By :- Saurabh Dwivedi
बहुत सी बातें
हम चुरा लेते हैं
अंदर ……..
सीने में कहीं
दफन कर लेते हैं
स्व की स्वीकृति से
एक सहज स्वीकृति
हम कह देना चाहते हैं
बहुत कुछ बाहर
फिर भी दफनाने के लिए
मिल जाती है
आत्म स्वीकृति ….
संजो लेना कहते हैं
इसे …….
अहसास के खजाने
दुनिया से छुपाकर
आत्मसात कर लिए जाते हैं
बड़े अनमोल होते हैं
वो खजाने
जो सहज ही
इस दुनिया में
हृदय का पिटारा खोलकर
दिखाए नहीं जाते
भय होता है
दुनिया की नजरों से
अहसास के खजाने पर
नजर ना लग जाए
कि कीमती हीरे – मोती से
अहसास के खजाने की
चमक ……
छीन ना ली जाए !
एक जिंदगी में
एक ऐसी जिंदगी
हम जिए जा रहे होते हैं !
तुम्हारा ” सखा ”
सच में बहुत खूबसूरत बात लिखी है। अपने जीवन कभी न कभी सब ऐसा ही करते हैं ।