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By :- Saurabh Dwivedi

राजनीति इतनी घटिया स्तर को प्राप्त हो रही है कि वो बलात्कार के गंभीर मामले मे भी गंभीरता से विमर्श नहीं करती। वो बस दलवाद में उंगलियां उठाती हुई आंखे तरेरती है ! वह आरोप – प्रत्यारोप मे राजनीति की अंगीठी जलाए रहती है।

उन्हें सिर्फ उथली मानसिकता से एक – दूसरे पर दोषारोपण करना है कि आपने क्या किया ? वह भय के सिद्धांत से समाज का संचालन करना चाहती है। वह कहती है भय होता तो ऐसा ना होता !

वो सबकुछ भय से ठीक कर देगी। वो भय पर ही विश्वास करती है। अपराधियों को भय हो तो कुछ नहीं होगा। काश ऐसा होता तो सचमुच अभी भी आपके कानून का और कानून से ज्यादा कानूनी वर्दी वाले आदमी से एक आदमी हर पल भयभीत रहता है।

वर्दी वाला आदमी सज्जन आदमी के सामने आ जाए तो बेचारे की पैंट बताती है कि कितनी जोर का भूकंप सा कंपन आया है। सड़क पर रिक्शे वाला निरहुआ दोनो हाथ जोड़कर दया की भीख मांगता है , पर आपका निष्ठुर वर्दीधारी कमजोर को सताता है।

बहुत भय है इनका पर राजनीति को जो करना चाहिए था , वह नहीं किया तो वर्दीधारी कानून से खेल जाते हैं। वे सेटिंग -गेटिंग से चलकर न्याय मे देरी करा देता है अथवा निर्दोष को अपराधी बना देता है और हाथ मे रकम लेकर अपराधी को निर्दोष बना देता है।

बलात्कार जैसे मामले मे अपराधी को दया याचिका के लिए अवसर दिए हो। उसकी दया याचिका आम आदमी से ज्यादा दिनों तक जीवित रहती है और बिना किसी बीमारी के चिरकाल तक जीती है। दया याचिका की उम्र मनुष्य से ज्यादा हो जाती है।

हाँ इतने लंबे समय तक दया याचिका लंबित जो रहती है। तुमसे एक भय का ठीक-ठाक वास्तविक संदेश भी तो ना दे गया। ताकि सहम उठते कुंठित अपराधिक मानसिकता के यौन शोषण करने की सोच रखने वाले बुरे लोग !

किन्तु उनकी फांसी लंबित रखकर जीने की श्वांस दिए हो और इधर उसी मानसिकता के लोग निर्भया से दिशा तक की लंबीर कतार लगा देते हैं। एक पूरा का पूरा श्मशान निर्माण किए दे रहे हैं।

जनता को उलझाए रखो वैश्विक नीतियों के फेर में और राष्ट्र के अंदर मानसिक विभाजन की नींव रखो कि लोग आपस मे विभक्त हो जाएं और बारी – बारी से हमें चुनते रहें।

असल में सारी जंग नेतृत्व में लगी हुई है। अब समाज मे सकारात्मक मानसिक बदलाव लाने वाला नेतृत्व नहीं रहा। ये तो चुनाव जीतने के लिए जिंदगी के सुख के संदर्भ में बात ना करके द्वेष , नफरत और जातिगत आधार पर कुंठा भरकर बात करते हैं।

ये प्रेम – अपनत्व की ओर ले जाने वाली मानसिकता की रचना नहीं करते। ये उच्च जीवन स्तर के लिए हमेशा चिंतित नहीं रहते। ये कम जनसंख्या घनत्व से गुणवत्ता सुधारने की जागरूकता हृदय से नहीं लाना चाहते। ये जिंदगी के दर्द को महसूस नहीं करते।

इन्हें बस आपकी सरकार और हमारी सरकार , तुम्हारे फलाने नेता ने और हमारे ढिकाने नेता ने ये किया – वो किया , ऐसे किया – वैसे किया कर कर के शासन सत्ता की गुणवत्ता निर्धारित कर लेते हैं। एक – दूसरे की अच्छाइयां ना स्वीकार कर के कमियां ही कमियां गिनाकर सत्ता में आना – जाना चाहते हैं। इनका जीवन स्तर एकाएक सुधर जाता है पर आम आदमी का गुलामी से आजादी तक के अब तक के सफर में सुधर ही रहा है।

जब इन्होंने नेतृत्व की लगाम लगाकर अब तक इतनी ही प्रगति की है तो हैदराबाद से उन्नाव तक और अतीत में दिल्ली की बहुचर्चित सत्ता की परिवर्तनकारी निर्भया की अस्मत लुटने की चीख ही हृदय को चीर नहीं देगी तो क्या होगा ? इन्होंने सामाजिक गुणवत्ता के लिए काम ही कब किया ? बस मनमाने प्रतिबंध और कानूनी दमन के बल पर अपनी सरकार की वाहवाही लूटी कि देखिए हमने अपराध के खिलाफ कड़ा कानून ला दिया है , अब तो अपराध खत्म।

कानून ही अपराध खत्म करता है तो कड़ा से कड़ा कानून बना दो और अगली सुबह से अच्छे दिन आ जाएंगे। होने वाला सूर्योदय कल्पनीय स्वर्ग का होगा , इस धरती का अर्थात भारत का होगा। ऐसा हो सकता है कि अपराध विहीन समाज हो और कम से कम बलात्कार जैसी घटना ना हो पर कैसे होगा ? बलात्कार की घटना इस समाज का बलात्कार है और राजनीति का बलात्कारी स्वरूप है।

यह अलग बात है कि हम हर बार आक्रोशित होते हैं पर सच है कि बलात्कार ना हों इसके लिए आवश्यक स्वीकार्य सामाजिक बदलाव के लिए हम मनन हमेशा नहीं करते हैं। जबकि यह सच भी सबको पता है कि आतंकियों को अहसास है कि वो कितने निर्दोष मासूम को मार दें पर एक दिन उनकी भी ऐसी ही मौत तय है फिर भी दुनिया में आतंक और आतंकी हैं।

हकीकत है कि मानसिकता को मारने की जरूरत होती है पर यह बात इस समाज के लिए कल्पना है। और यह कल्पना ही रहेगी। आतंक की मानसिकता मर जाए पर मरेगी नहीं , वैसे ही बलात्कार का मामला तो आतंक से भी ज्यादा खतरनाक है। चूंकि बलात्कारी बचकर जीवन भर जीता रहे तो उसकी आत्मा उसे झकझोरती रहेगी और जिसके अंदर ऐसा ना हो तो वह आतंकी से ज्यादा खतरनाक हो गया।

ये बलात्कारी हमारे ही समाज और परिवार से जन्मते हैं। असल में सरकार भी नहीं बनाती और सरकार नहीं चाहती कि ऐसा हो पर नेतृत्व करने वाले ही सामंती दमनकारी सोच के हैं तो उनकी वजह से इतने लूपहोल छूटते गए कि बस अंदर ही अंदर मानसिकता तैयार होती गई और बलात्कार होते जा रहे हैं।

राजनीतिक दल के नेता सत्ता मे आने के लिए धरना देने लगते हैं पर ऐसा ना हो इसके लिए गांव – गांव की यात्रा कर सामाजिक चेतना जागृत करने की कोशिश नहीं करते , सामर्थ्यवान होकर भी। उनका तो बस कथित विरोध प्रदर्शन ही समाज में सबकुछ ठीक कर देगा। उनकी सरकार आएगी तो स्वर्ग बन जाएगा पर किसी सरकार में बेटियों का बलात्कार नहीं रूकता।

उनके रसूखदार राजनीतिक साजिश के शिकार हो जाते हैं तो कोई महराज हैप्पी बर्थडे ट्विट करता है , शेष भारत को सनातनी परंपरा से जीना चाहिए। अरे भई हैप्पी बर्थडे तो पश्चिमी सभ्यता और पश्चिम का अनुकरण ही भारत की सभ्य संस्कृति को खा गया वरना इसके पहले यहाँ सब स्वर्ग था। लेकिन अस्मत लुटती दुनियावी माहौल में साक्षी महराज हैप्पी बर्थडे तो कह लें। ऐसे नेता हैं। ऐसा सत्ता का चरित्र है।

विपक्ष के चरित्र से सभी जानकार हैं। विषय विशेषज्ञ हैं कि विपक्ष हमेशा सरकार के खिलाफ ही रहेगा वह किसी एक अच्छे मामले में सरकार के साथ नहीं हो सकता। वह कोई साझा सहमति से जनहित की कोई योजना का विचारकर सर्वसम्मति से पारित करवा कर काम नहीं करता। वह तो बस सत्ता वापसी चाहता है तो कमी ना होने पर भी कमियां बतानी हैं , हंगामा काटना है। जब बलात्कार हो जाएगा तो विपक्ष कहेगा कि हम आएंगे तो सब ठीक हो जाएगा , हमे लाओ। इस बात का ही विरोध रहता है।

वैसे अब भगवान ही मालिक है कि दस पचास साल बलात्कार की घटना ना हुई ऐसा सुनने को मिले। बस उम्मीद सिर्फ इतनी सी कि सरकार इतना कर दे कि पुलिस बेटियों की सुरक्षा के प्रति सजग रहे और बलात्कारी को बेहद कम समय में सजा मिले , जिससे अपराधी को स्मृति में बच निकलने या कम सजा जैसी बात की पुनरावृत्ति ना हो सके।

इस तस्वीर से थोड़ा अंकुश लग जाएगा। चूंकि अपराधी बड़ा सोचकर अपराध करता है। उसे इतना अहसास रहे कि अभी सब अलर्ट मोड मे हैं तो ठहरकर अपराध करना चाहेगा , जिससे समय अंतराल बढ़ जाएगा। इस बीच सुख शांति के समय की कल्पना की जा सकती है।

किसी भी समाज मे बलात्कार होना उस पूरे समाज की विफलता है। एक राष्ट्र की हार है। ऐसे समय पर कम से कम झंडा झुकाना चाहिए ना कि मक्कार नेताओं की मृत्यु के शोक दिवस पर। अगर झुकाना है झंडा तो हर बेटी के दुष्कर्म के दिन झुका दो झंडा और तिरंगे से लिपटाकर सलामी दो फिर सम्मानसहित अंतिम संस्कार हो , थोड़ा बोझ इस दुष्कर्म का तुम भी सह लो बयानवीर ! तब शायद तुम नेताओं और सुरक्षाकर्मियों पर जिम्मेदारी का भाव जन्म ले सके।

हाँ हम अभी भी बहुत कुछ बचा सकते हैं। वास्तविक बलिदान तो निर्भया से दिशा तक दे रही हैं। चूंकि एक विकृत समाज का निर्माण अंदर ही अंदर तैयार हुआ , इसकी वजह खोजिए स्वीकारिये फिर जिंदगी को अपनाइए ताकि कुछ बचाया जा सके। इस पूरे संदर्भ में अनेक संदर्भ छिपे हुए हैं। कुलमिलाकर राजनीति में सबसे बड़े बदलाव की जरूरत है , जिसके बाद बलात्कार जैसी घटना पर बदलाव लाया जा सकता है।

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