आज दोपहर बांदा से वापसी के दौरान एक गाय देखी थी। उसके कान पर हल्के पीले कलर का नंबर लिखा हुआ सिक्का जड़ा हुआ था।
बेशक सिक्का जड़ा था पर उसका बसेरा सड़क पर ही होता है।
देश में “गौरक्षक” जन्मे हैं। ये गौरक्षक हिंसात्मक हो जाते हैं। इनकी रक्षा इस बात की है कि कोई गाय को काटेगा, खायेगा तो वे उसको पीटेगें और इतना पीटेगें कि उसकी मृत्यु हो जाए।
ये एक परिवार बसा नही सकते। एक मां, एक पिता से उसकी संतान को जरूर छीन लेगें। इन संतानो को भी समझ में नही आ रहा है कि छोड़ दो एक को खाना। आखिर गाय का मांस नही खाओगे, तो सेहत पर असर नही पड़ेगा।
हाँ देश के माहौल में जरूर फर्क पड़ता है। देश की सेहत पर असर होता है। ये बात भी सबको पता है कि एक गाय के मुद्दे से देश की जनता को वो सुख सुविधाएं नही मिल सकती। जिनकी दरकार किसान और युवाओ को है।
आंदोलन कोई भी हो बड़ा हिंसक होता जा रहा है। नेतृत्व ऐसा है कि एक गाय के मुद्दे पर आपसी सहमति नहीं बना सके।
राष्ट्र भक्त दोनों तरफ के हैं। एक कहते हैं कि हमें राष्ट्रभक्ति साबित करनी पड़ती है, ये तीसरे वाले हैं।
बहुत समय पहले ही सोशल मीडिया पर किसानों के मुद्दे पर बात करना चाहता था। कुछ पोस्ट की किंतु किसी ने रूचि नही दिखाई। जब किसानों के मुद्दे पर राजनीति शुरू हुई। दंगा फसाद हो गया, तो वे लोग सक्रिय हो गए।
बड़ी बड़ी बातें सोशल मीडिया पर होने लगीं। इनमें कुछ ऐसे लोग भी शामिल हैं जो किसी राजनीतिक पार्टी के प्रीपेड रिचार्ज पर चलते हैं।
गांधी की बात करते हैं। कहते नही थकते कि देश गांधी का है, तो बेचारे अन्य आजादी के शूरवीर हांसिये पर पहले ही चले जाते हैं। खैर राष्ट्रपिता हैं तो “राष्ट्रपुत्रों” की बात क्या करना ?
इतना समझ लीजिये कि होश की गोली खा लीजिए। योग करते हैं तो योगी का परिचय दीजिए। हिंसात्मक मत बनिए। योग और साधना करने वाले समभाव रहते हैं। मुद्दा किसान का हो या गाय का हो मौत नही होनी चाहिए।
संवाद करिए, समरसता कायम करिए। नकारात्मक ऊर्जा खत्म करिए। सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करिए। देश में समृद्धि आयेगी तो शांति भी आयेगी।
अंदर ही अंदर मनुष्य जानवर से बत्तर दानव बनता जा रहा है और बात मानवता की करते हैं। साहब यहाँ बड़े लोचे हैं।
टीवी चैनल पर भी चीखते चिल्लाते हैं और कहलाते बुद्धजीवी सिविल सोसायटी के लोग हैं।
मेरी सिर्फ इतनी सी इच्छा है कि देश को मूल मुद्दो से मत भटकाइये। अभी भी वक्त है संभल जाइये।
By – Saurabh Dwivedi