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सभी ने समाज से आह्वान किया कि टीबी उन्मूलन केवल सरकारी प्रयासों से नहीं हो सकता, इसमें समाज की भागीदारी जरूरी है। गोद लिए गए रोगियों को सम्मान और पोषण देकर जो उदाहरण प्रस्तुत किया गया है, वह पूरे प्रदेश ही नहीं, देश के लिए अनुकरणीय है।

क्षय (टीबी) जैसी संक्रामक बीमारी को जड़ से मिटाने के लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही ‘टीबी हारेगा, देश जीतेगा’ मुहिम अब सामाजिक आंदोलन का रूप लेती दिख रही है। चित्रकूट में हुए हालिया आयोजन ने यह सिद्ध कर दिया कि जब प्रशासन, समाजसेवी संस्थाएं और आम नागरिक एकजुट होते हैं, तो असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।

इंडियन रेड क्रॉस सोसाइटी और आकांक्षा समिति चित्रकूट के संयुक्त तत्वावधान में सोनेपुर स्थित रुर्बन ऑडिटोरियम में सौ गोद लिए गए टीबी रोगियों को निक्षय पोषण किट वितरित की गई। इनमें दाल, चना, गुड़, मूंगफली और सोयाबड़ी जैसे पौष्टिक खाद्य पदार्थ शामिल थे, जो छह माह तक रोगियों को नि:शुल्क प्रदान किए जाएंगे। यह कदम न केवल रोगियों के पोषण स्तर को बढ़ाएगा, बल्कि उनके इलाज को भी असरदार बनाएगा।

कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। इस अवसर पर आकांक्षा समिति मंडल अध्यक्ष पूजा सिंह, आकांक्षा समिति अध्यक्ष तनुषा जी.आर., मुख्य विकास अधिकारी अमृतपाल कौर, ज्वाइंट मजिस्ट्रेट पूजा साहू, मुख्य चिकित्साधिकारी भूपेश द्विवेदी और मुख्य चिकित्सा अधीक्षक शैलेन्द्र कुमार मौजूद रहे।

सभी ने समाज से आह्वान किया कि टीबी उन्मूलन केवल सरकारी प्रयासों से नहीं हो सकता, इसमें समाज की भागीदारी जरूरी है। गोद लिए गए रोगियों को सम्मान और पोषण देकर जो उदाहरण प्रस्तुत किया गया है, वह पूरे प्रदेश ही नहीं, देश के लिए अनुकरणीय है।

कार्यक्रम में उन ग्राम प्रधानों, दानदाताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को सम्मानित किया गया, जिन्होंने टीबी रोगियों को गोद लेकर उनकी देखभाल और पोषण की जिम्मेदारी उठाई। यह एक प्रेरक पहल है, जो बताती है कि बीमारी से जूझ रहे व्यक्ति को दवा के साथ-साथ सामाजिक सहयोग और भावनात्मक संबल की भी ज़रूरत होती है।

रेड क्रॉस सोसाइटी सचिव केशव शिवहरे ने सभी अतिथियों और दानदाताओं के प्रति आभार जताते हुए कहा कि समाज का हर सक्षम व्यक्ति यदि एक रोगी को गोद ले ले, तो टीबी जैसी बीमारी को जड़ से मिटाया जा सकता है।

बीमारी की लड़ाई केवल दवाइयों से नहीं, बल्कि समाज की सामूहिक सहभागिता से जीती जाती है। चित्रकूट की यह पहल बताती है कि यदि इच्छाशक्ति हो और साथ में सामाजिक सहयोग का भाव जुड़ जाए, तो कोई भी बीमारी हमसे बड़ी नहीं। अब ज़रूरत है इस मॉडल को अन्य जिलों तक पहुंचाने की, ताकि ‘टीबी मुक्त भारत’ का सपना जल्द साकार हो सके।

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