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By :- Saurabh Dwivedi

जिंदगी मे कोई ना कोई शख्स ऐसा होता है , जो हमारे तन – मन को स्व व्यक्तित्व से आच्छादित कर लेता है। ऐसा तब संभव है , जब एक जीवन अनेक जिंदगियों के लिए उपयोगी हो जाता है।

एक ऐसे ही व्यक्तित्व से कुछ वर्ष पूर्व रात के अंधेरे मे प्रथम मुलाकात हुई , उस अंधकार मे मिलन ने मेरे जीवन को प्रकाशित कर दिया। अशोक दुबे भैया की समाजसेवा और मानवीय स्वभाव से हमेशा मन – मस्तिष्क में जिंदगियों के लिए कुछ करने का भाव धमनियों में संचरित होता रहा।

वो व्यक्तित्व अनुकरणीय होता है , जो अन्य जिंदगियों के लिए समर्पित होता है। जिन्होंने अपने समय का निवेश समाज के लिए किया और अर्जित किए हुए धन का निवेश भी तमाम जिंदगियों से संकट समाप्त कर सुखमय मानसिक वातावरण जीवंत करने हेतु करते रहे।

तनिक नजदीक पहुंचा कि अंतर्मन से महसूस हुआ कि हाँ संसार मे ऐसे व्यक्तित्व हैं , जो स्वयं प्रकाशित हैं और उस प्रकाश से अनेक जिंदगियों को भी प्रकाशित कर रहे हैं।

जल ही जीवन है ; को चरितार्थ करने वाली शख्सियत भी हैं। जिन्होंने जल संकट को समाप्त करने के लिए हृदय पानी – पानी कर दिया और कुछ ही समय में गांव के लोगों को अनवरत काल तक के लिए जल की व्यवस्था हो गई।

किसी बच्चे की मृत्यु सिर्फ इसलिए हो जाए कि उसके गरीब माता-पिता इलाज हेतु धन की व्यवस्था नहीं कर सकते , तो एक ऐसा व्यक्तित्व जो निस्वार्थ भाव से सामर्थ्य अनुसार आर्थिक मदद प्रदान कर देता है।

एक गरीब मजदूर का परिवार पंद्रह सौ किलोमीटर दूर से शव अपने घर – अपनी जन्मभूमि मे लाने हेतु सक्षम नहीं है , तो यही वो व्यक्तित्व है जो शव – वाहन की व्यवस्था कर जन्मभूमि तक शव भेजकर अंतिम संस्कार स्वस्थ मस्तिष्क से होने की संभावना को साकार कर देता है। सिर्फ इतना ही नहीं अनाथ बच्चों के जीवन के लिए कुछ करके स्वयं को सुखमय महसूस करते हैं।

ये समाज के ऐसे काम हैं , जो कोई शासन – सत्ता नहीं कर पाती। कितनी बार हम शर्मसार हुए कि एंबुलेंस नहीं मिलने से पति अपनी पत्नी का शव कंधे पर ले जाने को मजबूर हुआ। किन्तु जब कोई एक ऐसा व्यक्तित्व समाज मे होता है , तब ना सिर्फ हम बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत शर्मसार होने से बच जाता है और इसकी भनक भी वो इंसान नहीं लगने देता।

यह मैं ही था ,  जिसे लिखने की प्रेरणा प्राप्त हुई। मैं भी अपने मन – मस्तिष्क और माहौल सामर्थ्य अनुसार ही अभिव्यक्ति कर पाता हूँ। जब सोशल काॅकटेल प्रकाशित होने वाली थी , तब मन मे आया कि यह किताब अशोक भैया को समर्पित हो जाए तो मुझे सुख मिलेगा।

वैसे आपके बारे में लिखना बेहद कम है , चूंकि अदृश्य कृतित्व की लंबी फेहरिस्त है। जो शब्दों में समाहित नहीं हो सकते। मुझे ऐसा लगता है कि जीवन के सफ़र आपके कार्यों का वर्णन करता रहूंगा तो निश्चित रूप से भविष्य में आने वाली पीढ़ियों के लिए , यह अनुकरणीय होगा कि स्व जीवन के लिए कमाने के साथ संकट के समय किसी जिंदगी की मदद करना जीवन का सर्वोत्तम कार्य है।

ऐसे ही आत्मा ” महात्मा ” कहलाती है , जो अनेक आत्माओं को सुख महसूस कराती है। इसलिये मुझे सुखद महसूस हुआ कि ” जिन्हें समर्पित – उन्हें समर्पित “। चूंकि समाज और किताब में मदद का सिद्धांत भी है तो आपका व्यक्तित्व मदद के सिद्धांत का जीवंत उदाहरण है।

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