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By :- Saurabh Dwivedi

पीहू ऊर्फ परी दो साल की मासूम है। यह उसका तीसरा जन्मदिन था। परी का तीसरा जन्मदिन कोरोना संकट के समय पड़ा। जब देश भर में लाकडाऊन है , वहीं चित्रकूट में भी लाकडाऊन का बड़ा असर है। परिक्रमा मार्ग में वानर सेना , गाय और बैठे हुए सन्यासी – गरीब व असहाय नागरिक , जिनमें बहुत से वरिष्ठ नागरिक हैं। यह साफ है कि श्रद्धालुओं का आवागमन बंद हुआ है तो बड़ा असर इन पर भी पड़ा है।

कोरोना वायरस से पूरा देश लड़ रहा है। यह लड़ाई किसी भी स्तर पर कमजोर नहीं होनी चाहिए। इसलिये परी के परिजनों ने सोचा कि क्यों ना परी का जन्मदिन सेवा भाव से मनाया जाए। तीसरे जन्मदिन में पीहू ऊर्फ परी की गो – सेवा भविष्य में संकट के समय मदद का बड़ा संदेश देती है।

एक मासूम घर से निकल कर राष्ट्र के प्रति अपनी आहूति देती है। परी के बाबा रामयश मिश्रा का निर्णय और शिक्षक पिता अमित मिश्रा की ऐसी सोच से बच्चों में सेवा और मदद का भाव हमेशा के लिए जीवंत हो जाएगा।

यह आकर्षण की बात है कि जब – जब संकट का दौर आएगा , तब – तब परी को कोरोना वायरस के समय की सेवा याद आएगी। उसे महसूस होगा कि संकट से पार पाने के लिए एकजुटता से सेवा और मदद सबसे बड़ा अस्त्र – शस्त्र है।

इसी सोच को लेकर जब परी परिक्रमा मार्ग पहुंची तब प्रेस क्लब अध्यक्ष चित्रकूट को जानकारी मिली और उन्होंने परी के परिजनों से बात कर प्रोत्साहन प्रदान किया। सत्यप्रकाश द्विवेदी ने कहा कि एक ऐसा प्रोत्साहन जिससे सेवा भाव की तरंगे अधिक से अधिक प्रसारित हों और हम विचारों के माध्यम से , अच्छी सोच से जिंदगी में व्याप्त संकट से निजात पा सकेंगे। उन्होंने परी के सेवा कार्य को सराहा व इस बड़े संदेश के लिए मासूम को धन्यवाद कहा।

एक मासूम भी देश और समाज का वैचारिक नेतृत्व करने निकल पड़ी। इससे पूर्व भी प्रशासन व अन्य समाजसेवी स्वभाव के लोग वहाँ गए थे। जिसकी शुरुआत सेमरिया प्रधान दिव्या त्रिपाठी व उनके पति ने की थी। सभी के प्रयास के साथ मासूम के प्रयास को दिव्या त्रिपाठी ने सराहा और आशीर्वचन देते हुए कहा कि भविष्य मे ऐसे ही संस्कारों से बच्चे समाज का अच्छा नेतृत्व करते हैं।

एक रत्ती का सहयोग बड़ा सहयोग

पीहू की तरफ से समाज से निवेदन है कि संकट के समय सभी आर्थिक – सामाजिक यथासंभव सहयोग कर , गरीबों की सेवा कर और पशु – पक्षियों की सेवा कर जीवन प्रकृति की शरण में समर्पित कर दें। भविष्य में भी प्रकृति के साथ ही जीवन जिया जाएगा और सभी के भागीरथ प्रयास से प्रकृति और जिंदगी के लिए वैचारिक जागरण शुरू रहे , जिससे फिर कभी मानव जाति को लाकडाऊन का सामना ना करना पड़े।
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