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हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विधानसभा की कार्यवाही के दौरान स्थानीय बोली भाषा में बोलने का अवसर देना वास्तव में सराहनीय प्रयास है।
इससे स्थानीय बोली भाषा को प्रोत्साहन मिलेगा साथ ही स्थानीय लोगों के मन में भी स्वभाषा के प्रति गौरव की अनुभूति होगी। वर्तमान युवा पीढ़ी जो तथाकथित प्रगतिवाद के कारण अपनी स्वभाषा से दूर होती जा रही है वह भी अपनी स्थानीय बोली भाषा से जुड़ सकेगी।
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जहां एक ओर अधिकांश परिवारों में बोलचाल में स्थानीय बोली ही प्रयुक्त होती है परन्तु अन्यत्र खड़ी बोली का प्रयोग करना शिष्टाचार बन गया है। उत्तर प्रदेश सरकार के इस कदम से प्रदेश की अलग अलग बोलियों को ग्लोबल मंच मिलेगा।
विधानसभा के साथ ही स्थानीय जिला कार्यालयों में भी प्रशासनिक अधिकारियों को स्थानीय बोली का प्रयोग करना चाहिए इससे स्थानीय जनमानस और प्रशासन के बीच की दूरी कम होगी तथा वे और बेहतर तरीके से अपनी बात रख पाएंगे।
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स्वाधीनता के इतने वर्षों बाद इस ओर किसी का ध्यान गया है वास्तव में व्यक्ति अगर अंतर्मन से बोलता है तो वह अपनी स्थानीय भाषा में बोलता है निश्चित तौर पर जनप्रतिनिधि जनसमस्याओं को भी बेहतर तरीके से स्थानीय बोली भाषा में सदन में उठा पाएंगे।
प्रखर मिश्रा (युवा विचारक )
लखीमपुर – खीरी