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अधिनियम का मूल उद्देश्य है महिलाओं को सुरक्षित वातावरण उपलब्ध हो जहां वे कार्यरत है और चाहे किसी भी तपके या वर्ग से आ रही हो उन्हें एक गरिमामयी जीवन जीने का अधिकार हो ।उन्हें रोजगार के अवसर मिले ताकि समानता की बाते सिर्फ बातों में न हो व्यवहार हो।

यू एन की रिपोर्ट बताती है कि दुनियां भर में महिलाओं की आबादी 49.3% है यानी आधी आबादी। बदलते समय के साथ जीवन शैली और महिलाओं के प्रति लोगों की सोच बदली है उन्हें समानता का अधिकार मिला है।आज महिलाएं प्रखर होकर अपने हुनर से आगे आ रही है। हर क्ष्रेत्र में उन्होंने अपनी उपस्थिति को बखूबी दर्ज करवाया है। निसहाय,कमजोर, अशिक्षित जैसे उपनामों की बेड़ियाँ को तोड़ कर अब वे एक सशक्त ,शिक्षित, आत्मनिर्भर जैसे उपनामों को साकार करती दिख रही हैं।

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किंतु अब भी उनकी सुरक्षा समाज और कानून दोनों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। संविधान द्वारा दिये गए मूल अधिकारों में समानता का अधिकार समान अवसर का अधिकार और प्रत्येक व्यक्ति को गरिमामयी जीवन जीने का अधिकार दिया गया है।महिलाएं भी इन मूल अधिकारों की उतनी ही हकदार है जितने पुरूष । समान अवसर के अंतर्गत उन्हें भी कारोबार ,व्यवसाय, व्यापार करने का मूल अधिकार प्राप्त है।लेकिन कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न उनके मूल अधिकार से उन्हें वंचित रखता है ।50 से अधिक देशों में कार्यस्थल पे महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार और लैंगिक उत्पीड़न को नागरिक दोष माना गया है और ऐसे व्यवहार पर पाबंदी के लिए कानून बनाये गए हैं ।

ज्यादातर देशों में सिबिल प्रक्रिया अपनाई जाती है लेकिन ब्राज़ील एक ऐसा देश है जहां आपराधिक मामले दर्ज होते है और 1 से तीन साल की सज़ा होती है।कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ लैंगिक उत्पीड़न से निपटने के लिए भारत मे 2013 में कार्यस्थल पर महिलाओं के लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध, परितोषण) अधिनियम लाया गया।इस अधिनियम के तहत कोई भी महिला किसी भी उम्र की हो किसी भी क्षेत्र में काम करती हो चाहे संगठित क्षेत्र हो या असंगठित क्षेत्र, घरेलू काम काज करती हो या दैनिक मजदूरी करती हो अगर कार्यस्थल पर उसके साथ लैंगिक उत्पीड़न होता है चाहे अभद्र व्यवहार करता है अश्लील टिप्पणी करता हो ,या फिर कोई व्यवहार हो महिला की अस्मिता को ठेस पहुंचती हो तो इस अधिनियम के तहत महिला शिकायत कर दोषी व्यक्ति को सर्विस रूल में तय किये गए दंड के अनुसार दंड दिलवा सकती है।

1997 में सुप्रीम कोर्ट ने विशाखा केस में कुछ दिशा निर्देश दिए थे इन समस्याओं से निपटने के लिए। कोई भी संस्थान, कंपनी, कारखानों इत्यादि जहां 10 से अधिक व्यक्ति काम करते है वहां विशाखा कमिटी के होना अनिवार्य है। तीन सदस्यों की कमिटी तीन साल तक के लिए नियुक्त की जाएगी। कमिटी की अध्यक्ष उस संगठन में कार्यरत वरिष्ठ महिला सदस्य होंगी।अन्य दो सदस्य में से एक सामाजिक अनुभवी और कानून की जानकर होनी चाहिए।

कमिटी शिकायत दर्ज करेगी ,जांच करेगी ,और रिपोर्ट तैयार करेगी और अनुशास नात्म कमिटी के समक्ष पेश करेगी अनुशासनात्मक कमिटी दोष के अनुसार दंड तय करेगी। चाहे लिखित माफी हो , चेतावनी हो, पदोन्नति पे रोक हो, तनख्वाह की कटौती हो ,या फिर नौकरी से बाहर निकाले जाएं।
इस तरह के मामलों में पीड़िता को मुआवजे देने की बात है।
रूपन देओल बजाज बनाम के पी एस गिल केस में सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िता को 2 लाख मुआवजा तय किया और दोषी को 2 महीने कड़ी सजा 3 महीने की साधारण सज़ा और तीन साल तक के लिए निगरानी में रहते हुए कार्य करने का आदेश दिया था।

यह केस अधिनियम बनाने से पहले आया था। अधिनियम में प्रावधान किया गया कि इंटरनल कंप्लेंट कमीशन में शिकायत सुनी जाए और जांच कर रिपोर्ट तैयार की जाए।जहां इंटरनल कमीशन ना जो वहां पीड़ित महिला आयोग में शिकायत दर्ज करवा कर आई पी सी की धाराओं के तहत एफ आई आर दर्ज करवा सकती है।ऐसे मामलों में एक से तीन साल तक के सज़ा का प्रावधान किया गया है।

अधिनियम की धारा 13 में संस्थानों के नियोक्ता का उनके संस्थान में काम कर रही महिला कर्मचारी के प्रति सुरक्षा के लिए अपनाएं गए नियमों का व्याख्यान है। सुरक्षित वातावरण व्यवस्थित करने के अलावा समय समय पर जागरूकता अभियान की जिम्मेवारी भी नियोक्ता को दी गयी है।

अगर संस्थानों के नियोक्ता अपने कर्तव्यों का पालन निष्पक्ष तौर पर करने में सक्षम नहीं होंगे तो उनपर 50 हज़ार का ज़ुर्माना लगाने का प्रावधान किया गया है।कार्यस्थल में महिलाओं के साथ हो रहे लैंगिक उत्पीड़न जैसे मामलों को रोकने के लिए जरूरत है कि गठित कमिटियां निष्पक्ष तौर पर जांच करें सत्यता और तथ्यता के आधार पर रिपोर्ट तैयार की जाए।नियोक्ता अपने कर्तव्यों से विमुख न हो।सामाजिक और नैतिक जिम्मेदार बनें।महिलाएं उनके सुरक्षा के लिए बनाए कानून का दुरुपयोग न करें।साथ ही अपने अधिकारों के लिए कदम बढ़ाएं ।

अधिनियम का मूल उद्देश्य है महिलाओं को सुरक्षित वातावरण उपलब्ध हो जहां वे कार्यरत है और चाहे किसी भी तपके या वर्ग से आ रही हो उन्हें एक गरिमामयी जीवन जीने का अधिकार हो ।उन्हें रोजगार के अवसर मिले ताकि समानता की बाते सिर्फ बातों में न हो व्यवहार हो।

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