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मेरे सीने पर एक धक्का लगा है। जो समस्त नेताओं और सरकार की चुप्पी के साथ जोर से धक धक कर रहा है। 
सपा शासनकाल में प्रतापगढ के सीओ जियाउल हक की हत्या कर दी गई थी। अखलाक की मृत्यु एक भीड़ ने कर दी थी। गुजरात में कुछ दलितों को गौरक्षकों ने पीटा था। रोहित वेमुला ने आत्महत्या कर ली थी। 
ये मामले सड़क से लेकर संसद तक गूंजे थे। पूरे देश में अफरातफरी मची थी। मुआवजा देने के लिए सरकारी बजट का पिटारा खुल गया था। 
मैं इस एक विषय पर बात नही करना चाहता था। मैं सर्वसमाज और इंसानियत की बात करता हूं। अगर जाति विशेष की बात करूंगा तो वह कितनी भी न्यायिक हो यकीनन मुझ पर जातिवाद का टैग लग जायेगा। 
इतिहास खंगाला जाने लगेगा कि इतना सताया उतना सताया। जिसे मैने अपनी आंखो से देखा नही है। एक जीती जागती घटना रायबरेली से है।
अब तक जितना सुना और जाना है। उनके मुताबिक कुछ यादव ने 5 ब्राह्मणों को मौत के घाट उतार दिया। शासना भाजपा का है और सीएम महंत योगी आदित्यनाथ हैं। 
राज्य से लेकर केन्द्र तक कहीं कोई मुद्दे की बात तो दूर इनके लिए कोई मुआवजा भी नही है। किसी नेता के लिए राजनीति का माध्यम भी नही हैं।
तथाकथित ब्राह्मणवादी संगठन क्या कर रहे हैं ? ये सिर्फ गाल बजाते हैं या ब्राह्मण हित के लिए कहीं कुछ करते भी हैं। खैर मेरी एक ही बात रही है कि ब्राह्मण वही जो सर्वसमाज को साथ लेकर चले। एक सूत्र मे पिरो सके। 
किंतु आज जिस न्याय की जरूरत है। उसे कौन सी सरकार, कौन सा कानून और संविधान प्रदान करेगा ? 
जुनैद की मृत्यु पर पुरस्कार वापिसी हो जाती है। लेकिन ब्राह्मण की हत्या पर कहीं कोई शोरगुल नहीं। ये बुद्धिजीवीपना नहीं बल्कि कायराना इश्क है। 
ब्राह्मण इंसान नहीं हैं ? मानवाधिकार जीवित है क्या ? वामपंथियों की न्यायिक लेखिनी की कलम की नोक टूट गई क्या ? संवैधानिक अधिकार तो सबको बराबर है या नहीं ? 

By – Saurabh Dwivedi

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