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प्रधानाध्यापक विजय शुक्ला.

चित्रकूट : खेती के काम आने वाली देसी चीजों जैसे खुरपी, खुरपा, हंसिया व फावड़ा बनाने वाले लोहगाड़िया जाति के ज्यादातर लोग घुमंतू जीवन जीते हैं। खुले मैदान में रहना और रोजी-रोटी के लिए इधर-उधर घूमना ही इनके जीवन का हिस्सा है। इनमें अपने पुरखों का दिया हाथों का हुनर तो है लेकिन इनमें से अधिकांश को पढ़ना- लिखना भी नहीं आता। लोहे को महिलाएं घन से पीट पीटकर औजार की शक्ल देती हैं और पुरुष सुबह से इन्हें बेचने को बाजार निकल जाते हैं। यही इनकी जिंदगी है। यही करते करते इनकी पीढ़ियां गुजर जाती हैं।

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अपने कर्वी शहर के इलाहाबाद रोड में सड़क से सटे मैदान में रंग-बिरंगे तिरपालों के कई झोपड़े बने दिखाई देते हैं। यहां जाकर आप देखते हैं तो यहां रहने वाली ज्यादातर महिलाओं और लड़कियों ने रंग बिरंगे कपड़े पहन रखे हैं। तंबुओं के किसी कोने से ढेर सारे बच्चों के खेलने की आवाज़ें आ रही होती हैं। तो कहीं गर्म लोहे पर चलाए जा रहे घन (बड़ा हथौड़ा) लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं।

ये घुमंतू लोहारगाड़िया समुदाय की अस्थाई बस्ती है। जो पिछले 8-9 साल से अस्थायी रूप से यहीं दिखाई देती है। ये लोग इतने हुनरमंद होते हैं कि कैसे भी कोयले की आंच में तपाकर किसी तरह के और कैसे भी लोहे को आकार दे देते हैं, कबाड़ को औजार में बदल देते हैं लेकिन अपने बच्चों के भविष्य को संवारने में ये लोग काफी पीछे हैं।

सड़क किनारे रह रहे इन आधा दर्जन लोहगाड़िया परिवारों में करीब छोटे बड़े मिलाकर 50 सदस्य हैं, लेकिन किसी ने भी स्कूल का मुंह नहीं देखा। ज्यादातर लोगों ने कहा उन्हें पढ़ना-लिखना बिल्कुल नहीं आता। इक्का दुक्का लोग ही होंगे जो बस अपना नाम लिख लेते हैं। वे कहते हैं-“पुरखों ने कभी पढ़ाई-लिखाई की ओर जाने ही नहीं दिया। कभी यहां कभी वहां भटकने के कारण मां- बाप स्कूल भेजने से डरते रहे। इसलिए पढ़ नहीं पाए। यही हाल हमारे बच्चों का भी है।” यह कहते हुए अधेड़ महिला सिर नीचे कर चुप्पी साध लेती है, दो मिनट बाद उदासी भरे लहजे में जवाब देती है कि वो भी चाहते हैं उनके बच्चों की जिंदगी उनकी तरह न गुजरे लेकिन उनके मुताबिक हालात उनके साथ नहीं हैं। इनके ज्यादातर बच्चों के पास आधार कार्ड ही नही हैं। बच्चों के जन्मतिथि का कोई भी प्रमाण इनके पास नही है। अभिभावकों के पास बैंक खाते भी नही हैं।

बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा जिले भर में शुरू कराए गए हाउस होल्ड सर्वे में 6 से 14 वर्ष के स्कूल न जाने वाले बच्चों को चिन्हित करने को सर्वेक्षण कराया जा रहा है। जिसके लिए शिक्षक अपने सेवित क्षेत्र में घर-घर जा रहे हैं। नगर क्षेत्र के सती सीता प्राथमिक विद्यालय की शिक्षा मित्र विद्या गुप्ता ने ऐसे ही कुछ बच्चों को चिन्हित कर इसकी सूचना  प्रधानाध्यापक विजय प्रकाश शुक्ला को दी। प्रधानाध्यापक ने भी इसे गंभीरता से लेते हुए खुद इनकी बस्ती में जाकर इनके प्रवेश फॉर्म भरे।  मोबाइल से बच्चों की फोटो खींचकर  बनवाया। साथ ही इनके अभिभावकों को आश्वस्त किया कि आप चिंता न करो, इनका आधार हम बनवाकर देंगे। साथ ही कॉपी, किताब आदि बेसिक शिक्षा विभाग से प्राप्त होने वाली सभी सुविधाएं इन बच्चों को दिलाई जाएगी। साथ ही इन परिवारों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने में भी मदद करेंगे।

शुक्रवार को की गई मेहनत आज उस समय रंग लाई जब इस बस्ती के करीब एक दर्जन बच्चे स्कूल आ गए। विद्यालय में इन बच्चों का स्वागत किया गया। पहली बार स्कूल आकर बच्चें बहुत खुश थे। विद्यालय में बहुत से नए दोस्त पाकर इनकी खुशी मानो चौगुनी हो गयी। सभी बच्चों ने बहुत ही उत्साह से साथ मध्याह्न भोजन में हिस्सा लिया। सभी बच्चों को विद्यालय में उपलब्ध पुस्तकें भी दी गई। बस्ते भी दिए गए।

प्रधानाध्यपक के अनुसार सारे आवश्यक अभिलेख जुटा कर एक- दो दिन में इनका प्रवेश कर लिया जाएगा। इस पहल की जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी राजीव रंजन मिश्रा ने सराहना की है। उन्होंने कहा कि स्कूल न जाने वाले सभी बच्चों को सर्वे में चिन्हित कर समीप के परिषदीय विद्यालय में प्रवेश दिलाया जाएगा।

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