By – Saurabh Dwivedi
दावा है जो भी पढ़ेगा अपनी जिंदगी के अदृश्य हमसफर को महसूस करेगा। लेखिका के हृदय से प्रस्फुटित ऐसी कहानी जो आत्मीय प्रेम के अनुराग को रूपांतरित करती है।।
लेखिका विनय पंवार जी द्वारा लिखित अदृश्य हमसफर जब मैं पढ़ रहा था , तो अपने आप में अदृश्य हमसफर को महसूस कर रहा था। कथानक के अनुसार उपन्यास का नाम अपने आपको शुरूआत से अंत तक सामाजिक जीवन के हर पहलू में चरितार्थ करता है। वह पात्र अनुराग ही क्यों ना हो। चूंकि अनुराग को एक घर में सिर्फ आश्रय ही नहीं बल्कि परिवार द्वारा प्रेम व सम्मान भी मिलता है। उस परिवार में अनुराग और वो परिवार पूरक अदृश्य हमसफर हैं।
इसके बाद अनुराग मृत्यु के समीप पहुंचते हुए भी ममता उर्फ मुन्नी के प्रेमी के रूप में अदृश्य हमसफर रहते हैं और देविका एक बहुत ही सुलझी हुई पात्र है , जिसकी वजह से कहानी जीवंतता प्राप्त करती है। सम्पूर्ण कथानक में जिंदगी के प्रति सकारात्मकता और आदर्श से परिपूर्ण प्रेम का दर्शन महसूस होता है।
कोई भी परिवार मुखिया की सूझबूझ से विशाल वट वृक्ष की तरह बना रहता है। उपन्यास के कथानक में मुखिया की व्यापक समझ का विस्तृत स्वरूप देखने को मिलता है , जो आमतौर पर सांसारिक जीवन में बहुत कम देखने को मिलता है। बहुत से परिवार मुखिया की कुंठित , घृणित व गलत परंपरा की आदेशात्मक सोच से ग्रसित पाए जाते हैं। किन्तु कहानी में परिवार के अंदर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पारिवारिक लोकतंत्र का दर्शन प्राप्त होता है।
यह कहना सत्य है कि कहानी अपने यथार्थ को सिद्ध करती है। आध्यात्मिक – अलौकिक प्रेम में त्याग समर्पण की परिभाषा को अदृश्य भाव से पाठक को महसूस कराती है। वास्तव में कुछ ऐसे ही प्रेमिल रिश्ते और अच्छाई से आज भी संसार का अस्तित्व बना हुआ है। प्रत्येक पाठक को अपना अदृश्य हमसफर महसूस कराती हुई उपन्यास के लिए लेखिका को कोटि – कोटि बधाई।