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@Saurabh Dwivedi

अन्ना पशु किसानों की फसल का दुश्मन साबित हो रहा है। सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद अन्ना पशुओं की समस्या पूर्ण समाधान होता नहीं दिख रहा , वहीं एक ओर गोशाला में पशुपालन भुगतान भी कोई सरल प्रक्रिया नहीं है। प्रधान अक्सर आपस मे चर्चा करते हुए नजर आते हैं कि कैसे भुगतान ना होना और भुगतान की मांग करना उनके गले की फांस बनती जा रही है।

अफसरशाही से ग्राम पंचायत का प्रधान भी दबता नजर आता है। एक प्रधान का कहना था कि समय से गोवंश पालन का भुगतान ना मिलने से गोशाला मे पशु रखना बड़ा खतरनाक हो चुका है। एक – एक भुगतान के लिए कम से कम छ महीने का इंतजार करना पड़ता है , अधिकतम ग्यारह महीने में मुश्किल से दो महीने का भुगतान मिलने की भी बात मौखिक रूप से सामने आई है।

कुछ प्रधान आपस मे चर्चा कर रहे थे। उनमे से एक प्रधान कह रहे थे कि मैं मजबूर हूँ कि मेरी पत्नी प्रधान है अन्यथा मैं अफसरों से लड़ जाता। साफ कहता कि भुगतान समय से मिलेगा तभी गोवंश पालन हो पाएगा। उनका कहना था कि यदि अफसर से ऐसा कह दिया जाए तो अफसर अपने घमंड से मसले को जोड़ लेंगे फिर जबरन कार्रवाई का कहीं ना कहीं शिकार होना पड़ेगा। अतः ऐसे मे बड़ी मजबूरी बन जाती है कि चुपचाप सहन करो।

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लेकिन यह इतना सरल नहीं है। चूंकि गांव मे प्रधान को गांवदारी भी देखनी होती है। गांव की जनता को भुगतान होने ना होने से फर्क नहीं पड़ता। जनता को इस बात से मतलब नहीं रहता कि प्रधान को समय से भुगतान मिल पा रहा है या नहीं ! वहीं गांव का कोई खास विपक्षी जनता को खूब बरगलाता है , अपने पक्ष मे जनता को लेने के लिए झूठ का सहारा लेकर भी वह समस्त प्रयास करता है।

अन्ना गोवंश

इससे पूर्व अखबार में ग्राम पंचायत पहाड़ी की समस्या प्रमुखता से प्रकाशित हुई थी। जब प्रधान प्रतिनिधि जयविजय सिंह ने पशु विभाग पर समय से टैग ना लगाने का आरोप लगाया था। पहाड़ी की गोशाला में लगभग 400 अन्ना पशुओं का स्थाई रूप से पालन-पोषण हो रहा था। किन्तु प्रशासनिक लापरवाही के चलते यहाँ भी भुगतान नहीं हो पा रहा था , यह एक प्रमाणिक खबर है।

जनपद चित्रकूट के पांचो ब्लाक से लगभग एक सी समस्या सुनने मे आ रही है। कर्वी , पहाड़ी , रामनगर , मानिकपुर और मऊ ब्लाक से यही समस्या सुनने मे आ रही है कि भुगतान बड़ी देर से होता है और तब तक प्रधान कर्ज का शिकार हो जाता है। उसकी जमा पूंजी गोवंश पालन में खर्च हो जाती है। एक तरफ प्रशासन की मार है तो दूसरी तरफ जनता की असंतुष्टि भी झेलने का भय बना रहता है।

प्रधानों का कहना है कि गोशाला से प्रधान खासी परेशानी मे है। चूंकि बजट का निर्धारण ठीक से हो नहीं सका है , जो चरवाहे रखे जा रहे हैं उनको वेतन देने का कोई स्पष्ट नियम नहीं है। एनकेन प्रकारेण बजट से चरवाहों को वेतन देने पर एक तरह से वास्तव मे नियमों की अनदेखी होती है इसलिए लगभग हर प्रधान के सामने एक बड़ी समस्या है।

गोवंश को भूसा खरीदने व भुगतान करने की एक सरल स्पष्ट नीति की आवश्यकता है। जिससे प्रधान सरलता से बिल आदि देकर भुगतान प्राप्त कर सकें। जीएसटी के नियम को ग्राम पंचायत की स्थिति को देखते हुए सरल किया जाना जरूरी है।

प्रधानों की जुबान से एक बड़ी अवधारणा निकलकर आ रही है कि गोशाला की वजह से लगभग हर प्रधान चोर साबित हो रहा है , नाकाम साबित हो रहा है और उसे बदनामी झेलनी पड़ रही है परंतु प्रधान अपना दर्द कहे तो किससे कहे ? यह सच है कि कहीं – कहीं समय से भुगतान हुआ भी है परंतु समग्र रूप से प्राथमिकता के आधार पर पिछले दो वर्ष का भुगतान जिसमे एक भुगतान ग्यारह महीने दो महीने का हुआ था व दूसरा अब तक छः महीने में नहीं हुआ।

इस पूरे प्रकरण में जनपद स्तरीय प्रशासन की घोर लापरवाही मौखिक रूप से कही जा रही है। जबकि प्रधानों के सामने ग्राम स्तर पर सबसे बड़ी चुनौती है। 
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