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@Saurabh Dwivedi

लोग अपना आइना क्यों साफ नहीं करते ?

एक दिन मैं प्रभु के मंदिर मे बैठा था। बिहारी जी का मंदिर है वह , अक्सर वहाँ दर्शन लाभ प्राप्त होता है। इधर कुछ समय से प्रभु कृपा हुई कि मंदिर के महराज से मानसिक संवाद हो जाता है। मैंने एक सबसे बड़ी बात महसूस की वह गर्भ गृह मे और गर्भ गृह से बाहर की है !

जब – जब महराज जी गर्भ गृह मे बैठकर मुझसे कुछ कहने लगे तब – तब उनकी आवाज मे अंतर पाया बाहर बैठकर कुछ कहने की आवाज मे बहुत बड़ा अंतर महसूस हुआ। यह लगभग एक – दो वर्ष से मैं महसूस कर रहा हूँ। हालांकि यह सच है कि गर्भ गृह मे बैठकर सुनाई देने वाली वाणी की विशेषता नहीं बता सकता , अलंकरण नहीं कर सकता। जो महसूस की जा सकती है उसका वर्णन कैसे किया जा सकता है ? हाँ यह कहा जा सकता है लगता है जैसे स्वयं श्रीकृष्ण की वाणी सुनाई दे रही हो। अनेको बार उनकी कही हुई बातें इतनी प्रभावशाली रहीं कि कुछ ही समय मे परिणाम सामने से महसूस हुआ। और वहीं से कोई ना कोई कहानी बन जाती है जैसे किसी गरीब लड़की का वैभवमय विवाह संपन्न हो जाना और पिता का गर्व से पुनः दर्शन करने आने की कहानी संपन्न हो जाना।

कोरोना की दूसरी लहर मे हर कोई खूब परेशान हुआ। यहाँ तक की इस दुनिया की भलाई के लिए लगभग सभी प्रार्थना करने लगे। ऐसे मे प्रभु का संदेश मिलना आवश्यक होता है जैसे पहले कभी आकाशवाणी सुनाई देती थी। वह समय पहले का था जब आकाशवाणी का अस्तित्व था लेकिन अब महसूस करें तो हृदयवाणी का अस्तित्व है। इस सच्चाई को भी स्वीकार करना होगा कि आज के मनुष्य मे आकाशवाणी सुनने जितनी आत्मीय शक्ति नहीं है। इसलिए प्रभु के गर्भ गृह से हृदयवाणी अवश्य सुनी जा सकती है और संभवतः यही बांके बिहारी चाहते भी हैं जैसे चित्रकूट के बांके बिहारी मंदिर मे अद्भुत ऊर्जा का अहसास होता है कि हर कोई वहाँ की ऊर्जा से मुग्ध हो जाता है।

मैंने पिछले दिनों महसूस किया कि जैसे सखा श्रीकृष्ण कोई संदेश देना चाहते हैं। वे इस समाज से कुछ बदलाव चाहते हैं। मैंने स्पष्ट महसूस किया था कि महराज भारतेन्द्र जी खूब व्यथित हैं , इससे पहले गर्भ गृह मे एक बार और मैंने उन्हें व्यथित महसूस किया था। यह दूसरी बार ऐसा हुआ कि व्यथित अवस्था मे वह बहुत कुछ कहते रहे। कुछ ही समय बाद माहौल बदलने लगा और संसार की वर्तमान परिस्थित पर उनकी हृदयवाणी सुनने को मिलने लगी तब मुझे प्रेरणा मिली कि एक छोटा सा वाक्य समाज के लिए बहुत बड़े बदलाव का संकेत है।

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महराज जी कहने लगे कि लोग हर रोज आइना देखते हैं। प्रत्येक घर मे कम से कम एक आइना होता है। उस आइने में लोग अपना चेहरा देखते हैं और हर रोज इस प्रक्रिया को दुहराते हैं। अपनी सुंदरता के पैमाने को मापने के लिए आइने का प्रयोग करते हैं। एक देह की सुंदरता आइने मे देखी जा सकती है।

लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि लोग अपने आइने को साफ नहीं करते ? हाँ रोज साफ नहीं करते। कभी जब बहुत धूल नजर आती है लंबा समय व्यतीत होने पर लोग उस आइने को साफ करने की कोशिश करते हैं। परंतु सोचिए क्या कोई हर रोज आइना पर कपड़ा मारता है ? उस आइने पर जिस पर रोज चेहरा देखता है ! जब आइना धूल कड़ों से भरा होगा तब चेहरा कितना सुंदर दिखाएगा ? इसी आइने को साफ कर चेहरा देखा जाए तो सुंदरता साफ झलकने लगेगी जैसा चेहरा – मोहरा होगा वैसा ही आइने मे झलकने लगेगा।

मुझे महसूस हुआ कि प्रभु की हृदयवाणी सिर्फ कांच के सीसे की बात नहीं कर रही है। असल मे अंतर्मन की बात है। तन – मन मे समाई हुई आधि – व्याधि की बात है। जैसे लोग अपना चेहरा साफ करते हैं वैसे अंतर्मन को साफ क्यों नहीं करते ? अंतर्मन मे छाई हुई धूल – धक्कड़ को हटाना कितना आवश्यक है ! आंतरिक मन मे जो ईर्ष्या द्वेष , भ्रष्टाचार और कुंठा भर गई है उससे साफ करना आवश्यक है। लोग अपना आइना क्यों साफ नहीं करते का अर्थ यही है कि लोग अंतर्मन मन को पवित्र क्यों नहीं करते ? जैसे लोग गंगा जी नहाकर पाप धुल जाने की मान्यता मानते हैं वैसे ही आध्यात्मिक आस्था , श्रद्धा और अध्ययन से हर काल मे सामाजिक पारिवारिक और रिश्तों मे स्वस्थ परिवर्तन लाया जा सकता है और प्रेम की एक दुनिया बसाई जा सकती है। चूंकि अंत मे इंसान को प्रेम ही बचाता है। इसलिए घर के आइने को हर रोज साफ करिए और तन के आइने को भी साफ करिए , यही प्रभु की हृदयवाणी है।

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