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@Saurabh Dwivedi

प्रत्येक अभिभावक को स्कूल के अंदर की गतिविधियों की गहन जानकारी होना व प्रबंध समिति को शिक्षकों के व्यवहार की सही जानकारी होना कितना आवश्यक है जो छात्रों का भविष्य तय करती है ! आधुनिक युग मे एकलव्य और द्रोणाचार्य जैसी परंपरा है या नहीं इसकी पड़ताल बड़ी आवश्यक है। यह सब अभिवावक की मांग और प्रबंध समिति की इच्छाशक्ति की बदौलत किस तरह संभव होगा , इस पर गंभीर विमर्श होना चाहिए।

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पिछले दिनों मैं सेमरिया जगन्नाथी के एक सरकारी विद्यालय मे पहुंचा था। वहाँ के शिक्षक से बातचीत के दौरान गुप्त शिकायत पेटिका का पता चला। उन्होंने कहा कि हमने एक ऐसी शिकायत पेटिका लगा रखी है , जिस पर कोई भी शिशु – छात्र बिना नाम लिखे अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। वह एक शिकायत पत्र लिखकर पेटिका मे डाल दे और नियमित रूप से पेटिका को ओपन कर शिकायत पर अमल किए जाने का नियम है।

यह पहल बहुत अच्छी लगी। चूंकि अक्सर छात्र शिक्षक द्वारा किए गए अभद्र व्यवहार की जानकारी ना घर पे दे पाते और ना स्कूल की प्रबंध समिति से कह पाते हैं। वह शिक्षक का अभद्र व्यवहार सहकर मानसिक द्वंद का शिकार हो जाते हैं , छात्रों के मन मे शिक्षक का भय समा जाता है।

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आज के दौर में शिक्षक भी मानसिक तनाव का शिकार हो जाते हैं। और उस तनाव को अक्सर छात्रों पर निकाल दिया जाता है , यह गलती शिक्षकों से होती है। कुछ जेनेटिक प्राब्लम होती है तो कुछ समय का प्रभाव होता है। चूंकि आधुनिक युग में कोई भी तनाव से अछूता नहीं है। हर किसी को किसी ना किसी वजह से तनाव हो जाता है।

एक मुख्य वजह जातीय मानसिकता भी है। वर्तमान पीढ़ी के बहुत से शिक्षक जातिवादी मानसिकता से ग्रसित होते हैं। जातिवाद ने हर क्षेत्र मे सुरसा की भांति पैर पसार लिए हैं। अक्सर कम उम्र के छात्रों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है और वह शिशु – तरूण छात्र कहीं कुछ कह नहीं पाते। इससे स्कूल की प्रबंध समिति भी अनजान रह जाती है।

काम का तनाव , घर – परिवार का तनाव और निजी जिंदगी मे होने वाले परिवर्तन से भी संतुलन ना बिठा पाने वाले सरकारी – गैरसरकारी शिक्षक अपना फ्रेस्टेशन छात्रों पर निकाल देते हैं। कुछ शिक्षकों के मन – मस्तिष्क मे खुद को लेकर अभिमान भी छिपा होता है। वह अपने अभिमान की पूर्ति के लिए भी बचपन का अवैध शिकार कर रहे होते हैं और आपका बच्चा उनका साफ्ट शिकार हो जाता है।

निजी संस्थागत विद्यालयों मे प्रिंसिपल से लेकर शिक्षक की एक उम्र सीमा तय होनी आवश्यक है। जैसे कि कुछ निजी विद्यालयों मे 60 वर्ष और इससे ज्यादा उम्र के प्रिंसिपल व शिक्षक आज भी सेवा दे रहे होते हैं। कुछ ऐसे निजी विद्यालय हैं जहाँ किसी अन्य विद्यालय में सेवा दे चुके प्रिंसिपल और शिक्षक कार्यरत रहे हैं , बेशक उनका शैक्षिक इतिहास दागदार हो पर इस बात की जानकारी अभिभावक संघ को नहीं होती है। सिर्फ उस विशेष शिक्षक की माॅरल पाॅलिस कर सेवा ली जा रही होती है जो समाज और बचपन के लिए बड़ी खतरनाक परिस्थिति है। ऐसी स्थिति की जानकारी भी अभिभावक संघ को रखनी चाहिए , जहाँ उनके बच्चे पढ़ते हों। चूंकि अभिमानी प्रवृत्ति के प्रिंसिपल और शिक्षक बचपन के लिए घातक होते हैं। सेवा के प्रत्येक क्षेत्र मे एक उम्र सीमा होती है अतः निजी शिक्षण संस्थान में भी सेवा की उम्र का पालन होना सुनिश्चित होना चाहिए।

वैसे भी किसी से छिपा नहीं है कि शिक्षा का व्यापारीकरण हो चुका है। बहुत से लोग अपनी ब्लैक मनी को व्हाइट मनी बनाने के लिए भी शिक्षण संस्थान चलाते हैं। बड़ी – बड़ी इमारते बनाई जाती हैं जो शायद ही व्हाइट मनी से बन सकें। कोई शैक्षिक संस्था कुछ दो – चार और पांच वर्ष या एक वर्ष मे भी बिना सामाजिक सहयोग के बड़ी इमारत मे तब्दील होकर नहीं चल सकती। इसलिए अभिभावक संघ को यह ध्यान रखने का वक्त आ गया है कि व्यापार युग के हाई – प्रोफाइल स्कूल मे उनके बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल पा रही है या नहीं ! इसलिए चमचमाते स्कूलों के फेर मे पड़ने से पहले शैक्षिक गुणवत्ता और शिक्षक लोक व्यवहार पर अभिभावकों की निजी दृष्टि होनी चाहिए। 

आपके बच्चों के साथ स्कूल के शिक्षक का लोक व्यवहार कैसा है ? यह कैसे पता चलेगा ? आप स्कूल मे हो नहीं और प्रबंध समिति अपने स्कूल की कमी अभिभावक से कहेगा नहीं। आपके बेटा – बेटी भय वश आपसे कह नहीं पा रहे। ऐसे मे शिकायत पेटिका की उपयोगिता को महसूस करना चाहिए।

अभिभावकों को प्रबंध समिति से स्कूल मे गुप्त शिकायत पेटिका की मांग करनी चाहिए। उन्हें कहना चाहिए कि एक ऐसी पेटिका हो जिसमे छात्र गुप्त रूप से किसी भी शिक्षक के गलत व्यवहार की शिकायत लिखकर डाल सके फिर वह अभिभावक मीटिंग के दौरान पढ़ी जाएं व उन शिकायतों पर संवाद हो तथा समाधान किया जाए।

बढ़ते यौन शोषण के मामलों को देखते हुए स्कूल मे बचपन वाली बेटियों की सुरक्षा के लिए भी शिकायत पेटिका की बड़ी उपयोगिता है , मैं ऐसा नहीं कह रहा कि शिक्षक यौन शोषण करते हैं बल्कि अनुमानित सच्चाई है कि स्कूल मे बाल यौन शोषण की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। जबकि पूर्व मे एकाध ऐसे मामले सुनने मे आए हों कि स्कूल मे छात्रा के साथ यौन शोषण हुआ।

एक बड़ा प्रमाण चित्रकूट मे ही मौजूद है कि श्रेयांस और प्रियांस को पढ़ाने वाले शिक्षक ने ही अपहरण की पटकथा रची थी। और उन बच्चों की मौत से चित्रकूट समाज दहल गया था। इसलिए कोई तीसरी आंख अवश्य होनी चाहिए , जिस तीसरी आंख का काम गुप्त शिकायत पेटिका कर सकती है।

अभिभावक अपने बच्चों को लगातार प्रेरित करें कि बेटे यदि कोई शिक्षक आपसे अभद्रता करता है तो उसकी जानकारी हमे अवश्य देना। बच्चों के मन मे अभिभावक के प्रति भी रत्ती भर भय ना हो कि वह स्कूल की आपत्तिजनक गतिविधि की जानकारी अपने ही माता-पिता को ना दे सके अथवा किसी भी परिजन को ना बता सके।

जिस दिन स्कूल मे गुप्त शिकायत पेटिका लग जाएगी और बच्चे ऐसा करने को स्वतंत्र हो जाएं लेकिन यह तब संभव है जब स्कूल प्रबंध समिति भी छात्रों से कहे कि गुप्त शिकायत पेटिका मे सभी अपनी शिकायत बिना नाम लिखे दर्ज करा सकते हैं , तब छात्रों मे साहस जागेगा। और संभव है कि फिर कोई शिक्षक किसी प्रकार की द्वेष भावना आदि के द्वारा किसी भी छात्र से अभद्रता ना करे।

यह भी तय है कि फिर शिकायत पेटिका से सुधार होगा अथवा बहुत से टीचर शिक्षक होने की अहर्ता ना रखते पाए जाएं और प्रबंध समिति उन्हें स्वयं सेवा से मुक्ति दे दे। चूंकि सच है कि आज के दौर मे अनेकानेक शिक्षकों को बाल – मनोविज्ञान का ज्ञान ही नहीं है। जबकि प्राथमिक और जूनियर स्तर तक के शिक्षकों को बाल मनोविज्ञान का ज्ञान होना चाहिए।

कुलमिलाकर के बदलती परिस्थिति और आधुनिकता की दौड़ मे स्कूल के अंदर गुप्त शिकायत पेटिका बड़े सुधार का कारक बनेगी। प्रत्येक स्कूल को नैतिक जिम्मेदारी का ख्याल रखते हुए छात्र गुप्त शिकायत पेटिका लगानी चाहिए।

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