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@Saurabh Dwivedi

पंचायत चुनाव मे अनबैलेट वोट के खेल्ला को समझिए।

मनुष्य अनुभव प्राप्त नहीं करता , परिस्थितियाँ उसे अनुभव प्राप्त कराती हैं। पंचायत चुनाव मे बैलेट – अनबैलेट वोट का अनुभव प्राप्त हुआ। अनबैलेट वोट का खेल्ला कैसे होता है उसे जानने से पूर्व मेरे हृदय के कौतूहल का अहसास भी करिएगा , महसूस करिए आखिर किस तरह षड्यंत्र रचने वाले लोग जनता के मत को अवैध बनाने का काम करते हैं।

और इस काम मे सरकारी मशीनरी के लोग सरलता से सम्मिलित हो जाते हैं। सब्जी – पूड़ी का रोल बहुत बड़ा है। पोलिंग पार्टी को चाय पिलाकर जो खेल्ला खेला जाता है उसका अहसास गांव की आम गरीब जनता नहीं कर पाती है। प्रत्याशिता की दौड़ मे शामिल तमाम प्रत्याशी भी किसी खास दबंग प्रत्याशी का संवैधानिक सामाजिक विरोध भी नहीं दर्ज करा पाते हैं।

हाल ही के पंचायत चुनाव मे अनेक गाँव से अनबैलेट वोट का जखीरा निकला। मैं भी ग्राम नोनार मे प्रत्यक्षदर्शी था , जहाँ दौ सैकड़ा एकमुश्त वोट अनबैलेट निकला। लेकिन अनुमान तीन सैकड़ा वोट के अनबैलेट होने का था। सीना फाड़कर चिंतन करिए कि एकमुश्त इतने वोट बिना किसी षड्यंत्र के संभव हैं ?

बुंदेलखण्ड का स्वाद प्रिया मसाले

असल मे चुनाव जीतने के लिए धन कुबेर पिटारा खोल देते हैं जैसे सपेरा पिटारा खोलता है तो नाग फन काढ़ लेता है। ठीक वैसे ही पंचायत चुनाव मे पोलिंग पार्टी के पहुंचते ही नाश्ता पहुंचने लगता है। फिर सेटिंग – गेटिंग और मनुहार से कहानी सिद्ध होने लगती है। जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती वह गेम सुरक्षा कर्मियों की नेत्रों के सामने शुरू हो जाता है।

एक प्रत्याशी ने सोचा कि चुनावी जीत कैसे हासिल हो ? तो उसमे दूसरों के वोट अनबैलेट कराने का खेल भी कबड्डी मे पाला छू गया है कि नहीं जैसा प्रयास है। जैसे कबड्डी मे प्रयास करते हैं कि पकड़े तो बहुत सारे लोग हैं परंतु कोई तरह पाला छू लिया जाए। ऐसे ही पंचायत चुनाव मे कबड्डी खेली गई।

जब – जब वो प्रत्याशी देखता कि अब दूसरे प्रत्याशी को वोट देने वाली महिला मतदाता प्रवेश कर चुकी हैं , तब – तब वह बूथ के अंदर प्रवेश करता और मुहर गायब कर देता , इतने मे निरक्षर महिलाएं अंगूठा लगाकर चली आतीं। ऐसा क्रम चलता रहा और कहीं कोई समझ नहीं सका , कोई शोर नहीं। चूंकि जनता के समक्ष यह संदेश दिया जाता कि कितना वोट पड़ा है इसकी काउंटिंग पता करने के लिए आ – जा रहे हैं। जब तक इस खेल को कोई जागरूक व्यक्ति समझ सका तब तक बड़ा खेल्ला हो चुका था।

हाँ ! अगर कुछ रूक सका तो देर रात फर्जी वोट डलवाने का खेल्ला बर्बाद हो चुका था। चूंकि एक मजबूत आपत्ति दर्ज होने के बाद तथाकथित प्रत्याशी बूथ पर टिक नहीं सके। अन्यथा तय था कि जिस अच्छी छवि का ढिंढोरा पीटा जाता है वो लोकप्रियता फर्जी वोट के माध्यम से भुनाई जाती और फिर परिणाम मे जीत मिलने के बाद जनता का आभार व्यक्त किया जाता।

चुनाव आयोग को भविष्य के लिए निर्देश देने चाहिए कि पीठासीन अधिकारी खुद पैड पर मुहर लगाकर मतदाताओं को दिलवाने का प्रबंध करें चुंकि इक्कीसवीं सदी मे भी गाँव की महिलाओं मे जागरूकता की कमी है तभी अंगूठा छाप बैलेट पेपर निकले जिन्हें आप अवैध मत स्वीकार करते हैं।

यहीं पर ईवीएम बनाम बैलेट पेपर की जंग के स्पष्ट दर्शन भी मिल जाते हैं। ईवीएम मे कम से कम वोट अनबैलेट नहीं होता है। वहीं विपक्ष कहता है कि ईवीएम हैक हो जाती है तो नेता जी समझिए गाँव का छुटभैइया बैलेट पेपर हैक करवा लेता है , यह एक प्रकार की हैकिंग है ! जो पोलिंग पार्टी की मर्जी से कर ली जाती है। इसके अनेक कारण होते हैं जैसे कि जातीय समीकरण सेट हो जाए और धन कुबेर जी प्रकट हो जाएं अथवा व्यवहारिकता से भी संपन्न हो जाता है। या फिर उनकी आंखो मे धूल झोंक कर खेल खेल लिया जाता है।

संभवतः वीवीपैट लगने के बाद ईवीएम बेवजह ही बदनाम है असल मे सारा खेल बैलेट पेपर पर खेला जाता है। जहाँ मुहर गायब करना , गायब करवाना और वोट अनबैलेट करवाना एकदम सरल काम है। जो पंचायत चुनाव मे लगातार घटित हो रहा है। तमाम गांवो मे यह खेल्ला खेलकर चुनाव जीता जाता है , जिसका बासबूत सरकारी रिकार्ड से कोई संबंध नहीं रह जाता और गांवदारी के संकोच मे तमाम प्रत्याशी से लेकर जनता तक मन मसोस कर रह जाती है। यही कारण है कि कनकोटा जैसे गांव का विवाद सामने आ जाए तो वह गैरकानूनी हो जाता है अपितु चुपके से गैरकानूनी तरीके से चुनावी परिणाम ऐसे खेल्ला से आ जाते हैं।

खैर नसीब की बात थी। ऊपर वाले से बड़ा कोई नहीं , आदमी अपने आप बहुत बड़े प्रयास करता है लेकिन प्रकृति के न्याय के सामने उसकी सारी योजनाएं विफलता की कहानी बन जाती हैं। तो कहीं – कहीं कभी कभी लोगों ने सफलता हासिल भी की है।

असल बात यह है कि भारत मे चुनाव सुधार कार्यक्रम की अभी भी बड़ी आवश्यकता है। कहने को विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है परंतु हकीकत मे सबसे कमजोर लोकतंत्र है , जहाँ आज भी चुनाव पारदर्शी नहीं हैं। पंचायती राज व्यवस्था को सुंदर – स्वस्थ गांव के निर्माण के लिए जाने कितना पसीना अभी बहाना पडेगा। फिर भी लगता नहीं कि आवश्यक सुधार धरातल पर ओले बनकर गिर पड़ेंगे।

समाज को किसी व्यक्ति विशेष की अच्छी छवि की गहराई का पता होना चाहिए। जनता को हकीकत जानना चाहिए। गांव की जनता को अपने मुद्दों को लेकर जागरूक होना चाहिए। यह भी अहसास होना चाहिए कि चुनावी जीत किसी को अच्छी छवि का प्रमाण पत्र नहीं देती अपितु अच्छी छवि वाले लोग षडयंत्रकारियों के षड्यंत्र से चुनाव हार जाते हैं , जिसमे जनता के फंसने से अंततः चुनाव हारते हैं तो यह वैसे ही है जैसे बैलेट वोट अनबैलेट करा दिए जाते हैं।

आज आधार कार्ड के दौर मे मशीन पर अंगूठा लगाने से बेवसाइट काम करती है और आधार कार्ड अंगूठे के निशान से बनता है लेकिन बैलेट पेपर पर यही अंगूठा अवैध माना जाता है जो आधार कार्ड पर वैध है और बैलेट पर अवैध है , यह लोकतंत्र है हमारा।

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