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निशी के जज्बे को नगर के लोग सलाम कर रहे थे। वह चुनाव अच्छा लड़ रही थीं लेकिन एकमुश्त वोट की कमी और अनुभवहीनता ने शिकस्त दे दी , इस चुनाव से लोकसभा चुनाव साधने तक की तैयारी मे कुछ नेता निशी और उसके भाइयों को गुमराह करने मे सफल रहे तो संदेश भी बड़ा स्पष्ट गया है।

ओबीसी सीट से चर्चा मे आई निशी सोनी सामान्य सीट पर भी प्रत्याशी बनी , जब दल से टिकट नही मिला तो निर्दलीय चुनावी दंगल मे कूद पड़ी। निशी का हर प्रयास सराहा जा रहा था तो निशी दुगनी ऊर्जा से चुनाव लड़ रही थी।

हालांकि निशी के साथ उसके भाइयों की ताकत थी और इस जनपद चित्रकूट की कुछ अदृश्य राजनीतिक ताकतें भी निशी का साथ दे रही थीं जो लोग 2024 को देखते हुए अपने राजनीतिक लाभ के लिए नरेन्द्र गुप्ता को चुनाव हराकर लखनऊ और दिल्ली मे बड़ा संदेश देना चाहते थे लेकिन इनकी राजनीति नकारात्मक तरीके की है तो जनता ने फिर एक बार इनकी आवाज को नकार दिया।

चूंकि निशी अभी राजनीति मे प्रवेश की हैं तो उन्हें राजनीति की लड़ाई और संदेश का बहुत अनुभव नही था। वो एक मासूम लड़की है जिसे किसी बुजुर्ग ने कह दिया कि बेटा इतनी धूप मे घूम रही हो तो वह उत्साहित होकर और अधिक प्रयास करने लगी कि अरे मुझे तो बुजुर्ग का आशीर्वाद मिल गया है।

लेकिन निशी को लोगों ने अपना राजनीतिक अस्त्र – शस्त्र भी बना लिया था कि कैसे वे 2024 को साध लें। चित्रकूट के इन बड़े नेताओं को यह चिंता बिल्कुल नही थी कि निशी चुनाव जीते या हारे बस वह अगर नरेन्द्र गुप्ता को नुकसान पहुंचाकर हरवा देती है तो वह लखनऊ और दिल्ली मे अपना मुंह दिखा सकेंगे।

इसी चक्कर मे बांदा की ओरन सीट से कांग्रेस जीत गई और चित्रकूट की मानिकपुर सीट से पूर्व चेयरमैन विनोद द्विवेदी के घर मे काम करने वाली निर्दलीय प्रत्याशी ने भाजपा के प्रत्याशी को हरा दिया , इस तरह आनंद शुक्ला और चन्द्रिका प्रसाद उपाध्याय ने ओरन और मानिकपुर की सीट गंवा दी चूंकि कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना चल रहा था।

इधर चुनाव को भाजपा की ओर से खींचने का वह प्रयास ध्यान करिए जब सोशल मीडिया पर यह पोस्ट तैरने लगी कि ब्राह्मण समाज अपनी ताकत दिखाए तो ब्राह्मण समाज को ताकत कहाँ दिखानी थी ? यह जवाब पोस्ट करने वाले नेता जरूर दें।

एक ब्राह्मण संगठन है जो खुद को गैर राजनीतिक संगठन कहता है लेकिन वोटिंग के एक दिन पहले निर्दलीय प्रत्याशी बद्री प्रसाद द्विवेदी को वोट देने की अपील इसलिए करते हैं कि वह एकमात्र ब्राह्मण प्रत्याशी है , यह तथाकथित प्रयास ब्राह्मण वोट की ठेकेदारी – दलाली का प्रयास कहा जाएगा जो इस चुनाव मे असफल रहा और ब्राह्मण समाज ने इनको ठेंगा दिखाया।

राजनीति का कम अनुभव रखने वाली निशी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप मे शानदार तरीके से चुनाव लड़ी और जुलूस निकालने तक तो उनमे खासा अनुभव आ चुका था। वह अच्छा संवाद करने लगी थीं और सवालों के जवाब सटीक देने लगी थीं।

फर्क सिर्फ इतना था कि इनकी टीम मे सकारात्मक ऊर्जा रखने वाले अनुभवी लोगों की कमी थी जैसे एक विशेषज्ञ ने सटीक आंकड़ा बता दिया था कि 5 से 6 हजार तक वोट मिलेंगे तो उनके कुछ समर्थकों को बहुत बुरा लगा और निशी के भाइयों के कान भरने का काम किया।

अन्यथा निशी अंतिम दिन जुलूस मे शामिल लोगों को आधार बनाकर वोट की अपील करती तो कुछ वोट का इजाफा हो सकता था लेकिन अनुभवहीन लोगों ने निशी से कहलाया कि राखी का मान मांग रही हूँ तो अपने भाइयों को छोड़कर या कुछ और परिचित भाइयों के अलावा कितनों को राखी बांधा होगा , ऐसे मे समाज इमोशनल फूल अब नही बनना चाहता।

यह तय है कि निशी आगे अगर प्रयास करती रहीं तो वह किसी भी दल से भविष्य मे नगरपालिका अध्यक्ष के रूप मे कर्वी नगरपालिका मे बैठ सकती हैं। इसलिए निशाना किसी ने कुछ भी साधा हो लेकिन निशी स्वच्छ छवि वाली नेत्री के रुप मे उभरकर सामने आई हैं बस सलाहकार और एक अच्छी टीम की आवश्यकता होगी।

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