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By :- Saurabh Dwivedi

सत्य के मेरे प्रयोग में महात्मा गाँधी ने बताया कि महामारी के समय सेवा कार्य कितना आवश्यक था ? उन्होंने स्पेनिश फ्लू नामक महामारी के समय आम जन की सेवा की , यह महामारी गुलामी काल में सन् 1918 में फैली थी। जिसके संक्रमण की जद में स्वयं महात्मा गाँधी सहित लगभग चौदह लाख भारतीय आए थे ! कोरोना महामारी आजादी की इक्कीसवीं सदी मे आई है और यह वक्त सेवा भाव और सेवा के विरूद्ध कथित अपमान के मुद्दे के जद मे समा गया है। एक युवा समाजसेवी को चित्रकूट प्रशासन वाहन पास देने से इंकार कर देता है।

यह सच है कि समाजसेवी आशीष रघुवंशी का पूर्व में सेवा हेतु पास बनाया गया था। किन्तु सेवा कार्य के मध्यकाल मे ही कोई एक ऐसा समूह सक्रिय हुआ , जो सेवा की तस्वीरों मे गरीब का अपमान खोज लाया।

इस मान – अपमान के मुद्दे के बीच चित्रकूट प्रशासन खूब गुमराह होता नजर आया। शायद इसी का परिणाम रहा कि आशीष रघुवंशी ने दुबारा सेवा कार्य हेतु आवेदन करते हैं , तो उन्हें कम से कम एक दिन का पास निर्गत करने की बात कही जाती है। साथ ही अन्य तमाम सवाल कि जैसे मास्क कहाँ से आया ? आशीष ने तस्वीर दिखाई और बताया कि वह मास्क स्वयं बनवा रहे हैं। सिर्फ मास्क ही नहीं आशीष निजी आय से आटा , चावल , आलू , तेल आदि राशन सामग्री जरूरतमंद को प्रसाद स्वरूप प्रदान करते हैं।

समाजसेवी युवा से एक दिन की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया जाता है। तत्पश्चात कुछ ही समय में मोबाइल पर टेक्स्ट मैसेज पहुंचता है कि आपका आवेदन निरस्त किया जाता है।

आवदेन निरस्त होने की सूचना प्राप्त कर आशीष मायूस होते हैं , परंतु उन्होंने हार नहीं मानी। यह सोच लिया कि जनता की सेवा करनी है , बेशक पैदल निकलकर करना पड़े !

इस मुद्दे पर गुलामी काल मे महात्मा गाँधी की सेवा प्रशासन को याद कराई गई। कहा गया कि गुलामी काल मे सेवा की अनुमति मिल सकती है तो ऐसे पुण्य कार्य को जनपदीय प्रशासन किस संविधान और कानून के तहत निरस्त कर सकता है। यह अच्छी आत्मा की अवधारणा की बात भी है कि कोई आध्यात्मिक – सामाजिक सद्गुण प्रकृति की आत्मा सेवा कार्य को निरस्त कर पुण्य को पाप में तब्दील करने का कुकृत्य क्यों करेगी ?

आशीष लाकडाऊन के नियमों का पालन करते हुए सेवा कर रहे हैं। वे सोशल डिस्टेंस का पालन करते हैं और राशन सामग्री जमीन पर रखकर ही जनता को बिना स्पर्श किए देते हैं। जिससे छूने से संक्रमण फैलने का खतरा भी नहीं होता। गौरतलब है कि जनपद चित्रकूट में संक्रमण का बाहरी स्रोत अब तक संपर्क में नहीं आ सका।

जनपद चित्रकूट ग्रीन जोन मे है। शासन शीघ्र ही यहाँ ग्राम स्तर पर विकास कार्य शुरू कर अर्थव्यवस्था को बैलेंस करना चाहता है। किसानों की फसल खरीद का निर्देश जिलाधिकारी चित्रकूट ने हाल ही मे जारी किया है।

किन्तु उपजिलाधिकारी चित्रकूट ने सेवा कार्य के आवेदन को निरस्त कर दिया तो ऐसे मे महसूस हुआ कि बापू के देश में सेवा भी अपराध हो गई है ? अथवा उपजिलाधिकारी चित्रकूट की मानसिकता अंग्रेजों की खतरनाक मानसिकता से भी परे है या फिर अंग्रेज मानसिकता से अधिक खतरनाक हैं , जो यह विस्मृत हो गए कि यह उन्हीं बापू का देश है , जिन्होंने स्पेनिश फ्लू की महामारी में जनसेवा की थी ?

वर्तमान समय आजादी का है और यदि कोई युवा सोचता है कि उसकी जिंदगी सिर्फ उसकी जिंदगी नहीं बल्कि समाज और राष्ट्र की जिंदगी है तो बापू भी स्वयं की जिंदगी को दांव पर लगाकर सेवा किए थे। यह आजाद भारत है और इसका अपना संविधान है , महामारी अधिनियम मे भी सेवा कार्य पर प्रतिबंध जैसा कोई कठोर नियम अब तक नजर नहीं आया। जबकि पूर्व में पास जारी किया गया हो तो पुनः आवेदन पर निरस्त करने की बात समझ नहीं आती , एक अधिकारी का इतना सा स्वविवेक होना ही चाहिए कि एक बार निर्गत हो चुका है , ऊपर से सेवा का कार्य है फिर निरस्त करने का वाजिब कारण कुछ खास समझ नहीं आता।

शासन की मंशा स्पष्ट है और शासन की मंशा के अनुसार ही प्रशासन ने पुनः सेवा कार्य का पास जारी किया है। किन्तु ऐसे अधिकारियों को स्वयं चिंतन करना चाहिए कि सेवा कार्य पर प्रतिबंध कैसे ? यदि सेवा नियमतः हो और स्वेच्छा से हो। अतः बापू के सिद्धांत से ही कोरोना की जंग जीती जा सकती है , शासन – प्रशासन उपजिलाधिकारी के इस दोहरे मापदंड पर विचार अवश्य कर सकता है।

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