SHARE

By – Saurabh Dwivedi

थाना में एक लेखक से मुलाकात हो जाएगी ? वह भी एक थानाध्यक्ष लेखक हो सकता है ? उन्होंने स्वयं मनोविज्ञान व कानून पर किताबें लिखी हों। किसी कस्बा और जनपद की ऐतिहासिक संस्कृति पर किताब लिखी हो। यह सबकुछ अकल्पनीय सा थाना पहाड़ी मे ही घटित हुआ था। जब थानाध्यक्ष के रूप में अरूण कुमार पाठक आए थे।

यही वो वक्त रहा जब एक संवेदनशील और सुलझे हुए व्यक्तित्व के रूप में थानाध्यक्ष से मुलाकात इसलिये संभव हुई कि वो मूलतः लेखक भी थे। हर इंसान की एक मूल प्रकृति होती है और अरूण कुमार पाठक की मूल प्रकृति लेखक होना है। ऐसा व्यक्तित्व पुलिस सेवा मे हो तो वास्तव में न्याय की अवधारणा को अधिक बल मिल जाता है। चूंकि जो कानून के साथ मनोविज्ञान को समझता है वो अपराध पर नियंत्रण करने के विज्ञान का जानकार होता है।

यही इनकी खूबी थी कि जब तक थाना पहाड़ी में रहे तब तक कानून व्यवस्था हद तक सुचारू रूप से देखने को मिली। पुलिस व होमगार्ड के गस्त की भनक जूतों की धमक व बिसिल से लग जाती थी। ऊपर से 100 नंबर की बाईक का हार्न एवं फोर व्हीलर द्वारा बिजली की चमक से भी पुलिस की धमक कायम रहती और चोरी तो बामुश्किल सुनने को मिलती थी। अपवाद स्वरूप घटनाएं होती हैं और होगीं , किन्तु अंकुश लगाने की इच्छाशक्ति प्रबल हो तो पुलिस के प्रति सम्मान का भाव बना रहता है।

मुझे अच्छा लगा था , जब मेरी किताब अंतस की आवाज आपके हाथों मे थी। जब प्रस्फुटित हुआ कि प्रेम जैसे विषय से मानवता की रसधार बहती है। यदि प्रेम और मनोविज्ञान को सम्पूर्ण पुलिस समुदाय अपना ले तो सचमुच पुलिस के अंदर से मानवता की धारा प्रस्फुटित होगी। मानवता की नदी बहने लगेगी। अपराध पर अंकुश लगेगा , आम जन का पुलिस पर विश्वास बढ़ेगा। यही वो वजह है जो अरूण कुमार पाठक को पुलिस सेवा में रहते हुए साहित्य के क्षेत्र से अथाह सम्मान मिलता है।

image_printPrint
0.00 avg. rating (0% score) - 0 votes