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By :- Saurabh Dwivedi

कमी थी
मुझ मे
मेरे प्रेम में
मेरे अहसास में

जो कुछ भी था
था कुछ ऐसा
जो विरह की वेदना में
अनंत की यात्रा तक
ले चला वक्त मुझे

अहसास रचते रचते
घमंड का शिकार
जो हुआ मैं

प्रकृति के वरदान को
” मैं ” जो समझ लिया
फिर रचा ना गया
प्रेम मुझसे

एकाएक
दूरियां बढ़ती चली गईं
हाँ जरूरी था
जो मिलन
वो आत्मिक मिलन
एकाएक अहसासों में
हो जाता है

बस इत्ती सी
रत्ती भर
एक साँस
जितनी भावनाओं से
फिर रच जाता हूँ
अहसास मैं …….

तुम्हारा ” सखा “

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