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By – Saurabh Dwivedi 

आजकल मुझे महसूस होता है कि मुझ मे नीरसता का जन्म हो चुका है। शीघ्र ही किसी विषय पर प्रतिक्रिया नहीं दे पाता हूं। कभी कभी महसूस होता है कि बहुत अच्छी बात है पहले समझता हूं फिर बोलता हूं। 
जो लोग दुनिया के लिए बोझ बन जाते हैं उनका मर जाना ही बेहतर होता है। ऐसा मैं नहीं कह रहा हूं बल्कि ब्लू व्हेल गेम को डिजाइन करने वाले युवक ने कहा है। 
उसकी बात मे बहुत बड़ा सार छिपा हुआ है। इससे पहले गंभीरता के साथ विचार करना चाहिए कि आपके बच्चे ब्लू व्हेल की वजह से मर रहे हैं अथवा आप स्वयं उनकी मृत्यु की वजह हैं। हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है कि अपने अंदर तनिक भी झांकने का प्रयास नहीं करते और दोषारोपण मढ़ने में महारत हासिल किए रहते हैं। 
पहले की महाभारत धर्म की स्थापना के लिए हुई अब दोषारोपण की महाभारत शुरू है। आप चिंतन करिए कि बच्चों का जन्म कैसे हुआ ? जिन बच्चों को जन्म दिया, क्या वास्तव में जन्म देने से पूर्व जन्म हेतु नियोजन किया था ? आपने सोचा था कि आप वो पल बच्चे को जन्म देने लिए जी रहे हैं अथवा ऐसा हो जाता है कि “अरे मेरी वाइफ प्रेग्नेंट हो गई” !!!! 
जब ऐसा हो जाता है तब कर्म से अधिक किस्मत हावी हो जाती है और होने वाली संतान कितनी बुद्धिमान, वैचारिक, शौर्य से परिपूर्ण होगी अथवा कुपोषण का शिकार होगी सबकुछ कालचक्र पर निर्भर हो जाता है। 
ब्लू व्हेल से अमीरों के बच्चे मर रहे हैं। जिनका बचपना ही डिजिटल हो चुका है और कुपोषण से मध्यवर्गीय गरीब परिवार के बच्चे मर रहे हैं। 
ये रही बचपन की बात लेकिन इसके आगे जैसे जैसे आपका बेटा बेटी बड़े होते हैं। उनकी लम्बाई चौड़ाई और दायरा बढ़ने के बाद ये सच नहीं क्या कि माता-पिता से उनकी एक निश्चित दूरी बन जाती है। जहाँ बच्चों के बचपन मे लडखडा कर जमीं पर गिरने से ज्यादा जरूरत होती है कि मन मे उभरते भटकते तमाम विचार और क्रियाकलाप पर मार्गदर्शन देने वाला और कंधे पर हाथ रखकर सहयोग संरक्षण की ताकत प्रदान करने वाला कोई हो ? ऐसा हो पाता है क्या ? 
हमारे समाज मे तमाम प्रकार की बेड़ियां हैं। परंपरा, रीति रिवाज और धर्म व जाति आदि… ! आखिर क्यों आपका बेटा और आपकी बेटी किसी और से प्रेम करने लगते हैं ? उन्हे कहाँ कमी महसूस हो गई, ऐसा कौन सा लूप होल हो गया कि उसे फुलफिल करने हेतु किसी का सहारा लेना पड़ रहा है अथवा किसी मे जिंदगी नजर आने लगी। ऐसा महसूस होता है कि “ये है तो जिंदगी है” वरना जीवन ही खत्म हो जाएगा। बचपन वाला चिंटू पिंटू, सोनू मोनू लड़खड़ा गिरते हैं तो तमाम परिजन झट से दौड़ लगाते हैं कि “अल्ले मेला लाजा बेटा गिर गया.. नहीं गिरा नहीं कूदा है मेला बेटा, अच्छा अच्छा अभी दर्द खत्म हो जाएगा”, अब चिंतन करिए जब मन से गिरता है आपका युवा बेटा और आपकी युवा बेटी मन से गिर जाती है तब आप कितना महसूस कर पाते हैं ? 
अपेक्षाओं के बोझ तले भी दाब डालते हैं। स्कूल बैग बहुत भारी है उससे ज्यादा आपका दबाव भारी हो जाता है।  

इसलिये ब्लू व्हेल को दोष मत दीजिए इस समाज के अंदर इतनी ब्लू व्हेल हैं कि उनसे निपटते नहीं और एक ब्लू व्हेल से क्या मौत होनी बंद हो जायेगीं ? घर के अंदर ही इतनी ब्लू व्हेल हैं कि आपका बच्चा तिल तिल मरता है। 
आइए शासन प्रशासन और सिस्टम की बात कर लेते हैं। न्यायपालिका की बात कर लेते हैं। सुरक्षा की बात कर लेते हैं। देख रहे हैं कि ट्रेन मे घूसखोर जीरआपी पुलिस का वीडियो जैसे ही Rahul बनाता है। उनमें एक महिला पुलिसकर्मी भी सम्मिलित है और ममता क्रूरता मे तब्दील हो जाती है। उसे मार दिया जाता है फिर उसे न्याय दिलाने के लिए justice for rahul की मुहिम चलानी पड़ती है। 
आप ब्लू व्हेल के खिलाफ लोगों को आगाह कर सकते हैं पर मुझे खुशी इस बात की है कि चलो ब्लू व्हेल के बहाने जागरूकता का अर्थ समझ सकेगें। सोए हुए भारतीयों को जगा सकेगें। वास्तव में देश परिवार और सिस्टम में मानसिक शल्य चिकित्सा की आवश्यकता है। ये बीमारू भारत है और न्यू इंडिया तो तभी बन सकेगा जब अस्थि पंजर से मन मस्तिष्क तक सही मानसिक शल्य चिकित्सा हो सकेगी। 
इसलिये जिंदगी मे प्रेम दीजिए, प्रेम लीजिए, आपस मे वक्त दीजिए लीजिए और जागरूकता के लिए मुफ्त मे काम करिए, साथ ही सहायता करिए अगर वास्तव में आने वाली पीढ़ी को ब्लू व्हेल के काल यमराज से बचाना है वरना हम सबके अंदर एक ब्लू व्हेल है जो मार रही है हमारे अपनों को ही और कभी कभी स्वयं भी मर जाते हैं। अभी कल ही सुना था कि एक माँ ने अपने 4 बच्चों को पहले मार दिया फिर स्वयं आत्महत्या कर ली। समझिए अगर माँ आत्महत्या नहीं कर पाती तो जिंदा होकर भी वो स्वयं को मृत पाती। 
इसलिये वास्तव में हमे आवश्यकता है अपार स्नेह और सहयोग की जिससे हम सब एक दूसरे की जिंदगी बने मौत की ब्लू व्हेल नहीं ! 
आय लव यू जिंदगी 

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