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एक गाँव मे रहने वाली महिला थी। जो गाँव के परिवेश मे पली बढ़ी लेकिन काम करने की ललक थी। बुन्देलखण्ड का चित्रकूट धाम जो तपस्वी श्रीराम और माता अनुसुया के नाम से बड़ी पहचान रखता है उसी का एक छोटा सा गाँव सेमरिया जगन्नाथवासी की प्रधान बनने का अवसर मिला।

महिलाओं को मिले आरक्षण का फल है कि एक महिला घर की दहलीज से बाहर कदम रख सकी तो 2015 में प्रधान बनने के बाद उसकी नजर गाँव के तालाब पर पड़ी जिनमे एक तालाब एकदम सूख चुका था और दो तालाब में पानी होने के बावजूद पीने के योग्य नही था। गाँव का जल स्तर इतना कम हो गया था कि 75 हैंडपंप होने के बावजूद भी पीने योग्य पानी नही मिल पा रहा था और कुएं कूड़े-करकट का घोषला बन चुके थे व सूख चुके थे। हर कुएं का स्रोत मर गया था।

तब इस महिला प्रधान की आंखे डबडबा आईं थी कि मेरे गाँव की महिलाओं को दूर दराज तक हर रोज पानी भरने जाना पड़ता है और मैं भी एक नारी हूँ / महिला हूँ तो इस महिला प्रधान ने मन ही मन संकल्प लिया कि शुद्ध जल के लिए और जलस्रोत जिंदा करने के लिए कुछ तो करना होगा।

व्यथित मन से एक ढलती शाम को उन्होंने अपने पति संतोष त्रिपाठी से शिकायत करते हुए कहा कि महिलाओं को रोज इतनी दूर तक पानी भरने जाना पड़ता है और एक तालाब पर तो लोग कब्जा किए हैं , ना हैंडपंप ठीक से पानी दे रहे हैं , ना कुओं से शुद्ध पानी मिल पा रहा है। इसलिए गाँव के बच्चे बीमार हो जाते हैं और महिलाओं का स्वास्थ्य बहुत खराब है , हमें गाँव को इस समस्या से निजात दिलाना चाहिए। जिससे गांव के लोगों का जीवन बदल जाएगा और हमारी आने वाली पीढ़ियों की जिंदगी स्वस्थ और सुखद रहेगी।

उस शाम को अपने पति से कहने के बाद उसने सुबह एक निर्णय लिया कि तालाब से कब्जा हटाना होगा और जलस्तर बढ़ाने के लिए काम करना होगा। उस महिला ने एक प्रधान के अधिकार का प्रयोग कर संबंधित अधिकारी – कर्मचारी से बात करने लगी , तालाब के आसपास कि जगह की पैमाइश करा कर तालाब को कब्जा मुक्त कराया।

इससे पहले इस महिला प्रधान ने इतना काम कर लिया था कि ग्राम पंचायत को पुरस्कार के लिए चुना गया था। काम की बदौलत गांव को पंचायत पुरस्कार मिला था जिसकी धनराशि विकास कार्य के लिए थी।

कब्जा मुक्त तालाब में मनरेगा के तहत उसी पंचायत पुरस्कार की धनराशि से खुदाई करवानी शुरू की , फिर गर्मी के दिनों मे वैकल्पिक व्यवस्था कर बोरिंग के माध्यम से उस तालाब में पानी भरने की कोशिश शुरू हुई , जब तालाब पर पानी भर गया तो पशुओं को – पक्षियों को भी गर्मी के दिनों मे प्यास बुझाने का अवसर मिलने लगा तब वहाँ दृश्य बदल गया प्रकृति का मनोरम दर्शन होने लगा चूंकि आसपास मे लगे वृक्ष पर भिन्न भिन्न प्रजाति के पक्षी चहचहाने लगे।

इसके साथ ही गांव मे लगे सभी हैंडपंप की मरम्मत करवाई जिनसे कुछ अच्छा पानी मिलने लगा और कुछ समय बाद बारिश के मौसम मे जल से भरे लबालब तालाब की वजह से जल स्तर बढ़ने लगा तो अन्य सभी हैंडपंप से पानी मिलने लगा और गांव की महिलाएं प्रसन्नचित्त नजर आने लगीं।

उनके इस प्रयास से पानी के संकट से जूझ रहा गांव एक पानीदार गांव हो गया। कहते हैं काम बोलता है इसलिए ये महत्वपूर्ण काम अखबार मे खबर बना तो उनके इस कार्य की बदौलत एक दिन लखनऊ मे होने वाले नेशनल क्लाइमेट कानक्लेव 2023 के प्रोग्राम मे एक पैनलिस्ट के रूप मे आमंत्रित किया गया।

जहाँ उन्होंने जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण संरक्षण विषय पर अपने गांव का यह किस्सा सबके सामने प्रभावशाली आवाज मे रखा और मंच के सामने से तालियों की गड़गड़ाहट सेमरिया जगन्नाथवासी की प्रधान दिव्या त्रिपाठी का अभिनंदन कर रही थीं और मंच के सामने ताली बजाने वालों मे से एक पति की तालियां भी पत्नी का उत्साहवर्धन कर रही थीं और ये शानदार दृश्य कहीं और नही भारत देश मे घटित हो रहा था।

बदलते समय मे नारी शक्ति लोकतंत्र मे काम की बदौलत नेतृत्व के सामाजिक – राजनीतिक क्षेत्र मे परिश्रम और प्रतिभा से स्वयं को साबित कर रही हैं।

जिन्होंने जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण विषय जल एवं पर्यावरण संरक्षण पर काम किया , ग्राम्य जीवन स्तर सुधारने के लिए काम किया। इसलिए अपने गाँव मे अन्य कार्यों के लिए रानी लक्ष्मीबाई अवार्ड , पंचायत पुरस्कार एवं बेटियाँ अवार्ड से सम्मानित किया गया है।

लेखक
सौरभ द्विवेदी
(लेखक अंतस की आवाज एवं सोशल काॅकटेल दो किताब और विभिन्न राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक के संपादकीय पृष्ठों पर सामाजिक राजनीतिक मुद्दों और मानवीय मूल्यों पर लिखते रहते हैं )

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