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बस स्टैंड कर्वी के ठीक सामने दीपक टाकीज कार्नर पर तुलसी मार्केट की ओर एक हरा – भरा वृक्ष लगा हुआ था। जिसकी उम्र करीब चालीस से पचास वर्ष बताई जाती है , बचपन से जो लोग इस वृक्ष को देख रहे हैं उनकी उम्र औसतन 35 वर्ष मिली है। जो बताते हैं कि यह वक्ष कितनों को छाया देता था।

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अब गर्मी के दिन आ गए तो वहीं कुछ लोगों को छाया याद आई तो वह सीसम का वृक्ष भी याद आ गया। फुटपाथ पर कचौड़ी भंडार है और लोग वहाँ छोला – चावल खा रहे थे। एक युवा पत्रकार भी भूख मिटा रहा था लेकिन एक भूख ऐसी भी लगी जब तेज धूप से छांव की आवश्यकता देह के रोम रोम को फील होने लगी तो वहाँ कचौड़ी खा रहे एक आदमी ने छोला – चावल खा रहे पत्रकार से कहा कि अधिकारियों को पत्रकार बिक गए हैं ?

इत्तेफाक से एक और पत्रकार वहाँ पहुंच गया तो उस पत्रकार ने इशारा कि बताओ ये कह रहे हैं कि अधिकारियों को पत्रकार बिक गया है ? वजह पता चली कि देखो एक वृक्ष कट गया लेकिन कहीं कोई खबर नही आई !

उस आदमी को उम्मीद थी कि पत्रकार लिखें कि यह सीसम का वृक्ष काट दिया गया। अब दो पत्रकार थे तो उन्होने भी सवाल किया कि आप जनता हो और आपको वृक्ष की याद कब आई ? जब आपकी देह को छांव की भूख लगी तो कचौड़ी खाने की तरह याद आई कि यहाँ कोई वृक्ष भी था ?

क्या वो वृक्ष किसी पत्रकार बस को छांव देता था ? जब जनता को भी छांव देता था और नेता को भी छांव देता है और तो और बड़े अफसर भी वन विभाग के भी खड़े हो जाएं तो बिना भेदभाव के वह वृक्ष छांव देता रहा लेकिन उस जिंदा वृक्ष को बेरहमी से मशीन लगाकर काट दिया गया और खड़ा किया गया एक बिजली का खंभा ?

क्या जनता एक दिन का शोक भी नही मना सकती ? हर पर्व और बात – बात पर सोशल मीडिया पर शोक संदेश लिखने वाले नेता और होर्डिंग्स लगाकर शुभकामनाएं देने वाले नेता इस एक वृक्ष के लिए शोक नही मना सकते ? अगर संवेदनाएं जिंदा हैं तो चालीस – पचास वर्ष तक छांव देने वाले वृक्ष के लिए आपके मन मे शोक नही है ?

उस जनता से पत्रकार ने कहा कि एक दिन का शोक मनाओ और जनपद के जिम्मेदार अफसर से सवाल करो और फिर पत्रकार खबर ना छापे तब कहना कि पत्रकार बिक गया ? चूंकि किसी एक पत्रकार ने यूट्यूब पर शार्ट वीडियो चलाया भी था कि देखो एक वृक्ष की कीमत बिजली के खंभे से भी कम है ! जबकि वैसी ही मोटी वायरिंग तमाम वृक्ष के पास से गुजर कर आ रही है तो आखिर यह वृक्ष खतरा कैसे हो गया ?

बड़ी बात है कि वृक्ष के सामने दीपक टाकीज गिरा दी गई है चूंकि वहाँ एक बड़ा माल बनने जा रहा है तो कनेक्शन यह भी हो सकता है कि माल को नुकसान हो रहा हो और पहले ही वृक्ष कटवा दिया गया हो कि भाई माल तो दिखना चाहिए ! कनेक्शन है कुछ ना कुछ खोजना होगा कि एक वृक्ष को काटना क्यों जरूरी था ?

बड़ी बात है कि जिंदा कौमे वाले सपाईयों का कार्यालय भी वहीं पर है जो प्रदर्शन करने के लिए जाने जाते हैं और विशेष बात है कि हरा रंग का कुर्ता पहनने वाले विधायक अनिल प्रधान वहीं से गुजरते हैं और हरियाली व जनहित के लिए पहचान बना चुके हैं लेकिन इस एक वृक्ष के लिए कहीं कोई चूं तक नही है !

वो पक्षी खोज रहे होंगे अपने वृक्ष को जिनका आसियाना था। जनता से ज्यादा चूं चूं तो उन पक्षियों ने कर दी होगी लेकिन आरोप प्रत्यारोप से ऊपर उठकर जनता अगर कुछ करती तो पत्रकार लिखते और जनता को अपना पत्रकार तो तैयार करना चाहिए ताकि जब छांव की भूख देह को लगे तो सीसम का वृक्ष हो या बरगद का मौजूद मिले।

हरे भरे चित्रकूट की परिकल्पना मे जाने कितने करोड़ के वृक्ष आंकड़ो मे लग जाते हैं लेकिन एक वृक्ष के कटने पर जनता पर मुकदमा लिखने वाला जुर्माना ठोकने वाला प्रशासन इस वृक्ष को काटने की अनुमति कब लिया और क्या कारण बताया कि इस वृक्ष से खतरा था इसलिए काट दिया गया ? कोई समाजसेवी / कोई नेता या जनता स्वयं आंदोलन करे जानकारी ले तो समझ आए कि लोकतंत्र जिंदा है और जनता जिंदा है बाकी मरी हुई जनता पर ऐसे ही जुल्म ढाए जाते हैं जैसे वृक्ष काट दिया गया जो अब डस्टबीन बन चुका है।

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