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By – Saurabh Dwivedi

ये घरेलू प्रयोग की चप्पल में जीवन का वह रहस्य छिपा हुआ है , जिसे श्रीमद्भगवत गीता से लेकर बड़े बड़े साधू संत आम आदमी को हमेशा समझाते रहते हैं।

इस रहस्य को समझने के लिए मेरे साथ बचपन में लौटना होगा। बचपन के वो दिन जब ऐसे ही जूता या चप्पल हल्का-फुल्का टुट – टाट जाए तो सीधे नए जूते – चप्पल लेने के अलावा कोई और विकल्प नहीं रहता था।

नया जोड़ी लेने का सीधा सा मतलब दिखावे से था और एक सोच हावी थी कि कोई देखेगा अरे ये तो धागे से सिले हुए या फिर कील लगे हुए जूते – चप्पल पहने है और अपनी बेइज्जती के डर से मोची की दुकान की ओर रूख नहीं कर सकता था।

ऐसी दिखावे की सोच लगभग हर मनुष्य में छाई रहती है। जैसे मुझ पर भी एक लंबे समय तक ऐसी सोच हावी थी और अपने आपको समाज के सामने प्रजेंट करने के लिए कुछ भी कर जाते हैं। सबसे बड़ा डर कि हमारा नाम है और उस नाम के लिए जूते-चप्पल सिले या कील से जुड़े हुए नहीं होने चाहिए।

अब जीवन की यात्रा का वो समय आया कि स्वयं ही चप्पल वाले डाक्टर के पास पहुंच गया और चप्पल को धागे से जुड़वाकर पहनने लगा। तनिक देर के लिए वही सोच थी कि चलो नया चप्पल ले लेते हैं। किन्तु इस बार वो सोच हार गई और मैं समाज के दिखावे से दूर जुड़ी हुई चप्पल पहनने के लिए तैयार हो गया।

मेरे मन में इस बात की फिक्र नहीं रही कि लोग क्या कहेंगे और ऐसी चप्पल पहनने से मेरी बेइज्जती हो जाएगी। बल्कि अब ऐसा लगता कि जूते – चप्पल या भड़कीले कपड़े पहनने से ही हमारी पहचान नहीं होती बल्कि समाज में सहजता सरलता से रहते हुए हमारे द्वारा किए जाने वाले कार्य से हमारी पहचान होती है।

जिंदगी में ऐसी ही कामनाएं हमें परेशान करती हैं और हमारे तमाम दुखो का कारण ऐसी अनंत इच्छाएं होती हैं , जो जीवन में कोई बेहद आवश्यक नहीं होतीं। परंतु हम ऐसी इच्छाओं को प्राथमिकता प्रदान कर सामाजिक दिखावे के जाल में स्वयं का जीवन फसाए रहते हैं।

आज वो कहानी याद आती है। कबूतरों का झुंड दाने देखकर जाल में फंस जाता है परंतु उनमें से एक बुजुर्ग कबूतर ने बुद्धि का प्रयोग किया और एक साथ उड़ान भरकर जाल सहित वे चूहे के पास पहुंच गए।

चूहे ने जाल को कुतर दिया , अब सभी कबूतर आजाद हो चुके थे। जिंदगी में ऐसी ही उड़ान भरनी चाहिए और उम्र कितनी भी कम या ज्यादा हो सोच उस बुजुर्ग कबूतर जैसी होनी चाहिए। जिससे बुरे वक्त में भी पार पा जाएंगे।

हमारे जीवन में सारा कमाल सोच का होता है। वक्त के साथ सोच में बदलाव स्वयं मैने महसूस किया। बेशक सभी की जिंदगी में सोच में बदलाव आता ही है। समय के साथ आर्थिक समृद्धि की तरह सोच में समृद्धि लाने से हमारे जीवन की राह तय होती है।

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