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@Saurabh Dwivedi

गांव पर चर्चा , नोनार ( चित्रकूट )

हाल ही मे पर्यावरण दिवस के दिन लगभग बारह घंटे रिमझिम वर्षा हुई। उसके दूसरे दिन गांव पर चर्चा के भ्रमण मे निकलने के दौरान ग्राम नोनार की निम्न वर्ग की बस्ती से गुजर रही सड़क का नजारा तस्वीर मे आपको साफ नजर आएगा , हृदय की आंखे खोलिए फिर मिट्टी से सनी हुई सड़क देखिए और जिंदगियों के स्वस्थ रहने का अंदाजा लगाइए। ऊपर से कोरोना वायरस जैसी बीमारी के समय गांव स्वास्थ्य की जंग जीतने के लिए कितने तैयार हैं ?

हकीकत मे गांव मे स्वच्छता के विषय पर खास जागरूकता नही आई है। और शासन – प्रशासन की तमाम योजनाएं अखबार का विज्ञापन बनकर रह गई हैं। यदि स्वच्छ भारत जैसी योजना गांव मे असरकारी होती तो गांव की सड़क किनारे घूर ( कचरे ) का ढेर नहीं लगा होता।

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कोरोना वायरस इम्यूनिटी सिस्टम पर हमलावर होता है। बारिश के दिनों मे बीमारी पैर पसारने लगती है। छोटे बच्चों को निमोनिया जैसी बीमारी जकड़ने लगती है। खांसी , जुकाम और बुखार आमतौर पर बच्चों को और युवाओं को घेरे मे ले लेती है , यहाँ तक की बुजुर्ग भी बारिश के दिनों मे नाक से बारिश करने लगते हैं।

यदि गांव स्वच्छ नहीं होगा। गांव के अंदर अच्छा वातावरण नहीं होगा तो बीमारियां हमेशा की तरह बढेगीं। ऐसे मे कोरोना वायरस के संक्रमण को नियंत्रित करना बड़ा मुश्किल हो सकता है। यदि गलती से भी नोनार गांव मे कोरोना वायरस का संक्रमण पहुंचने पाया तो गंदगी और बारिश के संगम मे यह अधिक ताकत से आम लोगों पर हमलावर हो जाएगा।

एक बड़ी हकीकत है कि गांव मे नेतृत्व करने की ललक पाले हुए लोग सफाई की ओर खास चिंतन नहीं कर पाते , वे गांव की जनता को स्वच्छता का स्वस्थता से रिश्ता ही नहीं समझा पाए।

असल मे गांव के अंदर कलह की खेती की गई है। पंचायत चुनाव भी एक बड़ी वजह है कि लोगों ने वोट साधने के लिए ईर्ष्या – द्वेष की खेती की है। लोगों के अंदर मानसिक कलह भरा गया। जिससे जनता अपने ही गांव को स्वच्छ और स्वस्थ बना पाने मे असफल है।

लेकिन अब वह वक्त आ गया है , जब गांव को स्वच्छ रखना ही होगा। वह सरकारी स्तर से सफाई कर्मी करें या गांव की जनता बीमारियों से बचने के लिए स्वयं सफाई का रास्ता खोज निकाले। घरों का कूड़ा – करकट और गोबर आदि किसी एक सार्वजनिक जगह पर अलग – अलग ढेर लगाकर संग्रहित किया जा सकता है। तत्पश्चात वहाँ से खेत पर खाद के रूप मे प्रयोग किया जा सकता है।

गांव मे भी बड़ी मात्रा मे सब्जी उगाई जाती है। सब्जी घरों मे बनाई जाती है। सब्जी के छिलकों से सडांध पैदा होती है , जो गोबर की गंध मे मिलकर अधिक खतरनाक गंध बन जाती है। किन्तु यही सब्जी के छिलके खाद मे तब्दील हो सकते हैं , इसका हल वर्मीकल्चरवीन्स है। इन्हीं छिलकों से अच्छी फसल उगाई जा सकती है।

गांव को एक उच्च जीवन स्तर के लिए विचार करना ही होगा। एक अच्छी जिंदगी गांव की महिलाएं जिएं , जैसे कि महिलाओं की जिंदगी स्वस्थ हो सुखमय हो। जिससे बच्चों और पुरूषों की जिंदगी भी स्वस्थ रहेगी। एक हरे – भरे और स्वच्छ – स्वस्थ गांव का निर्माण गांव की जनता ही कर सकती है।

अभी बहरहाल प्रशासन को युद्ध स्तर पर बारिश के दिनों मे स्वच्छ – स्वस्थ गांव के लिए सफाई का कार्य करवाना चाहिए। जिससे जिंदगी को तनिक राहत मिलेगी !

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Saurabh chandra Dwivedi
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