
मंदाकिनी बचाओ संकल्प! गाँव-गाँव जनजागरण की पहल हो, मंदाकिनी जीवन की काशी है
चित्रकूट 卐 विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर एक बार फिर मंदाकिनी नदी को लेकर संवाद हुआ, संकल्प लिए गए, और कैमरों के सामने पर्यावरण बचाने की शपथें दोहराई गईं। लेकिन बड़ा सवाल वही — क्या संवाद से समाधान निकलेगा जब तक ठोस कार्य योजना ज़मीन पर नहीं उतरेगी?
कामतानाथ भगवान की तपोभूमि में स्थित आश्रम परिसर में आयोजित इस विशेष संगोष्ठी में देश-प्रदेश से संत, समाजसेवी और पर्यावरण प्रेमी जुटे। आयोजन की अगुवाई संत मदनगोपाल दास जी महाराज ने की, जिन्होंने वर्षों से चित्रकूट में जल संरक्षण के लिए सक्रिय भूमिका निभाई है तथा सनकादिक महाराज सहित अन्य संत समाज की मौजूदगी रही।

इस अवसर पर “वाटर वूमन” के नाम से प्रसिद्ध दिव्या त्रिपाठी भी मौजूद रहीं, जिनका महिला मोर्चा जिलाध्यक्ष के साथ-साथ जल जागरुकता अभियानों में भी विशेष योगदान रहा है। साथ ही भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष रंजना उपाध्याय , पूर्व विधानसभा प्रत्याशी जगदीश गौतम , पूर्व सांसद भैरों प्रसाद मिश्र व समाजसेवी गणेश मिश्रा सहित सैकड़ो जागरूक नागरिक उपस्थित रहे।
संवाद से आगे की ज़रूरत ” गांव की बात सौरभ के साथ ” योजना अब वक्त आ गया है कि संवाद को क्रियान्वयन में बदला जाए।
प्रस्तावित योजना के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं :
- गाँव-गाँव जल संवाद – “गांव की बात सौरभ के साथ” जैसे कार्यक्रमों को नदी किनारे के गाँवों में ले जाया जाए, जहाँ स्थानीय ग्रामीणों से सीधा संवाद कर नदी बचाने के लिए व्यवहारिक उपाय निकाले जाएं।
- नदी यात्रा जागरूकता अभियान – मंदाकिनी के उद्गम से लेकर राजापुर की यमुना संगम तक जनजागरण यात्रा चलाई जाए, जिसमें ग्रामीण, छात्र, संत, और विशेषज्ञ शामिल हों। हर पड़ाव पर नुक्कड़ सभा और जल प्रदूषण परीक्षण अनिवार्य हो।
- ग्रीष्मकालीन जल सुरक्षा योजना – गर्मी के मौसम में भी नदी में जल प्रवाह बना रहे इसके लिए तटबंध संरक्षण, झील पुनर्भरण, वॉटर रिचार्ज पिट और खेत-तालाब मॉडल को प्राथमिकता दी जाए।
- जल विज्ञान की सरल शिक्षा – स्कूलों, कॉलेजों और आश्रमों में “जल का विज्ञान” विषय पर नियमित कार्यशालाएं हों, जिसमें यह बताया जाए कि कैसे प्रदूषित जल शरीर, मस्तिष्क और पर्यावरण पर प्रभाव डालता है।
- राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सहयोग मंच – मंदाकिनी को सरकार स्तर पर व वैश्विक स्तर पर “नदी माता” का दर्जा देकर उसके संरक्षण हेतु देशभर के पर्यावरण कार्यकर्ताओं और एनआरआई समाज से सहयोग लिया जाए। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स से फंडिंग व जागरूकता को बढ़ावा दिया जाए।
■ सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं, प्रभावशाली बनें प्रयास
यह सच है कि कैमरे के सामने शपथ लेना आसान है, लेकिन नदी का पानी तभी निर्मल होगा जब योजनाएं माटी की गंध और जन के मन को छू पाएंगी। वक्त आ गया है कि “मंदाकिनी संवाद” अब सिर्फ शब्द न रहे एक आंदोलन बने, एक मिशन बने।
जल ही जीवन है, और माँ मंदाकिनी इस जीवन की काशी है। उसे बचाने का मतलब है भविष्य को बचाना।