@Saurabh Dwivedi
किसी भी लेखक / लेखिका की पहली किताब लेखकीय संसार में उसका जन्म होने जैसा होता है , यह सच है कि जन्म लेने वाले बच्चे के रोने की आवाज को आज तक कोई पढ़ नहीं सका और महसूस नहीं कर सका।
यहाँ तक की लोग बच्चे के रोने को नजरंदाज कर देते हैं , अब एक वैज्ञानिक कारण बताकर भी रोना अनसुना कर दिया जाता है। लेकिन यह सत्य है कि जन्म लेने वाला बच्चा यदि रोता नहीं है तो उसके बचने के अवसर कम होते हैं और यदि बच गया तो वह अर्द्धविक्षिप्त हो जाता है , जैसे कि मेरे मित्र का एक बेटा अर्द्धविक्षिप्त है !
बच्चा क्यों रोता है ? बच्चा रोने की भाषा मे क्या कहता है ? बच्चा जिज्ञासावश रोता है अथवा एकाएक गर्भ से मायावी दुनिया में आने से रोने लगता है। आखिर रो कर वह कुछ तो व्यक्त करता है जो आजतक समाज के लिए अव्यक्त है !
यह एक बच्चे के जन्म लेने की तरह है कि किसी भी लेखक / लेखिका की पहली किताब बुजुर्ग साहित्य परिजनों द्वारा भी नजरंदाज की जाती है , यहाँ तक कि साहित्य के क्षेत्र मे संघर्ष कर रहे लेखकों के द्वारा भी किसी लेखक / लेखिका पहली किताब को कम से कम ठोकर मार दी जाती है , यही लेखक / लेखिका के संघर्ष का कारण बनता है।
मेरी अपनी कोई मजबूरी हो तो बेशक मैं किसी की पहली किताब ना आर्डर कर सकूं पर यदि मेरे संपर्क में कोई लेखक / लेखिका की पहली किताब आएगी तो मैं उसे अवश्य क्षमतानुसार – समयानुसार लेना चाहूंगा / लेता हूँ।
किसी ने किताब लिखी है तो उसमें जरूर कोई ना कोई शब्द , कोई ना कोई भाव हमें स्पर्श कर जाएगा। कुछ ऐसा अवश्य मिल जाएगा जो हमने अपने जीवन मे घटित होते हुए देखा होगा लेकिन अंतर्मन मे महसूस ना किया हो। संभवतः आत्मनिरीक्षण ना किया होगा ! किसी एक किताब से एक शब्द भी शब्द कोष में आ गया तो समझिए कि किताब के पैसे वसूल हो गए , और पहली किताब लेने से किसी के लेखकीय संसार में जन्म को साकार करना होता है।
वैसे तो हम सोशल मीडिया पर जन्मदिन की बधाई देते हैं , आभासी शुभकामनाएं प्रेषित करते हैं और यह कितना खूबसूरत होगा यदि हम किसी की पहली किताब खरीदकर उसे प्रोत्साहन प्रदान करें , बधाई दें और शुभकामनायें प्रेषित करें। हमारा अपना परिवार होता है , सोशल मीडिया भी एक परिवार की तरह है और परिवार वही है जो किसी अपने के प्रथम प्रयास के साथ प्रोत्साहन की परछाईं बनकर खड़ा हो सके।
मैं सोचता हूँ कि आखिर एक किताब मे बुरा क्या हो सकता है ? मैं सोचता हूँ कि किसी की पहली किताब को प्रोत्साहित कर हम कितने छोटे हो सकते हैं ? हमारा कद कितना कम हो जाएगा यदि किसी की पहली किताब को चर्चा के केन्द्र मे ला दें ?
यह कितना कम हो पाता है कि कोई अपने मन की अभिव्यक्ति संसार के समक्ष प्रस्तुत कर सके और यदि ऐसा किसी ने किया है तो वह सचमुच बधाई के पात्र हैं। जिस दुनिया में सबसे पहले नकारे जाने का भय हो , मजाक का पात्र बनने की शंका हो तो चिंतन की बात है वैसी दुनिया में किताब रूपी मानस अहसास और अनुभव को प्रकाशित करना कितना बड़ा जोखिम लेना है और ऐसा जोखिम उठाने वाले प्रोत्साहन के हकदार हैं।
नवोदित लेखिका नम्रता अश्विनसुधा की किताब क़फ़स के बारे में जब लिखने को सोच रहा था तो मेरे मन में सहज ही यह सोच साकार होने लगी। मुझे यह बात लगने लगी कि इस दुनिया में किताब को प्रोत्साहन मिलना भी बड़ा कठिन काम हो गया है , यह कठिनाई किताब मे है या लोगों के मन में और उनके मन में जो साहित्य की दुनिया से जुड़े हुए हैं और कभी ना कभी उनकी भी पहली ही किताब आती है या फिर ऐसा भी हो सकता है कि किसी की पहली किताब भी नहीं आई होती फिर भी उनके मन में ऐसी कठिनाई सरलता से आकार लिए होती है ! यही एक बड़ा कारण है कि साहित्य की दुनिया में भ्रूण हत्या की जाती है और वही लोग भ्रूण हत्या पाप है पर कविता लिखते हैं , पढ़ते हैं व सराहते हैं और इसी को दोहरी मानसिकता कहा जाता है।
मुझे ऐसा लगता है कि किताब कोई बुरी चीज नहीं है कि उससे हमारा कोई नुकसान हो जाएगा। यह भी सच है कि साहित्य की दुनिया के रजनीगंधा साहित्यकारों का कद किसी की पहली किताब को प्रोत्साहित करने से कम नहीं हो सकता। चूंकि जिसने भी पहली किताब लिखी है , उसमें सचमुच ईमानदारी का भाव सबसे ज्यादा प्रबल होगा। भला एक मासूम से ज्यादा ईमानदार सयाना हो सकता है ?
इसलिए साहित्य समाज के पटल पर कद – पद के साथ पहली किताब के प्रोत्साहन को लेकर सवालों के साथ विचार-विमर्श हेतु कफ़स का परिचय करा रहा हूँ।
लेखिका नम्रता अश्विनसुधा की यह पहली कविता की किताब है , जो उन्होंने अपनी जिंदगी के अनुभव ” कलम से पन्नों ” तक उतारे हैं , जिसमें समाज की सच्चाई उकेरी गई है। वे स्वयं कहती हैं कि ‘ एक मन पुराना ‘ ! उन्होंने कविताओं को प्रस्तुति का माध्यम चुना है।
आपकी पहली किताब क़फ़स Amazon पर उपलब्ध है।
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