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लखनऊ मे नेशनल क्लाइमेट कानक्लेव 2023 का आयोजन हुआ जिसका उद्घाटन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया। इस कानक्लेव मे देश भर से पर्यावरण के विशेषज्ञ सम्मिलित हुए। प्रशासनिक स्तर पर से पर्यावरण के लिए काम करने वाले अधिकारियों ने भविष्य की योजनाओं का वर्णन किया। जल संरक्षण एवं पर्यावरण सिर्फ सरकार का विषय नही बल्कि सामुदायिक प्रयास से किया जा सकता है।

इस क्लाइमेट चेंज के दो दिवसीय प्रोग्राम मे चित्रकूट जनपद से दिव्या त्रिपाठी पैनलिस्ट मे शामिल हुईं , जिसमे उन्होंने जल संरक्षण एवं पर्यावरण पर उद्बोधन दिया जो इस प्रकार है…

नमस्कार ;  मैं दिव्या त्रिपाठी हूं , उत्तर प्रदेश के जिला चित्रकूट के सेमरिया गांव से आई हूँ, मैं अपने गाँव की प्रधान रह चुकी हूँ और जल संरक्षण पर 8 साल से काम कर रही हूँ जैसे तालाब पुनर्जीवन , नाले पर जल संग्रहण टैंक व खेत पर मेड , मैं एक प्रेजेंटेशन के माध्यम से बताती हूँ क्यों और कैसे किया ?

” जब मैं प्रधान हुई तो उस समय हैंडपंप सूख चुके थे और तालाब सूख चुके थे। पानी के लिए भारी किल्लत का सामना ना सिर्फ मेरे गांव सेमरिया जगन्नाथवासी की जनता कर रही थी बल्कि पशुओं को भी पीने के लायक पानी नही मिल पा रहा था और ऐसे हालात मे पक्षी भी प्यास से बेहाल हो जाते हैं “।

यह मेरे लिए एक बड़ी चुनौती थी कि कैसे घर घर पानी पहुंचाएं और खेतों को सिचाई के लिए पानी मिल सके। पीने के पानी के लिए महिलाओं को दूर दूर तक पानी लेने जाना पड़ता था और गांव के तमाम पुरूष ताश के खेल मे व अनावश्यक रूप से अस्त व्यस्त रहते थे।

उस समय मैंने चिंतन करने के पश्चात अपने सहयोगियों का साथ लिया और गर्मी के दिनों मे सबसे पहले एक बोर के माध्यम से गाँव के तीनों कोने के तीन तालाब को भरवाया जिससे कुछ ही समय पश्चात वाटर लेवल मेनटेन हुआ।

मेरे गांव मे करीब 80 – 85 हैंडपंप थे। जिनके बीचोंबीच शोकपिट बनवाया जिससे हैंडपंप का पानी भी वाटर रिचार्ज का माध्यम बन गया और इस तरह इन हैंडपंप से बारह महीने पानी मिलने की संभावना बन गई।

एक और काम मैंने किया , मेरे गाँव मे दो बड़े नाले हैं जिनमे जल संग्रहण टैंक बनवाया , जिनकी 30 मीटर लंबाई है 1 मीटर गहराई है और 3 मीटर चौड़ाई है।

दोनो नालों मे 100 – 100 की संख्या मे टैंक बनवाए तो बारिश के मौसम मे वर्षा का पानी संग्रहण टैंक मे भरने लगा जिससे वाटर लेवल ऊपर उठा और यह सिद्ध हुआ कि नाले भी कितने उपयोगी हैं।

मेरी ही प्रधानी कार्यकाल मे भाजपा सरकार आई तो एक अभियान चला ” मेरी छत मेरा पानी ” कि छत का पानी बहकर बर्बाद ना हो जाए बल्कि जमीन के अंदर समा जाए तो वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम पर काम किया।

ऐसे काम के बदौलत मुझे 2 बार पंचायत पुरस्कार मिला। इस पुरस्कार की धनराशि से एक बोर कराकर वाटर सप्लाई का काम शुरू कराया तो दूसरे पंचायत पुरस्कार की धनराशि से एक तालाब का गहरीकरण कराया।

मेरे गाँव के कार्यों की चर्चा ब्लाक स्तर और जनपद स्तर पर होने लगी तो प्रधान संघ की जिलाध्यक्ष होने के कारण मैंने अन्य तमाम प्रधानों से ऐसे कार्य करने का आग्रह किया तो करीब 60 % प्रधानों ने इस दिशा मे काम करना शुरु किया।

फिर मेरे मन मे विचार आया कि वास्तव मे गाँव हमारा वाटर बैंक है जहाँ से शहरी क्षेत्र को पानी मिलता है तो उपजाऊ फसल और जल संरक्षण के लिए एक काम और शुरू किया ‘ खेत पर मेड जिससे खेत का पानी खेत मे रहे ‘ इससे वर्षा का जल सीधे पाताल की सतह पर पहुंचने लगा और फसल भी अच्छी होने लगी।

इस तरह क्लाइमेट चेंज के इस दौर मे मैंने ऐसे गाँव मे काम किया है जिस गांव की ओर जाने मे अधिकारी भी सोचते थे चूंकि दस्यू प्रभावित क्षेत्र था और गांव की साख बेहद खराब थी लेकिन जब मैं प्रधानी बनी तो काम किया फिर गाँव के बड़े वर्ग के महिलाओं पुरूषों की सोच मे अच्छा बदलाव आया और फिर स्कूल मे शिक्षा और गोबर टैंक , पाइप लाइन द्वारा पानी की सप्लाई एवं उच्च स्तरीय पंचायत भवन बना , देखते ही देखते अधिकारियों की पहली पसंद का गांव सेमरिया जगन्नाथवासी हो गया और आज भी मेरे गाँव का सम्मान होता रहता है।।

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