By :- Saurabh Dwivedi
ग्राम पंचायत चुनाव की आहट होने के साथ गांव की सियासत गरमाने लगी है और सियासी ग्रामीण हर हथकंडा अपनाने लगे हैं। नैनी ग्राम प्रधान के खिलाफ की गई शिकायत में स्पष्ट झलकता है कि चुनावी सियासत से अधिक कुछ और नहीं। प्रधान भी लामबंद हो खंड विकास अधिकारी विपिन कुमार सिंह को ज्ञापन देकर न्याय की गुहार लगाई।
ग्राम पंचायत के चुनाव नजदीक आते ही गांव मे सियासत का पारा चढ़ चुका है। हाल ही में नैनी ग्राम पंचायत से 2013 का जिन्न 2019 मे प्रकट हुआ है। दिलचस्प बात है कि प्रधान द्वारा सन 2013 में अवैध धन लेने की शिकायत सितंबर 2019 मे दर्ज कराई जाती है। लगभग सात वर्ष तक अवैध धन देने को कहने वाला लाभार्थी राजेश पुत्र मेरखू व ढुनगू पुत्र राजकुमार चुप्पी साधे रहते हैं। किन्तु अचानक ऐसा हुआ कि वह जिलाधिकारी के समक्ष प्रस्तुत होकर नैनी प्रधान द्वारा अवैध धन लेने की शिकायत दर्ज करता है।
एक दूसरी तस्वीर शीघ्र सामने आ जाती है। गांव के अन्य ग्रामीण लामबंद होकर जिलाधिकारी के समक्ष प्रस्तुत हो शपथ पत्र के साथ प्रधान की ईमानदारी की बड़ी बात कहते हैं। उन्होंने कहा कि प्रधान महेश गौतम लोकप्रिय व्यक्ति हैं। उन्होंने पूर्व पंचवर्षीय योजना में ईमानदारी से काम किया है। विकास कार्यों को देखते हुए जनता ने पुनः विजेता बनाकर ग्राम प्रधान बनाया है। यदि प्रधान द्वारा अवैध उगाही की जाती तो ऐसे में दूसरी बार भारी अंतर से चुनाव जीतना मुश्किल हो जाता।
ग्रामीणों ने यह भी आरोप लगाया कि प्रधान के सियासी विरोधियों के पाले में फंसकर उक्त लाभार्थी द्वारा झूठी शिकायत दर्ज कराई जा रही है।
गौर करने योग्य है कि सात वर्ष पूर्व का मामला अब जाकर उजागर होता है तो साफ झलक रहा है कि कहीं ना कहीं सियासत की बू अवश्य आती है। चूंकि लाभार्थी से धन मांगा गया। अतः उसी समय या कुछ महीने अथवा कुछ एक वर्ष पश्चात तक भी प्रशासनिक स्तर पर शिकायत दर्ज कराई जा सकती थी। किन्तु शिकायत दर्ज करने के लिए इतना लंबा समय लेना और चुनाव नजदीक आने के कुछ माह पूर्व ही शिकायत दर्ज करवाना प्रथम दृष्टया मामले को सशंकित बना देता है।
प्रधान के पक्ष मे अन्य लाभार्थी ग्रामीणों का खड़ा हो जाना। जिलाधिकारी को शपथ पत्र देना स्पष्ट करता है कि गांव के एक बड़े वर्ग को प्रधान से कोई समस्या नहीं है। मामला जांच का विषय अवश्य है परंतु शिकायत का समय और ग्रामीणों का प्रधान के पक्ष मे लामबंद होना साफ जाहिर करता है कि शिकायत दर्ज कराने वाला लाभार्थी अंततः विरोधी पक्ष की सियासत का शिकार हुआ है। अन्यथा की स्थिति में अवैध धन लेने का पुख्ता सबूत भी प्रस्तुत किया जा सकता था। जिसके अभाव में मामला कमजोर व सियासत से ताल्लुक रखता दिख रहा है।