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By – Saurabh Dwivedi

एससी-एसटी के दुरूपयोग का वह सच , जिसमें दोस्त ने ही दोस्त को उत्पीड़क साबित कर दिया और इस तरह के मामले ही कोर्ट संज्ञान में लेकर जांच का नियम बना रही है।

अच्छा आप भूमि संरक्षण विभाग के इंस्पेक्टर हैं। उन्होंने कहा कि एससी-एसटी के मामले में जबरन कार्यालयी राजनीति में फंसा दिया गया हूँ और सिर्फ मैं नहीं कृषि विभाग में कार्यरत मेरी अफसर पत्नी को फंसा दिया गया है।
जब मामले को गहराई से जाना तो पूरी पड़ताल में पता चला , पिछड़े वर्ग के इंस्पेक्टर साहब और अनुसूचित जाति का चपरासी अच्छे खासे शराबी मित्र भी थे। दोनों अक्सर शाम को साथ बैठकर पैग से पैग लड़ाया करते थे। दोस्ती की दुनिया में काफी नाम कमा रखे थे।
एक दिन नशेे में तूू तू मैं मैं हुई और फिर अनुसूचित जाति के चपरासी ने अपने से बड़े अधिकारी पर उत्पीड़न , जातिसूचक शब्द और मार पीट की रिपोर्ट शहर कोतवाली में प्रस्तुत कर दी।
इत्तेफाक से मामले की जांच सीओ सिटी द्वारा अनुसूचित जाति के दरोगा को सौंप दी गई , वो दरोगा जी उनके घर पर दबिश डालने लगे।
अब इंस्पेक्टर साहब घबराए कि रिपोर्ट दर्ज हो गई। इससेे पहले दरोगा जी मिलने को कहते रहे और वह मिलन मिठाई वाले वजनी डिब्बे के साथ होता तो दस्तूर कुछ और होता।
इधर उनके रिश्तेदार ने अधिकारी होने के फायदे के लिए कोर्ट में रिपोर्ट दर्ज है कि नहीं की याचिका दायर करवा दी। सीधी सी बात है कि यदि रिपोर्ट दर्ज भी नहीं होगी तो पुलिस कोर्ट को रिपोर्ट दर्ज होने की लिखित जानकारी देगी और रिपोर्ट अवश्य दर्ज कर ली जाएगी।
यहीं पर उनसे चूक हुई कि मिठाई के डिब्बे से बात आई गई हो जाती , किन्तु वह हकीकत में तब्दील हो गई। दरोगा जी ने कहा भी अरेे इतना विनम्र आदमी पहले आया होता तो इंस्पेक्टर को ये सब ना झेलना पड़ता लेकिन अब कुछ भी हो पाने की संभावना नहीं रह गई।
पूरी बात के दौरान यही बात कही थी कि बहुत मिल गए होते तो एनकेन प्रकारेण पीडा हारी बाम से आपका दर्द दूर होने की पूर्ण संभावना थी।
अब सत्य है कि इंस्पेक्टर साहब कोर्ट के चक्कर लगाएंगे और भविष्य में क्या होगा यह तय नहीं है। परंतु हर जानकार शख्स मानता है कि एससी-एसटी के फर्जी मुकदमे में दोस्त ने ही दोस्त को फंसा दिया ऊपर से पत्नी को भी नहीं छोड़ा।
ऐसे एससी-एसटी एक्ट के दुरूपयोग के मामले बहुत जीवंत हैं और ऐसा करना कोई गुनाह नहीं माना जाता बल्कि बदले की भावना प्रबल होती है कि हजारों वर्ष पहले सताये जाने का बदला ले पा रहेे हैं।

खैर ईश्वर सबको सद्बुद्धि प्रदान करे कि हजारों साल पहले औरंगजेब भी आया और बहुत कुछ अप्रत्याशित सा घटित हुआ था। तब से अब के समय में तमाम कुरीतियों का अंत हुआ है। अस्पृश्यता कभी जिंदा रही होगी और आज भी कहीं जिंदा होगी पर यह भी तय है कि नवपीढी ऐसी हर कुरीति के खिलाफ है और अस्पृश्यता जैसी बीमारी तो मर रही है।
सामंतवादी मानसिकता जाति विशेष की नही बल्कि व्यक्ति विशेष की प्रत्येक जाति धर्म वर्ग में निहित होती है। आज हर जाति धर्म में सीधे सरल लोग मिल जाएंगे तो वहीं सामंतवादी मानसिकता के अहम वाले मतांध लोग भी। इसलिये भूत को अपने ऊपर हावी ना कर समाज को विगटनकारी तत्व का खिलौना मत बनाइए बल्कि वर्तमान को जी कर स्वर्णिम भविष्य हेतु मानवता के पक्षधर बनिए , सचमुच बड़े प्रशंसनीय हो जाएंगे आप।

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