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By :- Anuj pandit ( शोधार्थी )

पाँच वर्ष विदेश में रहने के पश्चात् विजय अपने गाँव वापस आया। आते ही घर का माहौल खुशनुमा हो गया।

शाम को दादा जी ने कहा -“अरे विजय! मैं रोजाना की तरह बाग का चक्कर लगाने जा रहा था तो सोचा तुझे भी साथ ले चलूँ!”

“ऑफ कोर्स दादा जी! चलिये,इसी बहाने वॉक भी हो जायेगी।”

दादा जी अपने पोते के साथ टहलते हुये बहुत आनंदित हो रहे थे। बातों ही बातों में दादा जी ने पूरे बाग के पेड़-पौधे दिखा दिये, तभी दादा जी की नजर एक पेड़ पर पड़ती है । उन्होंने कहा-
“देखो विजय! यह शहतूत का पेड़ कितना सुंदर लग रहा है!”

विजय- “अच्छा! क्या सचमुच यही शहतूत का पेड़ है?…? इस पर तो मैंने पीएच.डी. की है!”

दादा जी ने विजय को बड़ी हेय-दृष्टि से देखा!

(️अनुजपण्डित युवा स्वतंत्र लेखक एवं शोधार्थी हैं , आप समसामयिक विषयों पर लेख , लघुकथा आदि लिखते हैं )

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