एक सुहानी सुबह में सोनी चाय वाले के पास पहुंच गया। मैं चाय को बोलने ही वाला था कि देखा आज बड़ा सा कप रखा हुआ है।
कप देखते ही मेरी आंखे फटी रह गईं। मैंने कहा अरे सोनी आज सफेद चीनीपोथ के कप मे चाय है ? भई क्या बात है ?
सोनी का जवाब सुनिए उसने कहा आज साहब आए हैं। मैंने कहा कौन से साहब आए हैं भाई ?
कहता है वो वहां बैठे हैं !
मैंने कहा ; अच्छा !
फिर मैं बोला कि चाय तो बहुत अच्छी है। मैं चाय देखते ही पहचान गया था कि ये चाय तो कुछ अपनी अपनी सी लगती है।
गाढ़ा लाल रंग और कड़क महसूस होती चाय , याद आ गया कि मैं ऐसी ही चाय बनाता हूं। जी नही माना तो मैंने कहा वाह सोनी !
साहब फूड इंस्पेक्टर हैं तो उनके लिए तुम स्पेशल चाय बनाते हो और हमें स्पेशल के नाम पर मूर्ख बनाते हो। अब हमें यही चाय पिलाना फूड इंस्पेक्टर वाली वरना समझ लो हम भी कोई चीज हैं बेटा !
आखिरकार सोनी ने हमे चाय पिलाई तो याद आया बेटा हमने दिया तुम्हे 2014 मे गैस चूल्हा वो वाला चूल्हा और सिलेंडर आज तक नही दिखता और सुनों मोदी जी ने तो बाद मे उज्जवला योजना लागू की है उनसे पहले हमने तुम्हे आबाद किया था तब से सोनी चाय वाला प्रचारित हो गया था और ध्यान हैं ना द्विवेदी चश्मा वाले आशू भाई ने भी यही बात कही थी कि धंधा तब ही निकल पड़ा और ब्रांड हो गया सोनी चाय वाला पर पकड़ मे आज आए हो !
फूड इंस्पेक्टर वाली चाय पीकर महसूस हुआ कि आज पहली बार पैसे वसूल हुए हैं बिल्कुल लगभग वैसी ही चाय बनी है जैसी मैं खुद के लिए बनाता हूं भले आजकल ग्रीन टी या फिर ब्लैक टी पीना अच्छा लग रहा है दूध रहित पौष्टिक चाय !
मेरा तो दिल ही टूट गया ये अंतर देखकर फिर मैंने पूछा ये बताओ साहब पैसे – वैसे देते हैं या नही ? तो सोनी ने कहा नही साहब पैसे देते हैं।
तो मैंने कहा स्याबास अगर पैसे मिलते हैं तो साहब अच्छे आदमी हैं। सोनी ने कहा अरे पहले तो तमाम आए लेकिन पैसे नही देते थे लेकिन ये फूड इंस्पेक्टर अच्छे हैं।
अब जब भी मैं जाता तो कहता भाई फूड इंस्पेक्टर वाली चाय पिलाओ। नो स्पेशल चाय ओनली फूड इंस्पेक्टर टी , तो सोनी कहता है कि अब ये मोदी वाली चाय नही पीते फूड इंस्पेक्टर वाली चाय पीते हैं।
मैंने कहा यार तुम्हे मोदी की मोहब्बत ने क्या नही दिया गैस चूल्हा दिया बड़े बड़े लोग बुलाए फोटो सेशन कराया और तुम फेमस हुए फिर हमारे साथ तुमने ही धोखा कर दिया दिल तोड़ दिया पैसे के बदले कम से कम फूड इंस्पेक्टर वाली चाय हमेशा पिलाते !
समय बीता बात बीत गई। राजनीति जुआं का खेल समझ मे आया। लगा अरबों रूपए वाले लोगों की राजनीति मे अपनी कहां जगह है ? तो मैंने फैसला किया लिखना है पत्रकारिता करनी है और इसमे ही अपना सुख है और जितना दूसरों का हित हो सके यही करके जीवन जी लेना है।
ये कलयुग नही अर्थयुग है बचपन मे घर से राजनीति देखी और कुछ चुनाव की हार – जीत देखी बड़ी इच्छा थी लेकिन जैसे देखा विधायक बनने का मतलब साम दाम दंड भेद और पैसे का ऐसा भंडार हो कि भंडारा कर दो तो हिम्मत हार गए भगवान से कहा कि बस लिखने पढ़ने का माहौल मिले और जिंदगी साकार हो जाए।
तब से लगातार यही प्रयास है कि लेखक और पत्रकार होकर काम किया जाए। लेकिन सोनी की चाय का अंतर देखकर याद आया कि सबको बता दें कि होटल मे फूड इंस्पेक्टर वाला भोजन मांगना और फूड इंस्पेक्टर वाली चाय मांगना तो क्वालिटी अच्छी होगी और मैं तो सोनी को कहने लगा कि देखो दूध वाली चाय मतलब जहर पी रहा हूं तो फूड इंस्पेक्टर वाली चाय पिलाना जिससे अच्छा लगेगा।
खैर चित्रकूट के इन फूड इंस्पेक्टर साहब को धन्यवाद कि आप सोनी को पैसे तो देते हो बेशक वो आपको चीनीपोथ के कप मे पिलाता है और हमें थर्माकोल के कप में।
कितना अंतर है लाइफ में , साहब लोग की लाइफ और आम जन की लाइफ में चीनीपोथ का कप और थर्माकोल का कप जैसा अंतर है और सोनी जैसे लोग भी तो साहब लोग को रियल स्पेशल पिलाने को मजबूर होते हैं वो भी मुफ्त में बस इनकी बात अपवाद है कि फूड इंस्पेक्टर साहब पैसे देते हैं।
( लेखक / पत्रकार सौरभ द्विवेदी की कलम से )