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@Saurabh Dwivedi

यूं तो इस दुनिया में यतीम बहुत हैं। यतीम के अलग-अलग नाम हैं। यह यतीम दीपक है , एक ऐसा दीपक जो घरों में प्रकाश के लिए प्रज्वलित किया जाता है। महामारी के समय कोरोना से बचने के लिए प्रकाश की ऊर्जा का आह्वान किया गया ताकि कोरोना प्रकाश से भाग जाए। फिलहाल अभी आने वाली 5 अगस्त को भी दीपक प्रज्वलित करने का आह्वान हो रहा है परंतु यह यतीम दीपक कैसे दीपक प्रज्वलित करेगा ? इसके माता-पिता सड़क दुर्घटना मे चल बसे और अनवरगंज में यह दीपक जीवन जीने के लिए भीख मांग रहा था।

एक होटल व्यवसायी को दीपक भीख मांगते हुए दिख गया। यतीम दीपक ने उस होटल व्यवसायी से भी भीख मांगी थी। किन्तु होटल व्यवसायी दीपक को अपने साथ गृहनगर कस्बा पहाड़ी लेकर चला आया। एक दिन दीपक मुझे मिला और मैं दीपक की चंचलता देखकर स्तब्ध रह गया कि अरे ये बालक कौन है ?

मुझे जानकारी मिली कि यह कानपुर से आया है। मैंने सोचा कि महामारी के समय आते हुए फंस गया होगा या फिर घर से भाग आया होगा ! किन्तु मुझे जो जानकारी मिली वह स्तब्ध कर देने वाली थी कि इसके आगे-पीछे अब कोई नहीं है। एक दिन बात इतने मे ही समाप्त हो गई।

अब अक्सर बजरंग चौराहे में यतीम दीपक को मैं देखता और सोचता कि लड़का होनहार है और जिंदगी मजे से जी रहा है। दीपक सड़क चलते गाना गा लेता है और मस्ती कर लेता है।

एक दिन मनोज नाई की दुकान पर दीपक से मेरी एक मुलाकात होती है। वहाँ मुझे दीपक के माता-पिता के चल बसने की जानकारी मिलती है। दीपक बताता है कि उसके पास जमीन – जायदाद नहीं है। पिता पेंटिंग का ठेका लेते थे और एक दिन मम्मी-पापा दोनों ट्रक के सामने आकर चल बसे , दीपक और उसके माता-पिता कानपुर मे रहते थे।

पूरा परिवार किराए के मकान में रहता था। मकान मालिक ने दीपक को घर से निकाल दिया फिर दीपक रहता भी कहाँ ? दीपक इतनी कम उम्र में अपना पेट कैसे भरता ? यतीम का एक ही ठिकाना हो जाता है , वह स्टेशन चला जाता है और भीख मांगता है फिर ट्रेन पर चल देता है। इस तरह दीपक अनवरगंज स्टेशन पहुंच जाता है। वहाँ भीख मांग कर गुजारा करने लगता है।

दीपक की कहानी मुझ तक आई थी। दीपक से मैंने थोड़ी बहुत बात की , तब से लगातार मेरे मन मे ये कहानी विचरण कर रही थी। लेकिन मैं यतीम के लिए करता क्या ? मेरे पास भी क्या है ? मैं सोचता रहा कि पढ़ने की उम्र में दीपक को बाल मजदूरी करनी पड़ रही है और दीपक मजदूरी नहीं करे तो क्या करे ?

मैंने सोचा कि दीपक की कोई सरकार है ? सरकार हो ना हो पर दीपक का कोई समाज है ? दीपक का कोई अन्य परिवार हो सकता है यदि उसके माता-पिता चल बसे हैं ? क्या सरकार के पास यतीम बच्चों के लिए कोई योजना है ? सरकार के पास कोई ऐसी संवेदनशील सूक्ष्म दृष्टि है कि बाल यतीम की भव्य जिंदगी के लिए कुछ कर सके ? संभवतः सरकार और समाज दोनों के पास कोई जवाब नहीं है।

एक दिन दीपक चलते-चलते पुनः मेरे पास आ गया। थाना पहाड़ी के पास श्रीराम की होटल के सामने दीपक मेरे पास आकर बैठ गया। मैंने दीपक को करूण दृष्टि से देखा , उसे सिर्फ मेरे मर्म चक्षु नहीं देख रहे थे अपितु मन और आत्मा की करूणामय दृष्टि देख रही थी।

मैंने दीपक से पुनः बात की तब इस यतीम ने बताया कि अनवरगंज स्टेशन से मुझे होटल वाला पहाड़ी ले आया। वह खाना – पीना देता है और महीने के तीन हजार देता है। मैं मेहनत करता हूँ और खाता – पीता हूँ। किन्तु मैं ननिहाल जाना चाहता हूँ !

मैंने पूंछा ननिहाल कहाँ है ? उसने कहा फर्रुखाबाद में। मैंने कहा कि ये बताओ भरोसा है कि ननिहाल वाले तुम्हे अपने पास रखेंगे ? तुम्हे पढ़ाएंगे – लिखाएंगे ? क्या तुम ननिहाल का घर पा जाओगे तो सबसे बड़ा जवाब यही था कि ननिहाल का घर भी पता करना पडेगा , चूंकि मुझे वहाँ के घर का पता याद नहीं ! फिर दीपक ननिहाल पहुंचेगा कैसे ? चूंकि वह ननिहाल के लोगों का नाम भी नहीं बता पा रहा।

माँ – बाप में इकलौता दीपक एक यतीम दीपक है। जहाँ घरों में लाखों , करोड़ो और अरबों दीपक प्रज्वलित किए जाएंगे वहाँ एक दीपक की कीमत के बराबर भी घर – घर से इतनी उम्मीद नहीं की जा सकती कि हर कोई कम से कम एक यतीम दीपक का जीवन प्रकाश से भर दे ! दीपक प्रज्वलित करने में माटी का दिया , बत्ती और घी या तेल लगता है। एक दीपक कम से कम दस से बीस ₹ तक फिर पैशन की बात करें तो एक दीपक कम से कम 100 ₹ का भी हो जाता है।

श्रीराम मंदिर का भूमि पूजन है और समस्त जनता हर्ष से प्रफुल्लित है। सभी की एक अपील है कि दीपक प्रज्वलित कर दीपावली  से पहले दीपावली मना ली जाए। सचमुच वो दीपक भी तब तक यतीम होते हैं जब तक उनकी कीमत ना लग जाए। एक दीपक बनाने वाले के यहाँ दीपक यतीम के रूप में इकट्ठा रहता है। जैसे इस दुनिया में यतीम का भी एक संसार होगा पर सारे यतीम दुनिया भर में तितर-बितर हैं।

असल बात यह भी है कि यतीम दीपक अभी बनने वाली सरकार का वोटर भी नहीं है। दीपक के पास आधार कार्ड नहीं है। दीपक ने तनिक भी शिक्षा नहीं प्राप्त की है कि उसके पास किसी कक्षा की अंकतालिका होती है। चूंकि दीपक मुझसे कह रहा था कि भैया मेरा आधार कार्ड बन जाएगा ? तो मैंने सोचा कि इसका आधार कार्ड कैसे बनेगा जब जन्म प्रमाणपत्र से लेकर इसके पास कुछ भी नहीं है ! सिर्फ माता-पिता का दिया हुआ नाम दीपक है।

मैंने दीपक से कहा कि अभी यहीं ठहरो। और मैंने सवाल किया कि मेरा घर जानते हो ? तो दीपक ने कहा कि हाँ मैं आपका घर जानता हूँ ? मैं आश्चर्यचकित रह गया कि दीपक को मुझसे इतनी उम्मीद कि उसने दस हजार की आबादी वाले कस्बे में एक मुझे और मेरे घर को पहचान लिया है।

मैंने दीपक से कहा कि अभी जो कर रहे हो , वो करो और मैं कुछ ना कुछ तुम्हारे बारे मे सोचता हूँ कि तुम्हारे लिए क्या किया जा सकता है ! उसे मैंने ननिहाल जाने से साफ मना किया पर मुझे ये पता नहीं कि मैंने क्यों मना किया ? अंत मे मैने पर्स निकालकर उसे 50 ₹ की नोट दी और यह कहा कि यहाँ से अभी बिल्कुल मत जाना और मुझसे बताए बिन तो और कहीं मत जाना।

मुझे मन ही मन एक उम्मीद रही कि हम कुछ कर सकते हैं पर यह नहीं पता कि क्यों और कैसे कर सकते हैं ? पर यह जानता हूँ कि दीपक की आवाज बताती है कि इसके अंदर प्रतिभा है और यह फुर्तीला लड़का है , जिसे अच्छी परवरिश मिले तो जीवन में कुछ बन सकता है। मेरे पास सिर्फ एक हृदय है और खर्च करने के लिए शब्द हैं। दीपक से बने अब तक के रिश्ते में भावनाओं से यह सब लिख गया हूँ और ऐसा इसलिए लिख गया कि आने वाली 5 अगस्त को हम दीप प्रज्वलित करेंगे और यह एक यतीम दीपक है , जिसकी जिंदगी में अंधकार है।

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Saurabh Chandra Dwivedi
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