चों में पंख आ जाते हैं तो वह स्वयं आसमान की ओर उड़ान भरने लगते हैं। पेट की भूख को तृप्त करने के लिए दाना खोज लेते हैं। तत्पश्चात माँ निश्चिंत हो जाती है। किन्तु इससे पहले वह अपने बच्चों में सृजन का भाव भर देती है। इसी सृजन के भाव से चिड़िया का संसार आबाद है , तमाम इंसानी वैज्ञानिकी हानिकारक तरंगो के बावजूद भी चिड़िया दिख जाती हैं। जबकि तथ्य है कि हानिकारक तरंगो की वजह से चिड़ियों का संसार उजड़ने की बात जगजाहिर हो चुकी है। मनुष्य के विध्वंस का असर पशु – पक्षियों के सृजन के भाव पर भी पड़ता है।

मनुष्य यह अपील करते हुए मिल जाते हैं कि गर्मी के दिनों में छत पर पानी रखें। जिससे पक्षियों को पानी मिल जाएगा। ये मनुष्य सृजन के भाव को महसूस करने वाले हैं। इनके इस भाव की धुरी में संसार रूपी चाक चल रहा है। वरना दुखद परिणाम यही है कि ज्यादातर मनुष्य विध्वंस के कारक बन रहे हैं। विध्वंस नाना प्रकार का होता है , वैचारिक विध्वंस जैसे कि जातिवाद आदि की बाते करना। जिहाद के अर्थ को आतंकवाद से प्रेरित कर आतंक का पर्याय बन जाना। राजनीति में स्थान बनाए रखने के लिए हत्या आदि जुर्म का प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष समर्थन करना व स्वयं घटना को अंजाम दिलवाना। यही मानविकी संसार की सबसे बड़ी समस्या है जो एक ही परिवार के अंदर स्पष्ट झलकती है।

सृजन और विध्वंस का अंतर सभी आसानी से समझ जाते हैं। किन्तु समझ का अर्थ तब सिद्ध हो जब सृजन को अपना लें। सुर और असुर के बीच यही अंतर है। समाज में जितने अधिक देवतुल्य मनुष्य होगें उतना ही सृजन होगा। पशु – पक्षियों के संसार से मनुष्य सृजन को आत्मसात कर सकता है। सृजन का स्पष्ट परिणाम मिलने में उतना ही समय लग सकता है जितना कि एक चिड़िया को घोसला बनाने में लगता है और उतना ही निरंतर प्रयास करना पड़ता है।

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